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ताड़कासूर

तारकासुर पुराणों के अनुसार भगवान शिव के वरदान स्वरूप अत्यन्त बलशाली हो गया था उसने सभी लोकों में उपद्रव करना शुरु कर दिया था देवता परेशान होकर ब्रह्मदेव और भगवान श्रीहरि से विनती किए पर तारकासुर को वरदान प्राप्त था कि उसका वध किसी शिवपुत्र द्वारा ही सम्भव होगा अर्थात वो पुत्र सीधे सीधे तौर पर भगवान शिव का ही अंश होगा क्योंकि भगवान गणेश तो देवी पार्वती के शरीर पर लगे चन्दन लेप से उत्पन्न हुए थे तो उनमें भगवान शिव का अंश प्रत्यक्ष रूप से सन्निहित नहीं है । तो सभी देवता इस प्रयास में जुट गए कि कैसे भगवान शिव और देवी पार्वती को एक और पुत्र हो । और अन्ततोगत्वा वो सफल हुए और भगवान शिव और देवी पार्वती के एक साथ तपस्या करने पर भगवान शिव के त्रिनेत्र से वृहत् अग्नि ऊर्जा के रूप में शिवांश उत्पन्न हुआ । पर यह ऊर्जा अग्नि देव से धारण करना सम्भव न हुआ तो उनके सान्निध्य से निलकर यह ऊर्जा देवी गंगा के पास गया पर समय बीतते बीतते गंगा नदी का पानी सूखने लगा और देवी गंगा भी उस ऊर्जा को धारण न कर पाईं अन्त में वह ऊर्जा कृतिकाओं के निवासस्थान के निकट एक पुष्कर ( पोखरा ) में कुछ कमलपुष्पों पर 6 भागों में विभक्त होकर स्थिर हुआ और तुरंत ही मनुष्य शरीर में आ गया । 6 कृतिकाओं ने उन 6 बालकों को देखा और तब से उन्होंने उन 6 बालकों का पालन पोषण किया । कुछ समय पश्चात वो सभी 6 बालक एक ही बालक के रूप में उपस्थित हुए । तब से भगवान शिव और देवी पार्वती के इस पुत्र को भगवान कार्तिकेय के नाम से जाना जाने लगा । भगवान कार्तिकेय ने बड़ा होकर राक्षस तारकासुर का संहार किया। तारकासुर के तीन पुत्र विद्युन्मालि , कमलाक्ष और तारकाक्ष का अन्त स्वयम् भगवान शिव ने एक बाण से सन्धान करके किया था और यह बाण स्वयम् भगवान श्रीहरि ही थे जो इन 3 राक्षसों के सर्वनाश का कारण बने । तब से भगवान शिव को त्रिपुरारि के नाम से जाना जाने लगा