जैवोपचारण
जैवोपचारण (जीव+उपचार+ण = जीवों द्वारा उपचार) (अंग्रेजी: Bioremediation), की परिभाषा के अनुसार यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें, सूक्ष्मजीवों जैसे जीवाणुओं या उनके एंजाइमों का उपयोग करके किसी संदूषित हो चुके पर्यावरण को पुन: उसकी मूल स्थिति में लाने का प्रयास किया जाता है।[1] जैवोपचारण का उपयोग, कुछ विशिष्ट संदूषकों जैसे कि क्लोरीनयुक्त कीटनाशक जिनका क्षरण जीवाणुओं द्वारा होता है, या फिर सामान्य रूप से तेल फैलाव की स्थिति में जहां कच्चे तेल के अपघटन के लिए कई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है जिसमें, उर्वरकों का प्रयोग कर जीवाणुओं द्वारा कच्चे तेल के अपघटन की प्रक्रिया को तेज करना शामिल है, में किया जाता है।
सरल परिभाषा
साधारण शब्दों में जैवोपचारण एक ऐसी विधि है जिसमें सूक्ष्मजीवों का प्रयोग करके किसी प्रदूषित हो चुके पर्यावरण (जैसे प्रदूषित भूजल या मृदा) को प्राकृतिक रूप से उसका मूल स्वरूप प्रदान किया जाता है।
कार्यविधि
किसी अप्रदूषित पर्यावरण में जीवाणु, कवक, प्रोटिस्ट और अन्य सूक्ष्मजीव लगातार कार्बनिक पदार्थों के अपघटन में लगे रहते हैं। जब यह पर्यावरण किसी कार्बनिक प्रदूषक जैसे कि कच्चा तेल, द्वारा प्रदूषित किया जाता है तो कुछ सूक्ष्मजीव तो मर जाते हैं पर कुछ अन्य सूक्ष्म जीव जो इस बाहरी प्रदूषक को भी अपघटित करने की क्षमता रखते हैं, बच जाते हैं। जैवोपचारण के द्वारा इन बचे हुए सूक्ष्मजीवों की संख्या में उर्वरक, ऑक्सीजन तथा अन्य अनुकूल परिस्थितियां प्रदान कर तेजी से वृद्धि की जाती है। अनुकूल परिस्थितियों के चलते इन सूक्ष्मजीवों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप बाहर से आये कार्बनिक प्रदूषक का अपघटन भी त्वरित गति से होता है। तेल रिसाव के अधिकतर मामलों से निपटने के लिए तो जैवोपचारण की विधि ही काम में लाई जाती है।
किसी प्रदूषित पर्यावरण को पुन: उसकी मूल स्थिति में पहुँचाने के लिए दो में से एक तरीका इस्तेमाल में लाया जाता है। ऊपर दिये गये उदाहरण में, पहले तो बच गये सूक्ष्मजीवों की संख्या में वृद्धि के उपाय किये जाते हैं और दूसरा (विशेष परिस्थिति) विशेष सूक्ष्मजीव बाहर से लाकर इस पर्यावरण में प्रविष्ट कराये जाते हैं ताकि, प्रदूषकों का अपघटन तीव्र गति से हो।
जैवोपचारण हेतु आवश्यक घटक[2]
घटक | अनुकूल स्थिति |
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सूक्ष्मजीवों की संख्या | उपयुक्त प्रकार के सूक्ष्मजीव जो सभी संदूषकों का जैव-निम्नीकरण कर सकें। |
ऑक्सीजन | वायवीय जैव-निम्नीकरण के होने के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन (लगभग 2% ऑक्सीजन गैस चरण में या 0.4 मिलीग्राम/लीटर मिट्टी पानी में) । |
जल | मिट्टी में उपस्थित नमी, मिट्टी की जल धारण क्षमता की 50-70% होनी चाहिए। |
पोषकतत्व | माइक्रोबियल वृद्धि के लिए नाइट्रोजन, फ़ोस्फ़ोरस, गंधक और अन्य पोषकतत्वों की समुचित मात्रा। |
तापमान | माइक्रोबियल वृद्धि के लिए उपयुक्त तापमान (0–40˚C)। |
pH | 6.5 से 7.5 के बीच। |
सीमायें
जैवोपचारण कुछ प्रकार के प्रदूषणों से निपटने के लिए तो एक अच्छी रणनीति है, पर यह हर प्रकार के प्रदूषण के उपचार में एक कारगर उपाय नहीं है। उन स्थानों जहां मुख्य प्रदूषक ऐसे रसायन हों जो लगभग सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों के लिए विषैले हों वहाँ, जैवोपचारण द्वारा प्रदूषण से मुक्ति पाना संभव नहीं है। इन रसायनों में विभिन्न धातुयें जैसे कि कैडमियम और सीसा और लवण जैसे कि सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) शामिल हैं।
इस सबके बावजूद, जैवोपचारण प्राकृतिक रूप से होने वाली अपघटन की क्रिया को त्वरित गति प्रदान कर प्रदूषन से निपटने की एक अच्छी युक्ति प्रदान करता है। स्थान और प्रदूषको के अनुसार जैवोपचारण अन्य वैकल्पिक उपायों जैसे कि जलाने या प्रदूषित पदार्थों द्वारा निचले स्थानों की भराई, की तुलना में एक सुरक्षित और सस्ता उपाय साबित होता है। इसके द्वारा प्रदूषित स्थान पर ही प्रदूषण का उपचार किया जा सकता है और इसके लिए मिट्टी या तलछट को खोद कर हटाने या पानी को पम्प कर बाहर निकालने की जरूरत नहीं पड़ती।
सन्दर्भ
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 29 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 25 जुलाई 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 मई 2011.