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तामसिक आहार

तामसिक आहार वह आहार है जो तामसिक तत्वों से युक्त, अशुद्ध और सड़ा हुआ आहार होता है।[1] जो आहार शरीर में पहुँचकर शरीर पर बोझ सिद्ध हो। निद्रा, बेहोशी, मतिभ्रम की स्थिति उत्पन्न करे, उत्तेजना में वृद्धि करे, ऐसा आहार तामसिक प्रकार का होता है। मदिरा , अत्यधिक मात्रा में चाय - कॉफी , तंबाकू , अफीम , गाँजा , चरस , कोकीन , ब्राउन शुगर आदि हमारी प्राकृतिक चेतना को उत्तेजना में ले जाते हैं । ये पदार्थ धीमी या तेज गति से हमारी आयु तथा जीवन - संपदा को क्षरित या विकृत कर देते हैं । ये आर्थिक , सामाजिक और वंशानुगत हानियाँ पहुँचाते हैं । जो लोग उपर्युक्त दोनों प्रकार के आहारों का समावेश अपने भोजन में करते हैं । फलस्वरूप ज्यादा से ज्यादा क्लिष्ट और जटिल रोगों के रोगी होकर जीवन भर कष्ट भोगते हैं ।[2] कषाय , तिक्त रस वाले तथा बासी पदार्थ मन में तमोगुण को उत्तेजित करते हैं । प्याज व लहसुन , जैसे शाकाहारी पदार्थ तामसिक आहार के अन्तर्गत आते हैं ।[3] भारतीय दर्शन के अनुसार तामसिक आहार के कारण बुद्धि भी तामसिक होती है। इससे अच्छे और बुरे का फर्क करना नही आता । तामसिक आहार बुद्धि को दूषित करता है ।[4]

आयुर्वेद के अनुसार तामसिक आहार से मन सुस्त , भारीपन और भटकाव महसूस करता है । उपनिषदों में कहा गया है कि आहार शुद्ध होने से अंतःकरण शुद्ध होता है और अंतःकरण शुद्ध होने पर विवेक बुद्धि ठीक से काम करती है ।[5]

स्वास्थ्य संबंधी नुकसान

तामसिक भोजन मांस - मदिरा , मानसिक स्वास्थ पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।[6] मांसाहारियों का मृत्यु दर अधिक होता है । तामसी आहार हृदय , फेफड़े , और यकृत ( जिगर , लिवन ) पर दुष्प्रभाव डालते हैं , जिससे शरीर में अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं । धूम्रपान से कैंसर और वसा के अधिक प्रयोग से रक्तचाप तथा हार्ट अटैक होते हैं ।[7] डॉ. कोवन अपनी पुस्तक 'सायन्स ऑफ ए न्यू लाइफ' में लिखते हैं कि काम - वासना को उत्पन्न करने के कारणों में से दूषित भोजन मुख्य है । यह कल्पना करना कि बच्चे को भोजन में अण्डा , मांस , मिर्च , मसाला , मिठाई , अचार , चाय , कॉफ़ी और कभी - कभी शराब भी दी जाय और वह कामुकता से बचा रहे , एक असम्भव कल्पना करना है । यदि ५ या १० वर्ष की आयु वाले आस्मान के फरिश्ते को भी ये भोजन खाने को दिये जायँ तो उस में भी आत्म - व्यभिचार की वासना उत्पन्न हो जायगी ; मनुष्य के बालक का तो , जिस में हज़ारों पैत्रिक कुसंस्कार पहले ही बीज रूप से मौजूद होते हैं , कहना ही क्या ![8]

वैज्ञानिक शोध

ब्रिटेन के मैनचेस्टर मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने इस संबंध में गंभीरतापूर्वक अनुसंधान किया है और निष्कर्ष निकाला है कि आहार का मनुष्य और प्राणियों के स्वभाव , गुण तथा प्रकृति पर भारी प्रभाव पड़ता है । इसके लिए कई सारे परीक्षण किये गये जिनमें से एक चूहों पर था । चूहा स्वभावतः शांत प्रकृति का होता है , किसी से लड़ता - झगड़ता या आक्रमण नहीं करता । प्रयोगशाला में पाले गये चूहों में से कुछ को बाहर निकाला गया और उन्हें सामान्य आहार न देकर मिर्च - मसाले तथा मांस और नशीली चीजों से बना आहार दिया गया । इसे खाने से पूर्व वे चूहे बेहद शान्त थे , पर इसके कुछ ही घंटे बाद , उद्दण्ड और आक्रामक बन गये । उन्हें वापस पिंजरे में छोड़ा गया , तो वे आपस में ही लड़ - झगड़ कर लहूलुहान हो गये । इसके बाद उन्हीं चूहों को दूसरी बार सरल , शुद्ध और सात्विक भोजन दिया गया । इस पर भी पिछला प्रभाव तो बाकी था , किन्तु चूहे अपेक्षाकृत शांत थे । कई बार इस तरह का आहार लेने के बाद वे अपनी वास्तविक स्थिति में आ पाए । इस तरह के सैकड़ों प्रयोगों द्वारा वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंच पाए कि आहार से शरीर का पोषण ही नहीं होता बल्कि मनुष्य मन का प्रोग्रामिंग भी होता है ।[9][10]

संदर्भ

  1. Devananda, Vishnu (2009). Yoga Sampurna Sachitra Pustak (Paperback) (Hindi में). Motilal Banarsidass Publishers Pvt. Limited. पृ॰ 219. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120832565. भगवद् गीता के अनुसार आहार तीन प्रकार का होता है : सात्विक ( शुद्ध आहार ) , राजसिक ( उत्तेजक आहार ) , और तामसिक आहार ( अशुद्ध और सड़ा हुआ आहार ) ।सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  2. Akshaya Atmanand, Swami (2021). Aahaar Chikitsa: Aahaar Chikitsa: The Healing Power of Food (Hindi में). Prabhat Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789351867708.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  3. Dash, Vaidya Bhagwan; Gupta, Ku Kanchan. Ayurvedic ka Saidhantik Adhyan (ebook) (Hindi में). Concept Publishing Company. पृ॰ 379. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170225959. तामसिक आहार : कषाय , तिक्त रस वाले तथा बासी पदार्थ मन में तमोगुण को उत्तेजित करते हैं । माँस , मछली आदि आमिष भोजन तथा प्याज व लहसुन , जैसे शाकाहारी पदार्थ तामसिक आहार के अन्तर्गत आते हैं ।सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  4. Jorwar, Ramchandra (2023). Saral Shrimadbhagvatgita (Hindi में). आहार तामसिक होने के कारण इनकी बुद्धि भी तामसिक होती है । उन्हें अच्छे और बुरे का फर्क नहीं पता । तामसिक आहार बुद्धि को दूषित करता है ।सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  5. Sain, Naresh; Variya, Pradip (2022). Manushya Jivan Ki Anokhi Kitab (ebook) (Hindi में). Naresh Sain & Pradip Variya. पृ॰ 53.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  6. Kumar, Dr. Vikas (2020). Health Psychology (Swasth Manovigyan) (ebook) (Hindi में). Motilal Banarsidass. पृ॰ 107. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120842663. तामसिक भोजन मांस - मदिरा , मानसिक स्वास्थ पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं ।सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  7. सिंह, डॉ ० मंजुलता (2007). रेकी - स्पर्श - तरंग (वैकल्पिक चिकित्सा) (Hindi में). महालक्ष्मी प्लाज़ा , राजेन्द्र नगर , साहिबाबाद , ग़ाज़ियाबाद 201005, ( उ ० प्र ० ): पराग बुक्स. पृ॰ 103. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187771289. मांसाहारियों का मृत्यु दर अधिक होता है । तामसी आहार हृदय , फेफड़े , और यकृत ( जिगर , लिवन ) पर दुष्प्रभाव डालते हैं , जिससे शरीर में अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं । धूम्रपान से कैंसर और वसा के अधिक प्रयोग से रक्तचाप तथा हार्ट अटैक होते हैं ।सीएस1 रखरखाव: स्थान (link) सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  8. सिद्धान्तालंकार, प्रो. सत्यव्रत. ब्रह्मचर्य - सन्देश (application/pdf) (Hindi में). लाहौर चौल, बम्बई २: दी शर्मा ट्रेडिंग कम्पनी. पृ॰ 108. अभिगमन तिथि 2017-01-17.सीएस1 रखरखाव: स्थान (link) सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  9. Manushya Jivan Ki Anokhi Kitab 7 Kadam Khud Ki Khoj Mein (ebook) (Hindi में). Naresh Sain & Pradip Variya. 2022. पृ॰ 53.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)
  10. पण्ड्या, डॉ. प्रणव (February 1980). "आहार के त्रिविधि स्तर, त्रिविधि प्रयोजन". अखंड ज्योति (Hindi में). घीयामंडी, मथुरा: अखंड ज्योति संस्थान: 42.सीएस1 रखरखाव: नामालूम भाषा (link)