पौराणिक कालक्रम
पौराणिक कालक्रम से तात्पर्य हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित हिन्दू इतिहास ही नहीं अपितु मानवमात्र के इतिहास से है। पौराणिक कालानुक्रम के अनुसार दो सबसे महत्वपूर्ण तिथियाँ हैं, महाभारत युद्ध तथा कलियुग का आरम्भ। महाभारत के युद्ध का काल 3139 ईसापूर्व तथा कलियुग का आरम्भ 3102 ईसापूर्व। पौराणिक कालक्रम के अनुसार वैदिक काल का वर्तमान मान्य समय से पहले था।
भारत का इतिहास लेखन
ब्रिटिश शासनकाल में शासन द्वारा पोषित देशी-विदेशी इतिहासकारों द्वारा यूरोपीय मॉडल पर भारतीय इतिहासलेखन किया गया, जिसमें भारतीय कालक्रम का अत्यधिक संकुचन किया गया। यूरोपवासी पृथिवी की उत्पत्ति 4004 ई.पू. मानते थे। इस तिथि ने शताब्दियों से ईसाई-विद्वानों के मस्तिष्क पर अपना प्रभाव जमा रखा था।
अंग्रेजों द्वारा पोषित देशी-विदेशी इतिहासकारों ने भारतवर्ष के ‘नवीन’ इतिहास की जो रचना की, उसमें सबसे पहला काम यह किया गया कि भारतवर्ष का पूरा इतिहास बाइबल की पूर्ववर्ती तिथियों से बदलकर परवर्ती तिथियों की ओर कर दिया गया। बाइबल के अनुसार पृथिवी का इतिहास छः हज़ार वर्ष का है, अतः पाश्चात्य इतिहासकारों का यह प्रयास रहा कि किसी भी तरह भारतवर्ष के इतिहास में चार हज़ार वर्ष से पुराने लक्षण न दिखाई दें। अर्थात् भारतवर्ष के इतिहास में जो भी घटना घटित हुई, वह चार-पाँच हज़ार वर्ष के भीतर। इस अवरोधक धरणा के कारण ईसाई लेखकों ने समस्त भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा और प्र्रत्येक बड़ी-से-बड़ी घटना को इस अवधि के भीतर ठूँस डाला। जिन घटनाओं को वे इस अवधि में न ठूँस सके, उन्हें ‘पुराणों की कल्पना’ और ‘माइथोलॉजी’ कहकर मानो हवा में उड़ा दिया। इसके बाद पाश्चात्य विद्वानों ने प्राचीन महापुरुषों के कालखण्ड को अधिक-से-अधिक पीछे ढकेला गया।
भारतीय इतिहास दर्शन
भारतीय चिन्तन-दर्शन में काल और इतिहास दो नहीं, बल्कि इनमें बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव है। यदि काल बिम्ब है, तो इतिहास उसका प्रतिबिम्ब है। यदि इतिहास बिम्ब है तो काल प्रतिबिम्ब है। अतएव जो हमारी कालगणना है, वही हमारा इतिहास है; जो हमारा इतिहास है, वही हमारी कालगणना है। हमारी कालगणना और हमारा इतिहास एक है। हमारा इतिहास विगत पाँच या दस या बीस हज़ार वर्षों से एकाएक कहीं से प्रारम्भ नहीं हो गया, बल्कि वह कालचक्र के प्रवर्तन के साथ प्रारम्भ हुआ है।
भगवान् विष्णु के नाभिकमल पर उत्पन्न ब्रह्मा ने जिस दिन प्रथम बार सृष्टि की सर्जना शुरू की, अर्थात् ब्रह्मा के प्रथम परार्ध के प्रथम कल्प के प्रथम मन्वन्तर के प्रथम चतुर्युग के सत्ययुग के प्रथम मास की प्रथम तिथि, यानि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भारतीय-इतिहास का प्रस्थान-बिन्दु है। अर्थात् 15 नील, 55 खरब, 13 अरब, 33 करोड़, 29 लाख, 49 हज़ार 119 वर्ष का भारतवर्ष का इतिहास है। इतने वर्षों से हमारा धर्म चला आ रहा है। इसलिए इसे सनातन धर्म कहा जाता है, भारतवर्ष को सनातन हिंदू-राष्ट्र कहा जाता है और वैदिक ग्रन्थों को अनादि-अपौरुषेय कहा जाता है
योगीराज श्रीअरविन्द (1872–1950) ने सनातन-धर्म को ही राष्ट्रीयत्व कहा है। और इसलिए सनातन-धर्म में आजतक कोई ‘पैग़ंबर’ नहीं हुआ, जैसा कि विभिन्न सम्प्रदायों में हुए। और इसलिए सनातन-धर्म का कोई ‘एक धर्मग्रन्थ’ नहीं है, जैसा कि विभिन्ना सम्प्रदायों में हैं। इसलिए हिंदू-समाज किसी ‘एक निश्चित उपासना-पद्धति’ से भी बंधा हुआ नहीं है, जैसा कि विभिन्न सम्प्रदाय एक निश्चित उपासना- पद्धति से बंधे हुए हैं।
वैदिक-पौराणिक कालक्रम
यह भारतीय इतिहासलेखन की एक विशेषता ही है कि भारतीय आर्ष-ग्रन्थों में ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण सदैव कालक्रम के चौखटे में ही दिया गया है। कहीं भी कालक्रम की उपेक्षा नहीं की गई है। आर्ष-ग्रन्थों में घटनाक्रम की कालबद्ध चर्चा परार्ध, कल्प, मन्वन्तर, युग और संवत्सर में प्राप्त होती है। सम्पूर्ण पुराणों, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों में कालगणना के इन्हीं मापदण्डों को अपनाया गया है। इनके सहारे सृष्ट्युत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक की भारतीय इतिहास की समयावली प्रस्तुत हो जाती है।
- नील वर्ष पूर्व
- 15.55219729 — ब्रह्मा के श्रीमुख से छह अंगों, चार पादों और उनके क्रमसहित एक लाख मंत्रोंवाले वेद और सर्वशास्त्रमय शतकोटि विस्तृत पुराण का प्राकट्य। ब्रह्मा द्वारा रचित होने के कारण वेद को ‘अपौरुषेय’ कहा गया है, अर्थात् इसकी रचना किसी पुरुष-विशेष (मानव) द्वारा नहीं हुई। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्थ कराने के कारण वेद को ‘श्रुति’ की संज्ञा दी गयी।
- 15.5513332949119 — ब्रह्माजी द्वारा पृथ्वी आदि महाभूतों तथा अन्य तत्त्वों की उत्पत्ति। ब्रह्माजी द्वारा प्रथम दस मानस-पुत्रों (ऋषियों)— नारद, भृगु, वसिष्ठ, प्रचेता, पुलह, क्रतु, पुलस्त्य, अत्रि, अंगिरस (अंगिरा) और मरीचि) का सृजन; देवताओं, दानवों, ऋषियों, दैत्यों, यक्ष, राक्षस, पिशाच, गन्धर्व, अप्सरा, असुर, मनुष्य, पितर, सर्प एवं नागों के विविध गणों की सृष्टि एवं उनके स्थान का निर्धारण। अपने शरीर को दो भागों में विभक्तकर स्वयम्भुव मनु एवं शतरूपा का निर्माण। इन्हीं प्रथम पुरुष और प्रथम स्त्री की सन्तानों से संसार के समस्त जनों की उत्पत्ति हुई। मनु की सन्तान होने के कारण ही वे ‘मानव’ या ‘मनुष्य’ कहलाए। स्वयम्भुव मनु को आदि भी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है प्रारम्भ। सभी भाषाओं में मनुष्यवाची शब्द मैन, मनुज, मानव, आदम, आदमी आदि सभी शब्द ‘मनु’ शब्द से प्रभावित हैं। ऋषियों द्वारा पृथ्वी पर जाकर वेद और पुराणों का पठन-पाठन प्रारम्भ और पृथिवी पर मानव-सभ्यता का प्रारम्भ किया गया।
- 15.5509012949119 — (ब्रह्मा के दूसरे अहोरात्र की रात्रि) पृथिवी पर प्रथम बार नैमित्तिक प्रलय प्रारम्भ
- 15.2411572949119 — ब्रह्मा का दूसरा वर्ष प्रारम्भ
- 14.3080372949119 — ब्रह्मा का 5वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 12.7528372949119 — ब्रह्मा का 10वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 11.1976372949119 — ब्रह्मा का 15वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 10.5755572949119 — रुद्र द्वारा ब्रह्मा के पाँचवें मुख का छेदन
- 9.6424372949119 — ब्रह्मा का 20वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 8.0872372949119 — ब्रह्मा का 25वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 6.5020372949119 — ब्रह्मा का 30वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 4.9768372949119 — ब्रह्मा का 35वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 3.4216372949119 — ब्रह्मा का 40वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 1.8664372949119 — ब्रह्मा का 45वाँ वर्ष प्रारम्भ
- खरब वर्ष पूर्व
- 93.33172949119 — ब्रह्मा का 48वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 62.22772949119 — ब्रह्मा का 49वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 31.12372949119 — ब्रह्मा का 50वाँ वर्ष प्रारम्भ
- 1.27252949 — ब्राह्मकल्प में जगन्माता द्वारा मुर दैत्य और नरकासुर का वध
- 1.22007605119 — विष्णुकल्प के उत्तम मन्वन्तर में भगवती दुर्गा द्वारा महिषासुर-वध
- अरब वर्ष पूर्व
- 45.172949 — मार्कण्डेयकल्प में शुम्भ-निशुम्भ की उत्पत्ति
- 10.612949 — ब्रह्मा के 50वें वर्ष की अन्तिम सृष्टि (नृसिंहकल्प) के प्रथम सत्ययुग में देवताओं द्वारा वरुण को जल का राजा बनाया गया
- 1.972949119 — ब्रह्मा के 51वें वर्ष के प्रथम मास का प्रथम दिन (‘श्वेतवाराह कल्प’, ब्रह्मा का 18,001वाँ कल्प) प्रारम्भ; मनु : स्वायम्भुव मनु, पत्नी : शतरूपा; इन्द्र : विश्वभुक् (विष्णुभुक्); सप्तर्षि : मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्त्य, क्रतु, वसिष्ठ, पुलह
- 1.972949 — भगवान् विष्णु का वराह-अवतार
- 1.955885119 — ब्रह्मा द्वारा सृष्टि-निर्माण पूर्ण, ‘सृष्टि-संवत् 1’ प्रारम्भ
- 1.955885119 — स्वायम्भुव मनु के ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत के रथ की लीक से सप्तद्वीपों और सप्तसागरों (सप्तसिंधु) की उत्पत्ति
- 1.9557 — जम्बूद्वीपाधिपति आग्नीध्र ने जम्बूद्वीप के 9 विभाग किए
- 1.9556 — ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर अजनाभवर्ष का नाम ‘भारतवर्ष’ पड़ा
- 1.662773119 — स्वारोचिष मनु से द्वितीय मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : विद्युति; सप्तर्षि : ऊर्ज, स्तम्भ, वात, प्राण, पृषभ (ऋषभ), निरय, परीवान्
- 1.354325119 — उत्तम मनु से तृतीय मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : विभु; सप्तर्षि : महर्षि वसिष्ठ के सातों पुत्र— कौकुनिधि, कुरुनिधि, दलय, सांख, प्रवाहित, मित एवं सम्मित
- 1.045877119 — तामस मनु से चतुर्थ मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : प्रभु; सप्तर्षि : ज्योतिर्धामा, पृधु (पृथु), काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक, पीवर।
- 1.0458 — भगवान् विष्णु का नृसिंह-अवतार
- 1.0458 — भगवान् विष्णु द्वारा गजेन्द्र-उद्धार
- करोड़ वर्ष पूर्व
- 73.7429119 — रैवत मनु से पञ्चम मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : शिखी; सप्तर्षि : हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य, महामुनि
- 42.8981119 — चाक्षुष मनु से छठे मन्वन्तर का प्रारम्भ; इन्द्र : मनोजव; सप्तर्षि : सुमेधा, विरजा, हविष्यमान्, उत्तम, मधु, अतिनामा एवं सहिष्णु
- 42.89 — भगवान् विष्णु का कच्छप-अवतार एवं क्षीरसागर के मन्थन से चन्द्रमा सहित 14 रत्नों की उत्पत्ति
- 42.89 — दक्ष प्रजापति द्वारा नवीन प्रजा का सृजन
- 12.0533119 — वैवस्वत मनु से सप्तम मन्वन्तर का प्रारम्भ; भगवान् विष्णु का मत्स्य-अवतार; इन्द्र : ओजस्वी (ऊर्जस्वी); सप्तर्षि : काश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं भरद्वाज
- 12.0533 — वैवस्वत मन्वन्तर के प्रथम सत्ययुग में ब्रह्मा द्वारा उत्पलारण्य में विशाल वारुण यज्ञ का अनुष्ठान
- 12.0461 — वैवस्वत मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु से सूर्यवंश और पुत्री इला से चन्द्रवंश का प्रारम्भ
- 11.7509 — प्रथम त्रेतायुग में इन्द्र-वृत्र-युद्ध
- 11.7509 — (भाद्रपद शुक्ल द्वादशी) प्रथम त्रेतायुग में भगवान् विष्णु का वामन-अवतार
- 11.7509 — प्रथम त्रेतायुग में भगवान् विष्णु का दत्तात्रेय-अवतार
- 11.6645 — प्रथम द्वापर में ब्रह्मा द्वारा वेदों का संपादन
- 11.2325 — दूसरे द्वापर में प्रजापति द्वारा वेदों का संपादन
- 11.2325 — दूसरे द्वापर में महान् सम्राट् शौनहोत्र
- 10.8005 — तीसरे द्वापरयुग में शुक्राचार्य द्वारा वेदों का संपादन
- 10.3865 — चौथे द्वापरयुग में बृहस्पति द्वारा वेदों का संपादन
- 9.9365 — 5वें द्वापरयुग में सूर्य द्वारा वेदों का संपादन
- 9.5045 — 6ठे द्वापरयुग में यम द्वारा वेदों का संपादन
- 9.0725 — 7वें द्वापरयुग में इन्द्र द्वारा वेदों का संपादन
- 8.6405 — 8वें द्वापरयुग में महर्षि वसिष्ठ द्वारा वेदों का संपादन
- 8.2085 — 9वें द्वापरयुग में सारस्वत द्वारा वेदों का संपादन
- 7.9925 —10वें त्रेतायुग में ब्रह्मा द्वारा प्रभास क्षेत्र में सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की स्थापना और सभामण्डप का निर्माण
- 7.7765 — 10वें द्वापरयुग में त्रिधामा द्वारा वेदों का संपादन
- 7.3445 — 11वें द्वापरयुग में त्रिशिख (कृषभ) द्वारा वेदों का संपादन
- 7.30 — 12वें सत्ययुग में ब्रह्मा के पुत्र पुलस्त्य ऋषि के क्रोध द्वारा (रावण के पिता) विश्रवा की उत्पत्ति
- 6.9125 — 12वें द्वापरयुग में सुतेजा द्वारा वेदों का संपादन
- 6.4805 — 13वें द्वापरयुग में धर्म (अन्तरिक्ष) द्वारा वेदों का संपादन
- 6.0485 — 14वें — द्वापरयुग में वर्णी द्वारा वेदों का संपादन
- 5.6029 — 15वें त्रेतायुग में सूर्यवंशीय सम्राट् मान्धाता का शासन
- 5.6165 —15वें द्वापरयुग में त्रय्यारुण द्वारा वेदों का संपादन
- 5.4005 — 16वें सत्ययुग में महर्षि दीर्घतमा
- 5.4005 — 16वें सत्ययुग में चन्द्रवंशीय दुष्यन्त-शकुन्तलापुत्र भरत
- 5.1845 — 16वें द्वापरयुग में धनञ्जय द्वारा वेदों का संपादन
- 4.7525 — 17वें द्वापरयुग में कृतुञ्जय द्वारा वेदों का संपादन
- 4.3205 — 18वें द्वापरयुग में जय द्वारा वेदों का संपादन
- 3.8855119 — 19वें त्रेता और द्वापर की सन्धि में भगवान् विष्णु का परशुराम-अवतार
- 3.8885 — 19वें द्वापरयुग में महर्षि भरद्वाज द्वारा वेदों का संपादन
- 3.4565 — 20वें द्वापरयुग में महर्षि गौतम द्वारा वेदों का संपादन
- 3.0245 — 21वें द्वापरयुग में हर्यात्मा (उत्तम) द्वारा वेदों का संपादन
- 2.5925 — 22वें द्वापरयुग में वाजश्रवा (नारायण) द्वारा वेदों का संपादन
- 2.1605 — 23वें द्वापरयुग में तृणबिन्दु (सोम मुख्यायन) द्वारा वेदों का संपादन
- 1.8149 — 24वें त्रेता के अन्त और द्वापर के आदि में महर्षि वाल्मीकि द्वारा वेदों का संपादन, ‘रामायण’ एवं ‘योगवासिष्ठ’ (महारामायण) की रचना
- 1.8149119 — 24वें त्रेता और द्वापर की सन्धि में भगवान् विष्णु का रामावतार
- 1.8138 — राम के पुत्र कुश का शासन
- 1.2965 — 25वें द्वापरयुग में शक्ति (अर्वाक्) द्वारा वेदों का संपादन
- लाख वर्ष पूर्व
- 86.45 — 26वें द्वापरयुग में पराशर ऋषि द्वारा वेदों का संपादन
- 43.25 — 27वें द्वापरयुग में जातुकर्ण द्वारा वेदों का संपादन
- 38.93113 (वैशाख शुक्ल तृतीया) — 28वें सत्ययुग का प्रारम्भ
- 21.65113 (कार्तिक शुक्ल नवमी) — 28वें त्रेतायुग का प्रारम्भ
- 21.65 — 28वें त्रेतायुग में ‘सूर्यसिद्धान्त’ की रचना
- 8.69119 — 28वें द्वापरयुग का प्रारम्भ
- 2.21119 — 28वें द्वापरयुग के तृतीय चरण की समाप्ति के समय संवरण के पुत्र राजा कुरु द्वारा धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की स्थापना
- 2.21113–2.09113 — राजा कुरु का शासन
- हजार वर्ष पूर्व (ईसा पूर्व)
- 3538–3138 : द्रोणाचार्य
- लगभग 3500–3000 : 28वें द्वापर के अन्त में भगवान् विष्णु के 20वें अवतार महाभारतकार महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास द्वारा वेदों एवं पुराणों का संपादन; ‘महाभारत’, ‘ब्रह्मसूत्र’ एवं ‘अध्यात्मरामायण’ की रचना
- 3300–2132 : मगध में बार्हद्रथ राजवंश (1168 वर्षों में 25 राजा)
- 3300 : (अनुमानित) जैन-वाङ्मय में वर्णित 23वें तीर्थंकर अरिष्टनेमिनाथ
- 3229 : धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म
- 3228 : 28वें द्वापरयुग के अन्त में भगवान् विष्णु का श्रीकृष्णावतार, ‘श्रीकृष्ण-संवत्’ का प्रारम्भ; भीम एवं दुर्योधन का जन्म; भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा शकट-भंजन
- 3228–3218 : भगवान् श्रीकृष्ण का व्रज में निवास
- 3227 : अर्जुन का जन्म; भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा त्रिणिवर्त-वध
- 3223 : भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अघासुर-वध
- 3222–3122 : महात्मा विदुर
- 3221 : (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी) भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन धारणकर इन्द्र का गर्वभंग
- 3218 : (कार्तिक शुक्ल चतुदर्शी) मथुरा में धनुष-यज्ञ
- 3213 : ( शुक्ल पूर्णिमा) पाण्डु का निधन
- 3193 : (फाल्गुन शुक्ल अष्टमी, रोहिणी नक्षत्र) पाण्डवों का हस्तिनापुर से वारणावत जाने के लिए प्रस्थान
- 3190 : (पौष शुक्ल एकादशी, रोहिणी नक्षत्र) द्रौपदी-स्वयंवर
- 3155–3138 : अभिमन्यु
- 3153 : भीमसेन द्वारा जरासन्ध-वध, मगध में सिंहासन पर जरासन्ध-पुत्र सहदेव का अभिषेक
- 3152 : इन्द्रप्रस्थ में राजसूय-यज्ञ
- 3152–3139 : कौरवों एवं पाण्डवों के मध्य द्यूत-क्रीड़ा, पाण्डवों को 12 वर्षों का वनवास एवं 1 वर्ष का अज्ञातवास
- 3139 : (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को भगवद्गीता का उपदेश
- 3139–3138 : कुरुक्षेत्र में महाभारत-युद्ध
- 3138 : (माघ शुक्ल अष्टमी) भीष्म पितामह का स्वर्गारोहण; (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) धर्मराज युधिष्ठिर का शासन प्रारम्भ, ‘युधिष्ठिर-संवत्’ का प्रवर्तन
- 3138–3102 : धर्मराज युधिष्ठिर का शासन
- 3118 : नागों की माता कद्रू द्वारा सौ वर्ष बाद जनमेजय के नाग-यज्ञ में नागों को भस्म होने का शाप
- 3102 : (माघ शुक्ल पूर्णिमा, 18 फरवरी, शुक्रवार) भगवान् श्रीकृष्ण का स्वर्गारोहण, 28वें कलियुग का प्रारम्भ
- 3102 : द्वारका नगरी का पतन
- 3102 : पाण्डवों का परीक्षित को राजगद्दी सौंपकर हिमालय प्रस्थान
- 3102–3042 : परीक्षित का शासन
- 3102 : वज्र यदुवंश का राजा बना
- 3071 : (भाद्रपद शुक्ल नवमी) शुकदेव मुनि ने राजा परीक्षित को भागवतमहापुराण की कथा सुनानी प्रारम्भ की
- 3042–2958 : जनमेजय का शासन
- 3018 (भाद्रपद कृष्ण पञ्चमी) : जनमेजय का नागयज्ञ स्थगित
- 2902 (आषाढ़ शुक्ल नवमी) : महर्षि गोकर्ण ने धुन्धुकारी को भागवत की कथा सुनानी प्रारम्भ की
- 2872 (कार्तिक शुक्ल नवमी) : सनकादि ने भागवत की कथा सुनानी प्रारम्भ की
- 2792-2718: आर्यभट्ट I
- 2742 : आर्यभट्ट I द्वारा ‘आर्यभट्टीयम्’ की रचना
- 2142–2042 : जैन-वाङ्मय में वर्णित 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ
- 2132–1994 : मगध में प्रद्योत-राजवंश (138 वर्षों में 5 राजा)
- 2102 : काश्यप-पुत्र कण्व मुनि का जन्म
- 1994–1634 : मगध में शिशुनाग-राजवंश (360 वर्षों में 10 राजा)
- 1900 (अनु.) : भूगर्भिक परिवर्तनों के कारण सरस्वती नदी राजस्थान के मरुस्थल में लुप्त
- 1887–1807 : बौद्ध-वाङ्मय में वर्णित 28वें बुद्ध सिद्धार्थ गौतम
- 1864–1792 : जैन-वाङ्मय में वर्णित 24वें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर
- 1748 : शिशुनाग-वंश के 8वें राजा उदीयन (उदायी, उदयाश्व) द्वारा कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) नगर की स्थापना
- 1634–1534 : मगध में नन्द-राजवंश (100 वर्षों में 9 राजा)
- 1534–1218 : मगध में मौर्य-राजवंश (316 वर्षों में 12 राजा)
- 1534–1500 : चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन
- 1500–1472 : बिन्दुसार का शासन
- 1472–1436 : अशोक का शासन
- 1294–1234 : कनिष्क का शासन, इसी काल में आयुर्वेदाचार्य चरक हुए
- 1218–918 : मगध में शुंग राजवंश (300 वर्षों में 10 राजा)
- 918–833 : मगध में कण्व राजवंश (85 वर्षों में 4 राजा)
- 833–327 : मगध में आंध्र राजवंश (506 वर्षों में 32 राजा)
- 557–492 : कुमारिल भट्ट
- 509–477 : आदि जगद्गुरु शंकराचार्य
- 433–418 : आन्ध्रवंशीय नरेश गौतमीपुत्र श्रीशातकर्णि का शासन
- 327–82 : मगध में गुप्त राजवंश (245 वर्षों में 7 राजा)
- 327–320 : चन्द्रगुप्त का शासन
- 326 : सिकन्दर का आक्रमण
- 320–269 : समुद्रगुप्त का शासन
- 102 : सम्राट् शकारि विक्रमादित्य का जन्म
- 97–85 : विक्रमादित्य की तपश्चर्या
- 96 (चैत्र शुक्ल अष्टमी) : महान् खगोलविद् एवं गणितज्ञ वराहमिहिर का जन्म
- 62–57 : भर्तृहरि का शासन
- 57 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 22 फरवरी) : शकारि विक्रमादित्य द्वारा ‘विक्रम संवत्’ का प्रवर्तन
- 57 ई.पू.– 43 ई. : सम्राट् शकारि विक्रमादित्य का शासन
- 55 : हरिस्वामी द्वारा शतपथब्राह्मण पर भाष्य-रचना
- 35 : भर्तृहरि का स्वर्गारोहण
- 34 : कालिदास द्वारा ‘ज्योतिर्विदाभरण’ की रचना
- ईसवी सन्
- 43 : भरतखण्ड में 18 राज्यों की स्थापना
- 43–53 : विक्रमादित्य के पुत्र देवभक्त का शासन
- 53–113 : विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन का शासन
- 78 (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, 3 मार्च) : शालिवाहन द्वारा ‘शालिवाहन-संवत्’ का प्रवर्तन
- 569–603 : उदयपुर-नरेश गुहिल
- 598–668 : ब्रह्मगुप्त
- 606–647 : सम्राट् हर्षवर्धन का शासन
- 638 : भारतवर्ष पर प्रथम मुस्लिम-आक्रमण
- 734–753 : उदयपुर-नरेश कालभोज (बाप्पा रावल)
- 736–754 : इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के तोमर वंश के संस्थापक राजा अनंगपाल
- 1114–1185 : भास्कराचार्य II
- 1179–1192 : दिल्ली के चौहानवंशीय नरेश पृथ्वीराज III चौहान
- 1192 : तराईन के युद्ध में मुहम्मद सहाबुद्दीन गोरी के हाथों पृथ्वीराज III चौहान की पराजय
- 1192–1757 : सम्पूर्ण भारतवर्ष पर विभिन्न मुस्लिम-राजवंशों का शासन (565 वर्ष)
- 1757–1947 : ब्रिटिश शासन (190 वर्ष)
- 1857–1859 : महान् स्वाधीनता संग्राम
- 1947 (14-15 अगस्त) : भारतवर्ष का विभाजन