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तेली

मराठी तेली संत संताजी की रायपुर छत्तीसगढ़ में स्थापित प्रतिमा
बैल से चलने वाली परम्परागत कोल्हू और उस पर बैठा तेली बालक

तेली परंपरागत रूप से भारत, पाकिस्तान और नेपाल में तेल उत्पाद करने और बेचने वाले साहूकार और तेल के व्यापारी लोग है। जिन्हे वर्तमान में मोदी , साहू , गुप्ता , राठौर , वानियार चेट्टियार , गनीगा ,घांची के नाम से जाना जाता है। तेली शब्द को संस्कृत में तैलिक कहते है। तेली समाज के लोग हिंदू, जैन, बौद्ध ,पारसी और मुस्लिम इन सभी धर्मो में पाए जाते हैं।

तेली शब्द संस्कृत के शब्द 'तैलिका' या 'तैला' से लिया गया है जिसका अर्थ है तिल या सरसों के बीजों से तेल निकालना। उत्तर प्रदेश में तेली जाति के कई उप-वर्ग हैं। वे गुप्ता, साहू, राठौर आदि उप-नाम के रूप में प्रयुक्त करते हैं। उनमें से बहुत से लोग अपने को वैश्य वर्ण का मानते हैं। वे अवधी एवं हिन्दी बोलते हैं। मुसलमानों में भी एक छोटा वर्ग तेली का है और यह उनकी एक पेशेवर जाति है। उनमें कोई सामाजिक विभाजन नहीं है। वे सुन्नी वर्ग से सम्बन्धित हैं। वे मुस्लिम सन्तों की दरगाहों पर जाते हैं और ग़ाज़ी मियाँ पर चढ़ावा चढ़ाते हैं। हज़रत निजामुद्दीन, देवा शरीफ़ व अजमेर शरीफ़ के मज़ार उनके पुण्य स्थल हैं। जीविका के रूप में वे मुख्यतया कृषि कार्य में लगे हैं परन्तु तेल के व्यवसाय में भी लिप्त हैं। कुछ लोग अकुशल श्रमिक के रूप में भी कार्य करते हैं। तेली जाति का पारम्परिक व्यवसाय तेल निकालना एवं तेल के बीज उगाना है जो कि अब उनके द्वारा इस कारण छोड़ दिया गया है कि बहुत सी तेल मिलों में तेल निकालने की त्वरित मशीनें लग गयी हैं। पुराने समय में, उनकी अपनी तेल मिलें थीं जिसे कोल्हू या घाना के नाम से जाना जाता था जो कि लकड़ी के तेल निकालने वाले यन्त्र थे जो बैल से चलते थे तथा जिससे सरसों एवं तिल जैसे खाद्य तेल निकाले जाते थे। वर्तमान समय में उनमें से बहुत से लोगों ने व्यापार एवं कृषि अपना लिया है जिस पर वे निर्भर हैं। वे परचून की छोटी दुकानें भी करते हैं। उनमें से कुछ लोगों ने हलवाई का कार्य भी प्रारम्भ कर दिया है। उनका मुख्य आर्थिक स्रोत खेती है और बहुत से लोग पशुपालन में भी लिप्त हो गये हैं।[1]

राजनीति

बिहार

2000 के दशक के अंत में, तेली सेना द्वारा आयोजित बिली के तेली समुदाय में से कुछ, वोट बैंक की राजनीति में शामिल थे क्योंकि उन्होंने राज्य में सबसे पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकरण प्राप्त करने की मांग की थी। प्रारंभ में, वे भारत की आधिकारिक सकारात्मक भेदभाव योजना में इस तात्पर्य को प्राप्त करने में विफल रहे, विपक्षी अन्य समूहों से आ रहे थे जिन्होंने तेली को बहुत अधिक आबादी वाले और सामाजिक-आर्थिक रूप से प्रभावशाली माना और परिवर्तन को सही ठहराया। अप्रैल 2015 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की सूची में तेली जाति को शामिल करने का फैसला किया।[2][3] बिहार जाति आधारित गणना 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में तेली की आबादी 2.81% है।[4][5]

झारखंड

2004 में, झारखंड सरकार ने अर्जुन मुंडा के अधीन झारखंड में अनुसूचित जनजाति में तेली जाति को दर्जा देने की सिफारिश की, लेकिन यह कदम 2015 के रूप में अमल नहीं किया गया।[6] 2014 में, रघुवर दास झारखंड के पहले तेली मुख्यमंत्री बने

मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित तेली का मन्दिर तेली समुदाय ने 9 वी सदी में बनवाया था ।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Hasnain, Nadeem (2011). Doosra Lucknow. Vani Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5000-850-8.
  2. "बिहारः जातियों के दर्जे में बदलाव से होगा फ़ायदा ?". मूल से 11 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 अप्रैल 2018.
  3. "Bihar: BJP, JD(U) set for a war of sops ahead of Assembly polls". मूल से 9 दिसंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 दिसंबर 2017.
  4. "Bihar Caste Survey: बिहार में किस जाति की कितनी आबादी, देखें पूरी सूची".
  5. "Bihar Caste Survey Report LIVE: बिहार में 63% पिछड़े, 19% दलित, 15% सवर्ण, जाति गणना रिपोर्ट में यादव सबसे ज्यादा".
  6. "Teli show of strength at Gumla". मूल से 8 नवंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 दिसंबर 2017.