तीर्थपुरोहित
तीर्थपुरोहित किसी भी तीर्थ क्षेत्र का वह प्रधान पुजारी होता है, जो कि राजा या किसी अन्य यजमान का मुख्य पुजारी होता है तथा जो उनका यज्ञ, अनुष्ठान, कर्मकाण्ड आदि संपूर्ण करवाता है।अर्थात किसी भी तीर्थ क्षेत्र में कर्मकांड तथा अनुष्ठान कराने के लिए जो पुरोहित होते है, उन्हें तीर्थपुरोहित कहा जाता है। प्राचीन काल से प्रयागराज के तीर्थ पुरोहित, वाराणसी के तीर्थपुरोहित, गया के तीर्थपुरोहित एवं इसी क्रम में अन्य तीर्थ स्थानों में भी अलग-अलग तीर्थपुरोहित होते है। जो की अपने अपने तीर्थ स्थलों पर आने वाले तीर्थ यात्रियों को उनकी सुविधा एवं आवश्यकता के अनुसार कर्मकांड संपूर्ण करवाते है।
राजा के भी तीर्थपुरोहित होते थे, जिन्हें राज तीर्थपुरोहित कहा जाता था। तथा उनका विशेष महत्त्व होता था। तीर्थ पुरोहित का पद कुल परम्परागत चलता है। अतः विशेष कुलों के तीर्थपुरोहित भी नियत रहते हैं। उस कुल का जो तीर्थपुरोहित जो होगा वही उस कुल का सभी अनुष्ठान करवाएगा। किसी कारण वश वह कृत्य नही करा पाता,फिर भी वह अपना भाग लेगा, चाहे कृत्य कोई दूसरा ब्राह्मण ही क्यों न कराए।
इसी प्रकार तीर्थ पुरोहित उस तीर्थ स्थान में आप के रहने खाने पीने इलाज की सलाह और जेब कट जाने पर आपको आपके घर तक पहुंचाने का कार्य भी अपने पुत्रों की भांति ही किया करते हैं। इस लिए सदा याद रखें कि अपने कुल के राज तीर्थ पुरोहित के पास ही जाकर रूकें.