पिता
पिता के रहने तक.... प्रौढ़ हो चुके व्यक्तियों के भीतर भी जीवित रहता है एक अबोध बालक जो पिता के जाने के बाद उनके साथ चला जाता है
छोटे अबोध बच्चों के भीतर छुपा होता है एक समझदार इंसान जो पिता के आंख मूंदने पर जाग जाता है
पिता अकेले नहीं जाते बचपन, चंचलता और खिलखिलाहट साथ ले जाते हैं और पीछे छोड़ जाते हैं सागर से भी गहरी रिक्तता जिसे संसार की कोई भी दिलासा कभी भर नहीं सकती :- लोकेंद्र शर्मा, जिला-डीग, संभाग-भरतपुर
शब्द-साधन
वर्तमान हिन्दी शब्द पुरातन संस्कृत शब्द 'पितृ' से आया है जिसके सजातीय शब्द हैं: लातीनी pāter (पातर), युनानी πατήρ, मूल-जर्मेनिक fadēr (फ़ादर) (पूर्वी फ़्रिसियायी foar (फ़ोवार), डच vader (फ़ादर), जर्मन Vater (फ़ातर))।
समानार्थी शब्द
- बाप
- वालिद
- बापू
- बाबा
- अब्बा
- पापा
- पिता
- बाबू
महत्व
रिवायती तौर पर पिता का बच्चों के प्रति सुरक्षा, सहायता और ज़िम्मेदारी वाला रवैया होता है। पिता सिर्फ़ जैविक ही नहीं बल्कि पालनहार पिता भी हो सकता है। मानवविज्ञानी मॉरिस गोडेलियर के मुताबिक़ मानवीय पिता द्वारा धारण की गई पितृ-भूमिका, मानवीय समाज और उनके सबसे नज़दीकी जैविक रिशतेदार—चिम्पांज़ी और बोनोबो— में एक आलोचनात्मक फ़र्क़ है क्योंकि यह जानवर अपने पितृ-संबंध से अनजान होते हैं।