तक़दीरवाला
तक़दीरवाला | |
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तकदीरवाला का पोस्टर | |
निर्देशक | के. मुरली मोहन राव |
लेखक | संवाद: कादर खान |
निर्माता | डी रामानायडू |
अभिनेता | दग्गुबती वेंकटेश, रवीना टंडन, कादर खान, असरानी |
संगीतकार | आनंद-मिलिंद |
प्रदर्शन तिथियाँ | 12 मई, 1995 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
तक़दीरवाला 1995 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसे डी रामानायडू द्वारा सुरेश प्रोडक्शंस बैनर के तहत बनाया गया है। इसका निर्देशन के. मुरली मोहन राव ने किया है और मुख्य भूमिकाओं में वेंकटेश और रवीना टंडन हैं। यह 1994 की तेलुगू फिल्म यमलीला की रीमेक है। यह फ़िल्म असफल रही थी। [1]
संक्षेप
सूरज (वेंकटेश) एक शरारती लड़का है और उसकी मां (रीमा लागू) उसके व्यवहार से निराश है। सूरज को अपनी मां के अतीत के बारे में पता चल जाता है कि उसे पिता (डी रामानायडू) एक ज़मीनदार थे और स्वर्ण पैलेस नामक एक महल के मालिक थे। वह कर्ज के कारण मर गए और उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति खो दी। सूरज अपनी मां के लिये किसी भी परिस्थिति में अपने महल को खरीदना चाहता है और अपनी मां को खुश करना चाहता है। लिली (रवीना टंडन) एक छोटी चोर और बहुत लालची महिला है। सूरज पहली नजर से उसके साथ प्यार करता है, लेकिन वह उसे नकार देती है। लिली का प्रतिद्वंद्वी छोटा रावण (शक्ति कपूर) सूरज को बहुत चिढ़ाता है।
इस बीच नरक में, यमराज (कादर ख़ान) और चित्रगुप्त (असरानी) भविष्य वाणी नामक एक पुस्तक को खो देते हैं, जो मनुष्य का भविष्य दिखाता है। पुस्तक किसी तरह सूरज के घर की छत पर गिर पड़ती है। वह पुस्तक में अपने ऊपर की गई भविष्यवाणियों को पढ़कर बहुत लाभ उठाता है और अमीर बन जाता है। छोटा रावण आश्चर्यचकित है कि कैसे सूरज कम समय में इतना समृद्ध हो गया। भगवान ब्रह्मा यमराज और चित्रगुप्त को चेतावनी देते हैं कि एक महीने के भीतर उन्हें किताब मिलनी चाहिए, अन्यथा वे अपनी अलौकिक शक्तियों को खो देंगे। धरती पर, सूरज फिर से अपना महल खरीदता है और अपनी मां को ले जाता है और अपनी मां से पूछता है कि क्या वह और कुछ चाहती है। वह उससे शादी करने के लिए कहती है, इसलिए सूरज फिर से किताब खोलता है यह देखने के लिए कि क्या उसकी शादी लिली के साथ होगी या नहीं। तब वह पढ़ता है कि उसकी मां उस दिन रात 10 बजे मर जाएगी। अपनी मां की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए, सूरज लिली के साथ विवाह का नाटक करता है। लेकिन उसकी मां मर नहीं जाती है और लिली इस नाटक को प्रकट कर देती है। उसकी मां क्रोध में उससे बात नहीं करती कि जब तक वह वास्तव में लिली को उसकी बहु बनाकर नहीं लाएगा।
इस बीच, यमराज और चित्रगुप्त पुस्तक की खोज में धरती पर पहुंच जाते हैं। जैसे ही वे धरती तक पहुंचते हैं, उन्हें बहुत सारी समस्याएं आती हैं क्योंकि हर कोई उन्हें नाटक कंपनी के कलाकारों के रूप में मानता है। सूरज उन्हें एक बार बचाता है और महसूस करता है कि वे असली यमराज और चित्रगुप्त हैं। उसकी मां इसलिये मर नहीं गई क्योंकि उनके पास किताब नहीं है। अपनी मां की रक्षा के लिए, सूरज लता (टिस्का चोपड़ा) की मदद से यमराज को जाल में फँसाता है।
मुख्य कलाकार
- दग्गुबती वेंकटेश - सूरज
- रवीना टंडन - लिली
- कादर ख़ान - यमराज
- असरानी - चित्रगुप्त
- लक्ष्मीकांत बेर्डे - पांडू
- सत्येन्द्र कपूर - गोपाल काका
- शक्ति कपूर - छोटा रावण
- रीमा लागू - सूरज की माँ
- अनुपम खेर - इंस्पेक्टर रंजीत सिंह
- दिनेश हिंगू - एडिटर
- डी रामानायडू - सूरज के पिता
- टिस्का चोपड़ा - लता
- टीकू तलसानिया - सेठ
संगीत
संगीत आनंद-मिलिंद द्वारा रचित किया गया था। गीत समीर द्वारा लिखें गए। संगीत टीआईपीएस ऑडियो कंपनी पर जारी किया गया था।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "ए छोरी तू टपोरी" | कुमार सानु, अलका याज्ञिक | 5:12 |
2. | "चार बजे बागों में" | उदित नारायण, साधना सरगम | 5:30 |
3. | "आँखों का काजल" | उदित नारायण, अलका याज्ञिक | 4:44 |
4. | "मेरा दिल दीवाना" | अभिजीत, अलका याज्ञिक | 5:01 |
5. | "दिल चुरा के ना जा" | अभिजीत, अलका याज्ञिक | 5:03 |
6. | "फूल जैसी मुस्कान" | साधना सरगम, कुमार सानु | 5:19 |
7. | "सुस्वागतम अभिनंदन" | एस पी बालासुब्रमण्यम, साधना सरगम | 4:42 |
8. | "अनर्थ हो अनिष्ट हो" | एस पी बालासुब्रमण्यम | 3:02 |
कुल अवधि: | 38:33 |