पट्टीआरा
![](https://upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/4/44/Bandsaw_at_Lowes.jpg/150px-Bandsaw_at_Lowes.jpg)
जिस प्रकार मशीनों को चलाने के लिये चालक पुली से चालित पुली पर चमड़े की पट्टी चढ़ाकर काम लिया जाता है, उसी प्रकार पट्टीआरा (Band Saw) मशीन में समान व्यासवाली चालक और चालित पुली पर इस्पात की पट्टी चढ़ाकर, जिसके एक किनारे अथवा दोनों किनारों पर दाँत बने होते हैं, लकड़ी, लोहा आदि धातुओं, रबर, प्लास्टिक आदि पदार्थ और यहाँ तक कि सूखा बरफ और मांस आदि, काटने का काम किया जाता है। भिन्न भिन्न पदार्थो को काटने के लिये आरे की पट्टी की चौड़ाई, मोटाई, प्रति इंच दाँतों की संख्या और उसके घूमने की गति भिन्न-भिन्न होती है।
कटाई की इस विधि का आविष्कार इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम विलियम न्यूबेरी ने सन् १८०८ में किया था। आरंभ में इस प्रकार के आरे का बताना बड़ा ही व्ययसाध्य कार्य था और काम भी बड़ी मंद गति से होता था। आजकल तो यह विशालोत्पादन (mass production) का एक साधारण सा उपकरण समझा जाता है। इन मशीनों पर इंच से लेकर इंच तक चौड़ी आरी की पट्टी चढ़ाकर, विविध पदार्थों के तख्तों को अनेक प्रकार की टेढ़ी मेढ़ी आकृतियों में काटा जा सकत है। इसकी मेज को यांत्रिक विधि से तिरछा कर, तिरछे किनारे भी काटे जा सकते हैं और उनके साथ उचित प्रकार की गाइडें और स्वचल प्रयुक्तियाँ लगाकर, काटे जानेवाले सामान को आगे पीछे स्वत: भी चलाया जा सकता है, जिससे यंत्र संचालक का काम सरल हो जाता है। जिन पट्टीआरों के दोनों किनारों पर दाँत होते हैं, सामान को आगे सरकते और पीछे लौटते समय दोनों ओर से काट सकते हैं, जिससे समय की काफी बचत हो जाती है।
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