तिवाला (यह मौर्य सम्राट अशोक की पत्नी करुवाकी से उत्पन पुत्र था )
माता
सकारुवाकी
धर्म
बौद्ध धर्म
दशरथ मौर्यमौर्य राजवंश के राजा थे। वो सम्राट अशोक के पौत्र थे।[1]इसने आजीवक संप्रदाय के अनुयायियों को नागार्जुन गुफा प्रदान की थी।इन पहाड़ियों की गुहाओं पर उत्कीर्ण अभिलेखों को पढ़ने से ज्ञात होता हैं कि अपने दादा सम्राट अशोक की भाँति दशरथ भी बौद्ध अनुयायी होने कर कारण देवताओं का प्रिय अर्थात देवानाम्प्रिय नामक नाम से जाना जाता था।[2]
शासन व्यवस्था
दशरथ के समय में भी मागध साम्राज्य का पतन जारी रहा। इनके अंधे हो जाने और काम दूरदर्शी होने के दक्षिणपथ मौर्य शासन व्यवस्था से अलग हो गए।[3]
न्याय व्यवस्था
चोरी डकैती व लूट के मामले , मानहानि, कुबचन, मार-पीट सम्बन्धी मामले भी धर्मस्थीय न्यायालय में लाए जाते थे। जिन्हें वाक पारुष या दण्ड पारुष कहा जाता है। जनपद न्यायाधीश को रज्जुक कहा जाता था और व्यावहारिक महामात्र को नगर न्यायधीश कहा जाता था।उस समय सबसे निचले स्तर पर ग्राम न्यायालय था जहां ग्राम के बूढ़े और अन्य ग्रामीण फैसला करते थे। 'द्रोण-मुख' एवं संग्रहण स्थानीय तथा जनपद स्तर के न्यायालय होते थे।[4] द्रोण न्यायालय के अधीन 400 ग्राम होते थे। |[5]
धर्मस्थीय न्यायालयों के अंतर्गत न्याय धर्मशास्त्र में दक्ष तीन धर्मरथ या व्यावहारिक एवं अमात्य मिलकर न्याय किया करते थे। इनका रूप एक प्रकार से दीवानी अदालतों की तरह होता था।“कण्टक शोधन' न्यायालयों के अंतर्गत तीन प्रवेष्टि एवं तीन अमात्य मिलकर न्याय करते थे। उनके न्याय का विषय राज्य एवं व्यक्ति के बीच का विवाद होता था। इसका रूप एक तरह से फौजदारी आदालतों जैसा होता था।[6]
कला और साहित्य
उस काल में मौर्यों ने वास्तुकला में उल्लेखनीय योगदान दिया और व्यापक पैमाने पर पत्थर की चिनाई की शुरुआत की।[7]
सामाजिक व्यवस्था
दशरथ मौर्य के काल तक समाज में वर्ण व्यवस्था का प्रचलन बढ़ने लगा था । ६ वर्गीय समाज ४ वर्गीय समाज बनने की ओर बढ़ रहा था।[8]
आर्थिक स्थिति
करों को कम करने से सामान्य जन की आर्थिक स्थिति में सुधार हुवा किन्तु राजकीय कोष पर इसका बुरा असर पड़ा।
अनुवाद : तदनन्तर इन नवो नन्दोको कौटिल्य नामक एक ब्राह्मण नष्ट करेगा, उनका अन्त होने पर मौर्य नृपतिगण पूर्ण पृथिवी पर राज करेंगे। कौटिल्य चन्द्रगुप्त को राज्याभिषिक्त करेगा ।।२६-२८।। चंद्रगुप्त का पुत्र बिन्दुसार, बिन्दुसार का अशोकवर्धन, अशोकवर्धन का सुयश, सुयश का दशरथ, दशरथ का संयुत, संयुत का शालिशूक, शालिशूक का सोमशर्मा, सोमशर्मा का शतधन्वा तथा शतधन्वा का पुत्र बृहद्रथ होगा। इस प्रकार एक सौ तिहत्तर वर्षतक ये दस मौर्यवंशी राजा राज्य करेगे ॥ २९-३२॥
राजा दशरथोऽष्टौ तु तस्य पुत्रो भविष्यति । भविता नव वर्षाणि तस्य पुत्रश्च सप्ततिः ॥ इत्येते दश मौर्यास्तु ये भोक्ष्यन्ति वसुंधराम्। (मत्स्य पुराण : अध्याय 272 : श्लोक 25)[10]
अनुवाद : उसका पुत्र दशरथ होगा, जो आठ वर्षों तक राज्य करेगा। तदनन्तर उसका पुत्र उन्नासी वर्षों तक राज्य करेगा। ये दस मौर्यवंशीय राजा एक सौ सैंतीस वर्षों तक पृथ्वी पर शासन करेंगे।
सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य
नागार्जुनी पहाड़ी पर 3 गुफाएँ हैं इन गुफाओं का निर्माण अशोक के पौत्र दशरथ मौर्य ने आजीविकों के लिए करवाया - वहियक गुफा, गोपिका गुफा, वडथिका गुफा, इन तीनों गुफाओं को दशरथ ने आजीवकों को दान दिया था। “लोमश ऋषि गुफा” का निर्माण दशरथ ने करवाया था । लोमेश ऋषि गुफा का प्रवेश द्वारा उत्कीर्ण शिल्प से अलंकृत है।
१ — वहियक कुभा दषलथेन देवानांपियेना २ — आनन्तलियं अभिषितेना आजीवकेहि ३ — भदन्तेहि वाष-निषिदियाये निषिठे ४ — आ-चन्दम-षूलियं
हिन्दी अनुवाद - वहियक गुफा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषिक्त होने के तत्काल बाद आनन्तर्य, बिना अन्तर आजीवक भिक्षुओं के निषिद्धवास ( वर्षाकाल में जब भिक्षु बाहर नहीं जा सकते थे ) के लिए बनवाया। जब तक सूर्य-चन्द्र रहें।
१ — गोपिका कुभा दषलथेना देवानंपि- २ — येना आनन्तलियं अभिषितेना आजी- ३ — विकेहि भदन्तेहि वात-निषिदियाये ४ — निसिठा आ-चन्दम-षूलियं हिन्दी अनुवाद - गोपिका गुहा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषेक होने के बाद ही आजीवक भदन्त भिक्षुओं के निषिद्ध-वास के लिए बनवाया। जब तक चन्द्र-सूर्य रहें।
१ — वडथिका कुभा दषलथेना देवानं- २ — पियेना आनन्तलियं अभिषेतना [आ] ३ — [जी] विकेहि भदन्तेहि वा[ष-निषि] दियाये ४ — निषिठा आ चन्दम-षूलियं हिन्दी अनुवाद - वडथिका गुहा देवताओं के प्रिय दशरथ ने अभिषेक होने के बाद ही आजीवक भिक्षुओं के निषिद्धवास के लिए बनवाया। जब तक चन्द्र-सूर्य रहें।
↑आषा विष्णु; Material Life of Northern India: Based on an Archaeological Study, 3rd Century B.C. to 1st Century B.C. मित्तल पब्लिकेशन्स, 1993, ISBN 978-8170994107. पृष्ठ 3.
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