प्रत्यय सिद्धांत
प्लेटो का प्रत्यय सिद्धांत , रूप (आकार) सिद्धांत, विचार सिद्धांत, [1] [2] प्लेटोनीय आदर्शवाद, प्रत्ययवाद या प्लेटोनिक यथार्थवाद ( Theory of Forms या Theory of Ideas ) एक तत्त्वमीमांसक सिद्धांत है, जिसका श्रेय शास्त्रीय यूनानी दार्शनिक प्लेटो को दिया जाता है, जो बताते हैं कि भौतिक दुनिया, कालातीत, परमनिरपेक्ष, अपरिवर्तनीय प्रत्यय या विचारों जितनी वास्तविक या सच्ची नहीं है।, । [3] इस सिद्धांत के अनुसार विचार (प्रत्यय), पारंपरिक रूप से बड़े अक्षरों में और "विचार" (Ideas) या "रूप" (Forms) के रूप में अनुवादित, [4] सभी चीजों के गैर-भौतिक सार हैं, भौतिक दुनिया में वस्तुएं और पदार्थ जिनकी केवल नकल हैं। प्लेटो इन इकाइयों के बारे में केवल अपने संवादों के पात्रों (मुख्य रूप से सुकरात ) के माध्यम से बात करता है जो कभी-कभी सुझाव देते हैं कि ये रूप या प्रत्यय अध्ययन की एकमात्र वस्तु हैं जो ज्ञान प्रदान कर सकते हैं। [5] यह सिद्धांत स्वयं प्लेटो के संवादों के भीतर से प्रतिवादित है, और यह दर्शन में विवाद का एक सामान्य बिंदु है। बहरहाल, इस सिद्धांत को सामान्यों (सार्वभौमिकों) की समस्या का एक शास्त्रीय समाधान माना जाता है। [6]
रूप की प्रारंभिक यूनानी अवधारणा साक्ष्यांकित दार्शनिक उपयोग से पहले की है और इसे कई शब्दों द्वारा दर्शाया गया है जो मुख्य रूप से दृष्टि, दृश्य और प्रतीति से संबंधित हैं। प्लेटो प्रत्यय और शुभ को समझाने के लिए अपने संवादों में रूप की प्रारंभिक यूनानी अवधारणा से दृष्टि और प्रतीति के इन पहलुओं का उपयोग करते हैं।
प्रत्यय
εἶδος ( एइदोस् ) शब्द का मूल अर्थ , "दृश्यमान रूप", और संबंधित शब्द μορφή ( मॉर्फी ), "आकार", [7] और φαινόμενα ( फाइनोमेना ), बाह्याकृति , φαίνω (फाइनो ) "चमक" से, इंडो-यूरोपीय *bʰeh₂- या *bhā- [8] पश्चिमी दर्शन की शुरुआत तक सदियों तक स्थिर रहे, जब वे अतिरिक्त विशिष्ट दार्शनिक अर्थ प्राप्त करते हुए, समानार्थी हो गए। प्लेटो ने एइदोस और विचार,आइडिया (ἰδέα) शब्दों का विनिमेयता से उपयोग किया। [9]
थेल्स से शुरुआत करते हुए, पूर्व-सुकराती दार्शनिकों ने देखा कि बाह्याकृति बदलते हैं, और पूछना शुरू किया कि "वास्तव में" क्या चीज़ है जो बदलती है। उत्तर था पदार्थ, जो परिवर्तनों के नीचे खड़ा है और वही, वास्तव में विद्यमान चीज है जो देखी जा रही है। अब बाह्याकृति की अवस्था सवालों के घेरे में आ गई। वास्तव में प्रत्यय क्या है और उसका पदार्थ से क्या सम्बन्ध है?
प्लेटो के संवादों और सामान्य भाषण में प्रत्ययों की व्याख्या की गई है, जिसमें यथार्थ में प्रत्येक वस्तु या गुण — कुत्ते, इंसान, पहाड़, रंग, साहस, प्रेम और अच्छाई — का एक प्रत्यय (रूप) होता है। प्रत्यय इस प्रश्न का उत्तर देता है कि, "वह क्या है?" प्लेटो एक कदम आगे बढ़कर पूछ रहे थे कि प्रत्यय ही क्या है। उनका मानना था कि वस्तु अनिवार्य रूप से या "वास्तव में" प्रत्यय थी और परिघटनाएँ (phenomena) प्रत्यय की नकल करने वाली छाया मात्र थीं; अर्थात् विभिन्न परिस्थितियों में प्रत्यय का क्षणिक चित्रण। सार्वभौमों (सामान्यों) की समस्या - सामान्य तौर पर एक चीज़ विशेष रूप से कई चीज़ें कैसे हो सकती है - यह मानकर हल की गई थी कि प्रत्यय (Form) एक विशिष्ट एकवचन चीज़ थी लेकिन विशेष वस्तुओं में स्वयं का बहुसंख्यक प्रतिनिधित्व करती थी। उदाहरण के लिए, संवाद पारमेनिदीज़ में, सुकरात कहते हैं: "न ही, फिर से, यदि कोई व्यक्ति यह दिखाए कि एक का सह-भागी होने से सभी एक हैं, और उसी समय, कई का सह-भागी होने पर, कई हैं, तो क्या यह बहुत आश्चर्यजनक होगा। लेकिन अगर वह मुझे यह दिखाए कि परमनिरपेक्ष वाला अनेक है, या अनेक परमनिरपेक्ष एक है (or the absolute one many), तो मुझे सचमुच आश्चर्य होगा।'' [10] पदार्थ अपने आप में विशिष्ट माना जाता है। प्लेटो के लिए, सौंदर्य जैसे प्रत्यय, उनकी अनुकृति करने वाली किसी भी वस्तु की तुलना में अधिक वास्तविक हैं। यद्यपि प्रत्यय कालातीत और अपरिवर्तनीय हैं, भौतिक चीज़ों का अस्तित्व निरंतर बदलता रहता है। जहां प्रत्यय अपरिमित परिपूर्णताए हैं, भौतिक चीजें परिमित और अनुकूलित हैं।
ये प्रत्यय विभिन्न वस्तुओं के सार हैं: ये वे हैं जिनके बिना कोई चीज़ उस तरह की नहीं होती जैसी वह है। उदाहरण के लिए, दुनिया में अनगिनत मेज़ हैं लेकिन मेज़-त्व का प्रत्यय मूल में है; यह उन सभी का सार या तत्त्व है। [11] प्लेटो के सुकरात का मानना था कि प्रत्ययों की दुनिया हमारी अपनी दुनिया (पदार्थों की दुनिया) से परे (इंद्रियातीत) है और वास्तविकता का सारभूत आधार भी है। पदार्थ से अधिक्रमिक, प्रत्यय सभी चीजों में सबसे शुद्ध हैं। इसके अलावा, उनका मानना था कि सच्चा ज्ञान/बुद्धिमत्ता किसी की प्रत्ययों की दुनिया को समझने की क्षमता है। [12]
एक प्रत्यय aspacial (अस्थानिक, अंतरिक्ष से परे) और atemporal (कालातित, समय से इंद्रियातीत) है। [13] प्लेटो की दुनिया में, कालातीत का अर्थ है कि यह किसी समय अवधि के भीतर मौजूद नहीं है, बल्कि यह समय के लिए आकारिक आधार प्रदान करता है। [13] इसलिए यह आकारिक रूप से आरंभ, सतत रहने और समाप्ति को आधार देता है। यह न तो सदैव अस्तित्व में रहने के अर्थ में शाश्वत है, न ही सीमित अवधि के लिए नश्वर है। यह पूरी तरह से समय से इंद्रीयातीत है। [14] प्रत्यय इस मायने में अस्थानिक (Aspatial) हैं कि उनका कोई स्थानिक, आकाशीय आयाम नहीं है, और इस प्रकार अंतरिक्ष में कोई अभिविन्यास नहीं है, न ही उनका (बिंदु की तरह) कोई अवस्थीति(location) न है। [15]
वे अभौतिक हैं, लेकिन वे मन में नहीं हैं। प्रत्यय मानसिक-इतर हैं (अर्थात शब्द के सख्त अर्थ में वास्तविक)। [16]
- ↑ Modern English textbooks and translations prefer "theory of Form" to "theory of Ideas", but the latter has a long and respected tradition starting with Cicero and continuing in German philosophy until present, and some English philosophers prefer this in English too. See W. D. Ross, Plato's Theory of Ideas (1951)
- ↑ Plato uses many different words for what is traditionally called form in English translations and idea in German and Latin translations (Cicero). These include idéa, morphē, eîdos, and parádeigma, but also génos, phýsis, and ousía. He also uses expressions such as to x auto, "the x itself" or kath' auto "in itself". See Christian Schäfer: Idee/Form/Gestalt/Wesen, in Platon-Lexikon, Darmstadt 2007, p. 157.
- ↑ Forms (usually given a capital F) were properties or essences of things, treated as non-material abstract, but substantial, entities. They were eternal, changeless, supremely real, and independent of ordinary objects that had their being and properties by 'participating' in them.
- ↑ "Chapter 28: Form" of The Great Ideas: A Syntopicon of Great Books of the Western World (Vol. II). Encyclopædia Britannica (1952), pp. 526–542. This source states that Form or Idea get capitalized according to this convention when they refer "to that which is separate from the characteristics of material things and from the ideas in our mind."
- ↑ Watt, Stephen (1997). "Introduction: The Theory of Forms (Books 5–9)". Plato: Republic. London: Wordsworth Editions. पपृ॰ xiv–xvi. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-85326-483-0.
- ↑ Kraut, Richard (2017), Zalta, Edward N. (संपा॰), "Plato", The Stanford Encyclopedia of Philosophy (Fall 2017 संस्करण), Metaphysics Research Lab, Stanford University, अभिगमन तिथि 2021-05-20
- ↑ Possibly cognate with Sanskrit bráhman. See Thieme (1952): Bráhman, ZDMG, vol. 102, p. 128.ZDMG online..
- ↑ "*bhā-". American Heritage Dictionary: Fourth Edition: Appendix I. 2000.
- ↑ Morabito, Joseph; Sack, Ira; Bhate, Anilkumar (2018). Designing Knowledge Organizations: A Pathway to Innovation Leadership. Hoboken, NJ: John Wiley & Sons. पृ॰ 33. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781118905845.
- ↑ Parmenides.
- ↑ Cratylus 389: "For neither does every smith, although he may be making the same instrument for the same purpose, make them all of the same iron. The form must be the same, but the material may vary ...."
- ↑ For example, Theaetetus 185d–e: "...the mind in itself is its own instrument for contemplating the common terms that apply to everything." "Common terms" here refers to existence, non-existence, likeness, unlikeness, sameness, difference, unity and number.
- ↑ अ आ Mammino, Liliana; Ceresoli, Davide; Maruani, Jean; Brändas, Erkki (2020). Advances in Quantum Systems in Chemistry, Physics, and Biology: Selected Proceedings of QSCP-XXIII (Kruger Park, South Africa, September 2018). Cham, Switzerland: Springer Nature. पृ॰ 355. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-030-34940-0.
- ↑ The creation of the universe is the creation of time: "For there were no days and nights and months and years ... but when he (God) constructed the heaven he created them also." – Timaeus, paragraph 37. For the creation God used "the pattern of the unchangeable," which is "that which is eternal." – paragraph 29. Therefore "eternal" – to aïdion, "the everlasting" – as applied to Form means atemporal.
- ↑ Space answers to matter, the place-holder of form: "... and there is a third nature (besides Form and form), which is space (chōros), and is eternal (aei "always", certainly not atemporal), and admits not of destruction and provides a home for all created things ... we say of all existence that it must of necessity be in some place and occupy space ...." – Timaeus, paragraph 52. Some readers will have long since remembered that in Aristotle time and space are accidental forms. Plato does not make this distinction and concerns himself mainly with essential form. In Plato, if time and space were admitted to be form, time would be atemporal and space aspatial.
- ↑ These terms produced with the English prefix a- are not ancient. For the usage refer to "a- (2)". Online Etymology Dictionary. They are however customary terms of modern metaphysics; for example, see Beck, Martha C. (1999). Plato's Self-Corrective Development of the Concepts of Soul, Form and Immortality in Three Arguments of the Phaedo. Edwin Mellon Press. पृ॰ 148. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7734-7950-3. and see Hawley, Dr. Katherine (2001). How Things Persist. Oxford: Clarendon Press. Chapter 1. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-19-924913-X.