नम्रता
"नम्रता" मानव व्यवहार और प्रकृति का सर्वोच्च अलंकार है। इसका शाब्दिक अर्थ "मृदुता" होता है। यह नीति परायणता, विनम्रता, प्रशिक्षण और धैर्य रूप में दृष्टिगोचर होती है। भारतीय इतिहास पर अगर दृष्टि डाली जाए तो संभवत "नम्रता " ही समाज निर्माण के प्रथम चरण का भाव होगा । गुरु शिष्य परंपरा का आधारभूत स्तंभ के रूप में समर्पण भाव जब जागता है उसी के साथ नम्रता भी स्वभाव में सम्मिलित हो जाती हैं।
दर्शन जो बार बार दुखों से मुक्ति की बात करता है उसका अगर ठीक ढंग से विवेचन किया जाए तो जिसने जीवन में यह सीख लिया उसे स्वत: ही मुक्तिबोध प्राप्त हो जाता है। बुद्ध , महावीर , नानक , दादू ,ओशो , कबीर , गांधी , ईसा ,....,आदि मानवता के बंधुओ ने संभवत अपनी शिक्षाओं में इसी भाव को जगाने पर कहा ।
प्रेमी युगल में द्वैत भाव इसके द्वारा समाप्त किया जा सकता है। क्राईनिस्ट का कथन है ,"नम्रता मानव में उत्पत्ति/सृजन का मूल स्रोत हैं और जीवन के संचालन में अहम भूमिका निभाता है।
उदाहरण
- नम्रता हर किसी का हृदय जीत सकती है।
- जीवन का मूल भाव है "नम्रता "
- मानव का स्वभाव है "नम्रता"
- सृष्टि उत्पति की कारक "नम्रता"
- प्रेम का मूल प्रकृति "नम्रता"
- व्यवहार में सबसे श्रेष्ठ "नम्रता"
- बड़े में बड़े होने को दिखाए "नम्रता"
- समझदारी की संगिनी "नम्रता"
- पत्थर दिल पिघला दे वो है "नम्रता"
- जो ईश्वर से मिला दे वो "नम्रता"
मूल
- नम्रता संस्कृत मूल का शब्द है।
अन्य अर्थ
नम्रता मानव जीवन का सबसे सुंदर अलंकार है। व्यक्ति इस भाव के द्वारा हरेक कार्य को बहुत ही सहज भाव से कर सकता है और जीवन में उन्नति की नवीन ऊंचाइयों को छू सकता है। नैतिक शिक्षा केवल और केवल एक ही लक्ष्य तक मनुष्य को ले जाती हैं । मानव के मन में इस भाव को पैदा करना की नम्र हो जाए क्योंकि ईश्वरीय उत्पत्ति में इसी परम बोध को जो प्राप्त हो जाए वो निश्चय ही निर्वाण को प्राप्त हो जाता है।
समानार्थी शब्द
- शिष्टता
- भद्रता