छाल रोग
छालरोग वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
पीठ और बांहों पर छालरोग से ग्रसित रोगी | |
आईसीडी-१० | L40. |
आईसीडी-९ | 696 |
ओएमआईएम | 177900 |
डिज़ीज़-डीबी | 10895 |
मेडलाइन प्लस | 000434 |
ईमेडिसिन | emerg/489 त्वचारोग विज्ञान:derm/365 प्लाक derm/361 गुट्टेट derm/363 नाखून derm/366 पृष्ठ भाग आर्थ्राइटिसderm/918 रेडियोलॉजी radio/578 भौतिक चिकित्सा pmr/120 |
एम.ईएसएच | D011565 |
छाल रोग (सारिआसिस)
छालरोग या सोरियासिस (अंग्रेज़ी:Psoriasis) एक चर्मरोग है। सामान्य भाषा में इसे अपरस भी कहते हैं। यह रोग एक असंक्रामक दीर्घकालिक त्वचा विकार है जो कि परिवारों के बीच चलता रहता है। छाल रोग सामान्यतः बहुत ही मंद स्थिति का होता है। इसके कारण त्वचा पर लाल-लाल खुरदरे धब्बे बन जाते हैं। यह दीर्घकालिक विकार है जिसका अर्थ होता है कि इसके लक्षण वर्षों तक बने रहेंगे। ये पूरे जीवन में आते-जाते रहते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों ही को समान रूप से हो सकता है। इसके सही कारणों की जानकारी नहीं है। अद्यतन सूचना से यह मालूम होता है कि सोरिआसिस निम्नलिखित दो कारणों से होता हैः
- वंशानुगत पूर्ववृत्ति
- स्वतः असंक्राम्य प्रतिक्रिया
पहचान
लाल खुरदरे धब्बे, त्वचा के अनुपयोगी परत में त्वचा कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाने के कारण पैदा होते हैं। सामान्यतः त्वचा कोशिकाएं पुरानी होकर शरीर के तल से झड़ती रहती है। इस प्रक्रिया में लगभग 4 सप्ताह का समय लग जाता है। कुछ व्यक्तियों को सोरिआसिस होने पर त्वचा कोशिकाएं 3 से 4 दिन में ही झड़ने लगती है। यही अधिकाधिक त्वचा कोशिकाओं का झड़ाव त्वचा पर छालरोग के घाव पैदा कर देता है। छालरोग में त्वचा पर लाल, खुरदरे धब्बे, खुजली और मोटापा, चिटकना और हथेलियों या पैर के तलवों में फफोले पड़ना, के लक्षण से पहचाने जाते हैं। ये लक्षण हल्के-फुल्के से लेकर भारी मात्रा में होते हैं। इससे विकृति और अशक्तता की स्थिति पैदा हो सकती है।
कुछ कारक है जिनसे छाल रोग से पीड़ित व्यक्तियों में चकते पड़ सकते हैं। इन कारकों में त्वचा की खराबी (रसायन, संक्रमण, खुरचना, धूप से जलन) मद्यसार, हार्मोन परिवर्तन, धूम्रपान, बेटा-ब्लाकर जैसी औषधी तथा तनाव सम्मिलित हैं। छाल रोग से व्यक्तियों पर भावनात्मक तथा शारीरिक प्रभाव पड़ सकते हैं। छाल रोग आर्थरायटिस वाले व्यक्तियों को होते हैं। इससे दर्द होता है तथा इससे व्यक्ति अशक्त भी हो सकता है। छाल रोग संक्रामक नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लगता।
रोकथाम
- धूप तीव्रता सहित त्वचा को चोट न पहुंचने दें। धूप में जाना इतना सीमित रखें कि धूप से जलन न होने पाएं।
- मद्यपान और धूम्रपान न करें
- स्थिति को और बिगाड़ने वाली औषधी का सेवन न करें
- तनाव पर नियंत्रण रखें
- त्वचा का पानी से संपर्क सीमित रखें
- फुहारा और स्नान को सीमित करें, तैरना सीमित करें
- त्वचा को खरोंचे नहीं पडने दें
- ऐसे कपड़े पहने जो त्वचा के संपर्क में आकर उसे नुकसान न पहुंचाएँ
- संक्रमण और अन्य बीमारियाँ हो तो डाक्टर को दिखाएं।
व्यक्ति को जो आहार अच्छा लगे, वही उसके लिए उत्तम आहार है क्योंकि छाल रोग से पीड़ित व्यक्ति खान-पान की आदतों से उसी प्रकार लाभान्वित होता है जैसे हम सभी होते हैं। कई लोगों ने यह कहा है कि कुछ खाद्य पदार्थों से उनकी त्वचा में निखार आया है या त्वचा बेरंग हो गई है।
त्वचा अवरंजकता
त्वचा अवरंजकता (हाईपोपिगमेंटेशन) के तीन मुख्य प्रकार हैः
- विटिलिगो,
- जलन के बाद की अवरंजकता और
- रंजकहीनता
विटिलिगो में त्वचा में जगह-जगह सामान्यतः स्पष्ट रूप से विरंजकता दिखाई देती है। कभी-कभी मोलनोकाइट्स की कमी के कारण त्वचा संवेदनशील बन जाती है। विरंजकता एक या दो जगहों पर अथवा त्वचा की परत के अधिकांश भाग पर परिलक्षित होती है। विटिलिगो से प्रभावित क्षेत्र में बाल सामान्यतः सफेद हो जाते हैं। जलन के बाद की अवरंजकता वह स्थिति होती है जिसमें जलन संबंधी अनियमितता {उदाहरण के लिए त्वचा शोध (डर्मिटाइटिस)}, जलने और त्वचा संक्रमण के बाद वह स्थान ठीक होने की स्थिति में होता है। इसमें निशान पड़ जाते हैं। त्वचा अपुष्ट (ढीली) हो जाती है। त्वचा की वास्तविक चमक कम हो जाती है, लेकिन त्वचा दूध जैसी सफेद नहीं होती, जैसा कि विटिलिगो में होता है। कभी-कभी त्वचा का रंग शीघ्र ही पहले जैसा हो जाता है।
रंजकहीनता एक विरली आटोसोमल प्रतिसरण अनियमितता है जिसमें मेनोकाइट्स तो विद्यमान होते हैं लेकिन मेलानीन का निर्माण नहीं करते। इन तीन प्रमुख प्रकार की अवरंजकता के अलावा त्वचा की एक अन्य सामान्य स्थिति भी होती है, जिसमें सामान्यतः त्वचा विरंजकता होती है जिसे पीटीरियासिस कहते हैं।
सह morbidities
सोरायसिस सिर्फ एक त्वचा रोग नहीं है; इसका प्रभाव त्वचा से परे जाता है और रोगियों के जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, ये सह-रुग्णताएँ सोरायसिस के उपचार और वित्तीय बोझ को बढ़ाती हैं। इस प्रकार इन सह-रुग्णताओं को समझना महत्वपूर्ण है। [70]
हृदय संबंधी जटिलताएं
सोरायसिस रोगियों में हृदय संबंधी जटिलताओं (सीवीसी) का जोखिम 2.2 गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा, सोरायसिस रोगियों को मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (दिल का दौरा) और स्ट्रोक होने की संभावना अधिक होती है। यह अनुमान लगाया गया है कि सोरायसिस में प्रणालीगत सूजन है, जो "सोरायटिक मार्च" को प्रेरित करती है और सीवीसी सहित अन्य भड़काऊ जटिलताओं का कारण बन सकती है। [71] एक अध्ययन में सोरायसिस रोगियों में महाधमनी संवहनी सूजन को मापने के लिए फ्लूरोडॉक्सीग्लूकोस एफ-18 पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी कंप्यूटेड टोमोग्राफी (एफडीजी पीईटी/सीटी) का इस्तेमाल किया गया और सोरायसिस में कुल प्लाक बोझ, ल्यूमिनल स्टेनोसिस और उच्च जोखिम वाले प्लेक सहित कोरोनरी धमनी रोग सूचकांक में वृद्धि हुई। रोगियों। इसी तरह, यह पाया गया कि पीएएसआई स्कोर में 75% की कमी होने पर महाधमनी संवहनी सूजन में 11% की कमी आई है। [72]
अवसाद
28-55% सोरायसिस रोगियों में अवसाद या अवसाद के लक्षण मौजूद होते हैं। सोरायसिस के रोगियों को अक्सर त्वचा की विकृति के कारण कलंकित किया जाता है। इसके अलावा, अध्ययनों में पाया गया है कि शरीर में बढ़े हुए भड़काऊ संकेत सोरायसिस सहित पुरानी सूजन संबंधी बीमारियों के रोगियों में अवसाद में योगदान कर सकते हैं। [73]
टाइप 2 मधुमेह मेलेटस
सोरायसिस के रोगियों में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस (T2DM) (~1.5 ऑड्स अनुपात) विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। एक जीनोम-व्यापी आधारित आनुवंशिक अध्ययन में पाया गया कि सोरायसिस और T2DM चार लोकी साझा करते हैं, अर्थात्, ACTR2, ERLIN1, TRMT112, और BECN1, जो भड़काऊ NFkB मार्ग के माध्यम से जुड़े हुए हैं। [74]
सन्दर्भ
स्रोत
- टॅक्स्टबूक ऑफ डर्माटोलोजी