पोद्दार रामावतार 'अरुण'
पोद्दार रामावतार ‘अरुण’ (२४ नवम्बर १९२३ -- ७ नवम्बर १९९९ ) , हिन्दी साहित्य के महान शब्द-शिल्पी और भारतीय संस्कृति के अमर गायक थे। वे बड़ी बातें, अत्यंत सहजता से अति सरल शब्दावली में कहते हैं। उनकी भाषा और शैली ‘वार्तालाप’ की है। १९६६ में उनके विपुल साहित्यिक अवदानों के लिए उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी विभूषित किया। १९७६ में वे साहित्य-सेवा की कोटि से बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य भी रहे।
जीवन परिचय
इनका जन्म २४ नवम्बर १९२३ को बिहार के समस्तीपुर के पेठिया गाछी मुहल्ले में हुआ था। सामान्य परिवार में जनमे रामावतार पाँच भाइयों और दो बहनों में सबसे बड़े थे। किन्हीं कारणों से उनकी स्कूली पढ़ाई प्रवेशिका से आगे नहीं बढ़ पाई, लेकिन जिंदगी की पाठशाला में उन्होंने बहुत कुछ सीखा। यह उनकी स्वाध्याय और साधना का ही प्रतिफल था कि वे साहित्य की दुनिया में हमेशा चमकते रहे। [1]
उनकी पहली कृति 'अरुणिमा' 1941 ई. में प्रकाशित हुई। उन्होंने करीब चार दर्जन कृतियों की रचना की जिनमें दो दर्जन से अधिक महाकाव्य और प्रबन्धकाव्य हैं। कहा जाता है कि उनमें कविता के मर्म और सौंदर्य-बोध को पकड़ने की विलक्षण प्रतिभा थी। उन्होंने गीतमालाओं द्वारा अपने प्रबन्धकाव्य एवं खंडकाव्यों को सुरम्य शब्द चयन से पिरोया है। वे अपने समकालीन पीढ़ी के श्रेष्ठ काव्यकार थे। वे मन से उस विश्व में 'विहार' करते थे जो विद्यापति और सूरदास का विश्व है, जो महावीर और जनक विदेह का विश्व है। इनकी काव्य भाषा में मृदुलता, सरलता, मधुरता और लावण्य का अपूर्ण संयोग है। उनके सभी प्रबंध काव्य एवं गीत, मधुर छंदों की चित्रशाला है, जिनके कथानक गीतों में गुंफित हैं। स्वर, ताल, लय से समन्वित उनकी रचनाएँ विलक्षण आभा प्रस्तुत करती है।
वे दस वर्षों तक फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य भी रहे। महाकवि पोद्दार रामावतार अरुण का निधन 7 नवम्बर, 1999 को हो गया।
कृतियाँ
पोद्दार रामावतार मसीजीवी साहित्यकार थे। जीवन-पर्यन्त लिखते रहे। काव्य की सभी विधाओं पर लिखा। महाकाव्य, खंड काव्य, गीति-काव्य, आत्म-कथा, उन्होंने सबको मूल्य और प्रतिष्ठा दी। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- कृष्णाम्बरी
- अरुण रामायण
- महाभारती
- शकुन्तला की विदाई
- विद्यापति
- सुर श्याम
- विश्वमानव
- स्वर्ग-शृंगार
- कालिदास
- विदेह आम्रपाली
- गोहया
- अशोक पुत्र
- वाणाम्बरी
- कालदर्पण
- राष्ट्र संघर्ष
- राष्ट्र शत्रु
- कोशो
- कार्ल मार्क्स
- भगवान बुद्ध की आत्मकथा
- गुरु गोविंद सिंह की आत्मकथा
- नालन्दा की आत्मकथा
- बोलती रेखाएँ
- अरुणायन
- एक आत्मकथा
उनकी कुछ पांडुलिपियाँ अब भी अप्रकाशित हैं।
सम्मान
उनकी इस साहित्य साधना को अनेक सम्मान मिले जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं-
- मीरा सम्मान
- कालिदास सम्मान
- फादर बुल्के सम्मान
- महाकैर व्यास साहित्य भूषण सम्मान
- विद्यासागर सम्मान
- पद्मश्री (१९६६)
सन्दर्भ
- ↑ बिहार शताब्दी के १०० नायक (पृष्ठ ९५)