नंदकिशोर कौशिक
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नंदकिशोर कौशिक
नंदकिशोर कौशिक | |
जन्म | 15मार्च 1961 पिसावा अलीगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत |
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शिक्षा | एम ए , बीएड |
व्यवसाय | लेखक, हिन्दी साहित्यकार, कवि, विद्वान, कहानीकार, उपन्यासकार |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
उल्लेखनीय कार्य | फक्कड़, वंचित, निरता, धर्मनिष्ठ , पुरुस्कार, अलग्योझा, झाड़ी की आवाज़ |
सम्प्रति | स्वतंत्र लेखन |
जीवन-परिचय
नंदकिशोर कौशिक समकालीन हिंदी साहित्य की कहानी विधा में अलग पहचान रखने वाले साहित्यकार हैं जो ग्रामीण इलाकों की अलग तस्वीर प्रस्तुत करते हुए ,महान फणीस्वरनाथ रेणु जी की आंचलिक कथा श्रेणी को आगे बढ़ाते हुए सबसे आगे दिखाई देते हैं ।नन्दकिशोर कौशिक जी का जन्म 15 मार्च 1961 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के पिसावा कस्बे में हुआ । बचपन से ही इनको कहानी लिखने का शौक था। इन्होंने अपनी शिक्षा डॉ संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस से पूरी की। शिक्षा में रुचि होने के कारण पंडित जी ने 1988 में एक शिक्षण संस्थान की स्थापना की । माता पिता की सेवा और पारिवारिक कारणों की वजह से इनकी साहित्य साधना में कुछ व्यवधान हुआ । इस दौरान भी इन्होंने काफी कुछ लिखा जो मूलतः अप्रकाशित ही था । इनकी पहली कहानी धर्मनिष्ठ हिंदी की प्रतिष्ठित मासिक पत्रिका साहित्य अमृत, जिसके संस्थापक संपादक पंडित विद्यानिवास मिश्र जी थे, तथा तत्कालीन संपादक डॉ त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी जी के संपादन में छपी । इस कहानी के बाद अनेक हिंदी की अनेको प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में अनेकों कहानी कविताएं प्रकाशित हुईं जिनमे प्रमुख चर्चित कहानियां फक्कड़, निरता, पुरुस्कार , अलग्योझा ,वंचित आदि को पाठको की बहुत शानदार प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं इनकी लेखन शैली में हमेशा यथार्थवादी भावपूर्ण,,मार्मिक और समाज के तत्कालीन मुद्दों पर आधारित और समाज के झूठे दिखावे और बनावटीपन का सदैव विरोध था स्वभाव से सरल और एकदम शांत पंडित जी ने अपने विचारों का प्रयोग अपनी कहानियो में भरपूर किया । बात चाहे वंचित कहानी की हो, वंचित कहानी से -"भले और समझदार मनुष्य हमेशा भले ही रहते हैं, चाहे अमीरी हो अथवा गरीबी। " या झाड़ी की आवाज से -यह शिक्षा का कैसा प्रसार कहीं तो देश में गांव के लाल मौत से जूझ कर शिक्षा पाते हैं । और कहीं अच्छे हॉस्टलों में रहकर स्वर्ग का आनंद लेते हैं । यह सब भारत की असमान शिक्षा का ही परिणाम है । जो शायद कभी खत्म नहीं होगी । क्योंकि गांव और शहर का भेद इस अभिशाप से उभरने नहीं देगा"। उपरोक्त विचार एक हालात से जूझे हुए मनुस्य की संवेदनाओ को सार्थक रूप से प्रस्तुत करते हैं। इनकी कहानी फक्कड़ एक आंचलिक कथा है जिसमें गांव गिराज के लोगों के बारिश न होने के कारण समाज में प्रचलित प्राचीन व्यवस्था का सुंदर वृतांत के दर्शन होते हैं।
प्रमुख पुरस्कार एवं उपलब्धि
- साहित्य साधना सम्मान
सन्दर्भ
- https://hanshindimagazine.in/
- http://sahityaamrit.in Archived 2023-06-06 at the वेबैक मशीन
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
रचनाएँ
- धर्मनिष्ठ
- फक्कड़
- निरता
- अलग्योझा
- मुसाफिर खाना
- झाडी की आवाज
- वंचित
- पुरुस्कार
- सावित्री आदि
प्रमुख पुरस्कार एवं उपलब्धि
- साहित्य साधना सम्मान
सन्दर्भ
- http://sahityaamrit.in
- https://hanshindimagazine.in/