पारिजात (लेखिका)
पारिजात | |
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जन्म | 1937 दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल, भारत |
मौत | 1993 काठमाण्डू, नेपाल |
पेशा | लेखिका |
राष्ट्रीयता | नेपाली |
पारिजात एक नेपाली लेखिका थीं। उनका असली नाम विष्णु कुमारी वाइबा (वाइबा तमांग की एक उपसमूह है) था। सृजन के दौरान वे अपने नाम के साथ उपनाम के रूप में पारिजात (पारिजात एक प्रकार के सुगंधित चमेली के फूल का नाम है) का प्रयोग किया करते थे। धीरे-धीरे उनका यह नाम नेपाली साहित्य में मील का पत्थर बनता चला गया। उनकी रचना सिरीस को फूल (ब्लू छुई मुई) सर्वाधिक चर्चित रचनाओं में से एक है, जो भारत, नेपाल सहित कुछ अंग्रेजी भाषी देशों में कुछ कॉलेजों के साहित्य के पाठ्यक्रम में रूपांतरित किया गया है।
प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा
पारिजात दार्जिलिंग के पहाड़ी स्टेशन, जो अपनी चाय बागानों के लिए विख्यात है, में 1937 में पैदा हुयी थीं। जब वह काफी छोटी थी तब उनकी माँ अमृत मोक्तन का देहावसान हो गया। ऐसी परिस्थिति में पारिजात की परवरिश उनके नाना डॉ॰ के.एन.वाइबा द्वारा की गयी, जो एक मनोवैज्ञानिक थे।
जहां पारिजात का जन्म हुआ वह शहर दार्जिलिंग उस समय नेपाली भाषा, संस्कृति और साहित्य का एक प्रमुख केंद्र था। हालांकि आज भी दार्जिलिंग नेपाली लोगों का निवास है और नेपाली भाषा, संस्कृति तथा साहित्य के एक प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। नेपाल के साथ एक करीबी रिश्ता साझा करने के साथ-साथ यह शहर साहित्य के विकास में भी एक प्रभावशाली भूमिका निभाई है। यही कारण है, कि तमाम जटिलताओं के वाबजूद पारिजात का बचपन नेपाल और नेपाली साहित्य से जुड़ा रहा और एक सशक्त लेखिका के रूप में उन्हें अपनी पहचान बनाने में उनकी मदद करता रहा।
पारिजात ने दार्जिलिंग में अपनी स्कूली शिक्षा का हिस्सा पूरा करने के बाद 1954 में काठमांडू, नेपाल चली आयी, जहां पद्मा कन्या स्कूल में उन्होने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और आर्ट्स में स्नातक की डिग्री ली। 26 साल की उम्र में, जल्दी ही शारीरिक रोगों से पीड़ित होने के कारण वे आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकीं। उनके लकवाग्रस्त हो जाने के कारण उनकी देखरेख लंबे समय तक उनकी बहन ने किया।[1]
साहित्यिक गतिविधियां
पारिजात की पहली कविता 1959 में, धार्त द्वारा प्रकाशित किया गया था। आकांक्षा, पारिजात की कविता और बाइसलु वर्तमान सहित उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित है। उनकी पहली लघु कहानी मैले नजनमाएको चोरो थी। वे नेपाल में एक सशक्त उपन्यासकार के रूप में जानी जाती है। उन्होने दस उपन्यास लिखे, जीनामे से सिरीस को फूल सर्वाधिक लोकप्रिय रचनाओं में से एक है। उन्हें 1965 में इसी उपन्यास के लिए मदन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उन्हें सर्वश्रेष्ठ पाण्डुलिपि पुरस्कार, गंडकी बसुन्ब्धारा पुरस्कार आदि से भी अलंकृत किया गया। सिरीस को फूल उनके द्वारा नेपाली साहित्य के महत्वपूर्ण सृजन में से एक माना जाता है।
वे त्रिभुवन विश्वविद्यालय के निर्वाचित सदस्य और रलफ़ा साहित्य आंदोलन का एक हिस्सा थी। उन्होने प्रगतिशील एसआईएल लेखन संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अखिल नेपाली महिला मंच, बांदी सहायता नियोग और नेपाल मानव अधिकार संगठन के लिए भी काम किया। वे अविवाहित रहीं और शारीरिक विकलांगता के वाबजूद सृजनधर्मिता को लगातार जारी रखा। 1993 में उनकी मृत्यु हो गई।[2]
ग्रंथ सूची
- उपन्यास
- शिरिषको फूल
- महत्ताहिन
- परिभाषित आँखाहरु
- बैशको मान्छे
- तोरीबारी, बाटा, र सपनाहरु
- अन्तर्मुखी
- उसले रोजेको बाटो
- पर्खाल भित्र र बाहिर
- अनिदो पहाड संगै
- बोनी
- लघु कथा
- मैले नजन्माएको छोरो
- कहानी संकलन
- आदिम देश
- सडक र प्रतिभा
- साल्गीको बलात्कृत आँसु
- बधशाला जाँदा आउँदा
- कविता संग्रह
- आकांक्षा
- पारिजातका कविता
- बैशालु वर्तमान
- संस्मरण निबंध
- धूपी, सल्ला र लालीगुराँसको फेदमा
- एउटा चित्रमय सुरुवात
- अध्ययन र संघर्ष
इसे देखें
सन्दर्भ
- ↑ "Remembering Parijat". मूल से 18 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जून 2013.
- ↑ "Love Literature and Parijat". मूल से 19 सितंबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जून 2013.