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धरन

समान रूप से वितरित लोड के कारण एक धरन में नमन (बेन्डिंग)

धरन (Beam) अथवा धरनी, धरणी, या कड़ी, संरचना इंजीनियरी में प्राय: लकड़ी आदि के उस अवयव को कहते हैं जो इमारत में किसी पाट पर छत (पाटन) आदि का कोई भारी बोझ अपनी लंबाई पर धारण करते हुए उसे अपने दोनों सिरों द्वारा सुस्थिर आधारों (आलंबों) तक पहुँचता है। लकड़ी के अतिरिक्त अन्य पदार्थों की भी धरनें बनती हैं। लोहे की धरनें गर्डर कहलाती हैं। प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete) की धरनें प्राय: छत के स्लैब के साथ समांग ढाली जाती हैं। पन्ना (मध्यप्रदेश, भारत) की पत्थर की खानों के निकट पत्थर की धरनों का प्रयोग भी असामान्य नहीं हैं।

धरन कैसे कार्य करती है?

पोलैण्ड के एक घर में लगी धरनें

धरनों पर भार आड़ा (vertical) पड़ता है। भार के कारण आलंबों (supports) में प्रतिक्रिया (reaction) होती है और धरन में नमन (deflection)। नमन का केंद्र जिधर होता है उस ओर के तल में दबाव (compression) की प्रवृत्ति होती है और उसके विपरीत तल में तनाव (tension) की। पाट के मध्य में प्राय: ऊपर की ओर दबाव और नीचे की ओर तनाव होता है। यदि आलंबों पर धरन पूर्णतया मुक्त (freely supported) न हो तो वहाँ ऊपर की ओर तनाव और नीचे की ओर दबाव होता है, अर्थात् वहाँ नमन उलटा (ऋणात्मक) होता है। बाहुधरन केवल एक ओर आलंब में जकड़ी होती है। अत: इसमें पूर्णतया ऋणात्मक नमन होता है।

तनाव और दबाव के तलों के बीच में एक तल ऐसा भी होता है जहाँ पहुँचते पहुँचते तनाव शून्य हो जाता है और फिर दबाव आरंभ होता है। यह निर्विकार (neutral) तल कहलाता है। लकड़ी की धरनें प्राय: चौकोर होती हैं और निर्विकार तल उनके मध्य में होता है। लोहे की धरनें प्राय: I आकार की काटवाली होती हैं। इसमें नीचे और ऊपर की ओर, जहाँ अधिकतम प्रतिबल (दबाव या तनाव) होता है, पर्याप्त धातु रहती है; और बीच में उनको मिलाने के लिए अपेक्षाकृत बहुत थोड़ी। इस प्रकार चौकोर काट की अपेक्षा इसमें धातु की बचत भी हो जाती है और अनवाश्यक भार भी नहीं बढ़ता।

तीन अलग-अलग परिच्छेद वाली धरनें

प्रबलित कंक्रीट (Reinforced concrete) की धरनें भी इसी आधार पर बनती हैं। कंक्रीट की विशेषता है कि तनाव में कमजोर रहता है, अत: वहाँ आवश्यकतानुसार इस्पात की छडें रख दी जाती हैं जो तनाव ले लेती हैं। सुविधा की दृष्टि से बहुधा इनका आकार चौकोर ही होता है। यदि स्लैब के साथ ये समांग होती हैं, तो ऊपरी तट बहुत चौड़ा हो जाता है, जैसे लोहे की I धरन में, किंतु नीचे का भाग चौकोर ही रह जाता है। इस प्रकार ये (T) धरनें बन जाती हैं। बहुत बड़े पाटों पर आजकल कंक्रीट की पूर्व प्रतिबलित धरनें प्राय: लगाई जाती हैं।

देहात में गोल लकड़ी की धरनें भी लगती हैं। वे चौकोर धरनों की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होती हैं, क्योंकि उनमें चिराई नहीं होती जिससे रेशे कटने और फलत: कमजोरी आने का भय नहीं रहता। चौकोर धरनों की मजबूती बढ़ाने के लिए कभी कभी लकड़ी की दो कड़ियों के बीच इस्पात की प्लेट रखकर काबलों से कस देते हैं। इसे मिश्रित धरन कहते हैं।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ