चौबीस अवतार
चौबीस अवतार, दशम ग्रन्थ का एक भाग है जिसमें विष्णु के चौबीस अवतारों का वर्णन है। परम्परा से तथा ऐतिहासिक रूप से यह गुरु गोबिन्द सिंह की रचना मानी जाती है। यह रचना दशम ग्रन्थ का लगभग ३० प्रतिशत है जिसमें ५५७१ श्लोक हैं। इसमें कृष्ण अवतार तथा राम अवतार क्रमशः २४९२ श्लोक एवं ८६४ श्लोक हैं। कल्कि अवतार में ५८६ श्लोक हैं। ध्यातव्य है कि श्रीमद्भागवत तथा कुछ अन्य पुराणों में भी विष्णु के चौबीस अवतार बताये गये हैं।
राम अवतार
गुरु गोबिंद सिंह जी, तत्कालीन मुगल शासन के अत्याचारों को रोकने के लिए भारतीय समाज में युद्ध परम्परा को पुनर्जीवित करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अवतारों को महान योद्धाओं के रूप में प्रस्तुत करने के लिए चौबीस अवतार कृति का संयोजन किया। राम अवतार कृति में विष्णु जी के अवतार का कारण पृथ्वी पर असुरी शक्तियों का बढ़ जाना और देवताओं की रक्षा करना बताया गया है। राम अवतार में 864 पद हैं तथा 71 प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है। यह 26 अध्यायों में विभाजित हैं। इनमें 425 पद युद्ध कथाओं से संबंधित हैं। यह ग्रंथ राम के चरित्र के बहाने रामायण का ही सिख गुरु की दृष्टि से विस्तार है। यह भी लक्ष्य किया जा सकता है कि उन्होंने अपने समकालीन समाज में उस दौर की सत्ता के विरुद्ध एक लंबी संघर्ष यात्र शुरू की थी, जिसमें राम-चरित्र, उस परिवर्तन का एक मुख्य प्रयोजन बन जाता है।
आरंभ के अध्यायों में श्रीराम के अवतार धारण की कथाओं का वर्णन किया गया है। कैसे राजा दशरथ के भ्रम के कारण श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई, तो श्रवण कुमार के माता-पिता ने राजा दशरथ को पुत्र वियोग में मरने का शाप दे दिया। राजा ने सोचा कि मैं राज का त्याग करके जंगल में अपना जीवन व्यतीत करूं। उसी समय आकाशवाणी हुई, हे राजन, दुखी न हो। तेरे घर भगवान विष्णु पुत्र रूप में जन्म लेंगे, जो संसार का कल्याण कर तेरे सारे पाप कर्म को दूर करेंगे। तू मोह त्याग कर घर जा और यज्ञ कर। राजा अपने घर गए और उन्होंने मुनि वशिष्ठ को बुलाकर राजसूय यज्ञ करने का फैसला किया।
जब यज्ञ शुरू किया तो राजा ने कई देशों के राजाओं और ब्राह्मणों को बुलाया। यज्ञ करने वाले कई पंडितों ने जब हवन किया तो यज्ञ कुंड से एक यज्ञ पुरुष प्रकट हुए। उनके हाथ में खीर का कटोरा था। राजा ने इस खीर के चार हिस्से किए और रानियों को दिया। सबसे पहले श्री राम का जन्म हुआ। उसके बाद भरत, लक्ष्मण व शत्रुघ्न नाम के तीन कुमारों ने जन्म लिया। रणभूमि में धीरज के साथ लड़ने वाले श्रीराम ने शास्त्रों एवं शस्त्रों को ठीक तरह से समझा।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के राम अवतार में श्रीराम के जीवन और सीता स्वयंवर से लेकर सीता हरण तक का पूरा वर्णन है। अधिकतर अध्याय उसके बाद शुरू हुए युद्धों को लेकर हैं। इसमें वन प्रवेश वर्णन, खर दूषण दैत्य युद्ध वर्णन, सीता हरण वर्णन, सीता को ढूंढ़ने का वर्णन, हनुमान को सीता की खोज के लिए भेजने, त्रिमुंड युद्ध, महोदर युद्ध, इंद्रजीत युद्ध, अतिकाय दैत्य युद्ध, मकराश युद्ध व रावण युद्ध का वर्णन प्रमुख तौर पर है। ये सभी वर्णन काफी लंबे हैं। श्रीराम ने किस प्रकार दैत्यों को इन युद्धों में हराकर सीता को पुन: प्राप्त किया। गुरु जी की पूरी कृति वीर रस पर आधारित है। [1]
श्रीमद्भागवतl और सुखसागर के अनुसार भगवान विष्णु के चौबीस अवतार
श्रीमद्भागवत और सुखसागर में अवतारों की मुख्यतः दो सूचियाँ हैं। दशावतार जो भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतार बताए गए हैं वे भगवान विष्णु का साक्षात् रूप हैं। अन्य चौदह अवतारों को लीलावतार बताया गया है। अत: दस अवतारों की पहली सूची और चौदह अवतारों की दूसरी सूची को मिलाकर 24 अवतार बनते हैं। इन चौबीस अवतारों के नाम इस प्रकार हैं:
- सनकादि ऋषि (चार कुमार)
- वराह
- नारद मुनि
- नर नारायण
- कपिल मुनि
- दत्तात्रेय
- सुयज्ञ
- पृथु
- ऋषभदेव
- मत्स्य
- कूर्म
- धन्वन्तरि
- मोहिनी
- नरसिंह
- वामन
- हयग्रीव
- गजेंद्रोधरा (श्रीहरि)
- हंस
- परशुराम
- राम
- वेदव्यास
- कृष्ण
- वेंकेटेश्वर
- कल्कि
सरूप दास ने सन १७७६ में 'महिमा प्रकाश' नामक एक ग्रन्थ लिखा, जिसमें लिखा है कि-
दोहरा॥
- बेद बिदिआ प्रकाश को संकलप धरिओ मन दिआल ॥
- पंडत पुरान इक्कत्र कर भाखा रची बिसाल ॥
चोपई॥
- आगिआ कीनी सतगुर दिआला ॥
- बिदिआवान पंडत लेहु भाल ॥
- जो जिस बिदाआ गिआता होइ ॥
- वही पुरान संग लिआवे सोइ ॥
- देस देस को सिख चलाए ॥
- पंडत पुरान संगति लिआए ॥
- बानारस आद जो बिदिआ ठौरा ॥
- पंडत सभ बिदिआ सिरमौरा ॥
- सतिगुर के आइ इकत्र सभ भए ॥
- बहु आदर सतगुर जी दए ॥
- मिरजादाबाध खरच को दइआ ॥
- खेद बिभेद काहू नहीं भइआ ॥
- गुरमुखी लिखारी निकट बुलाए ॥
- ता को सभ बिध दई बणाए ॥
- कर भाखा लिखो गुरमुखी भाइ ॥
- मुनिमो को देहु कथा सुनाइ ॥
दोहरा ॥
- ननूआ बैरागी शिआम कब ब्रहम भाट जो आहा ॥
- भई निहचल फकीर गुर बडे गुनग गुन ताहा॥
- अवर केतक तिन नाम न जानो ॥
- लिखे सगल पुनि करे बिखानो ॥
- चार बेद दस अशट पुराना ॥
- छै सासत्र सिम्रत आना ॥
चोपई॥
- चोबिस अवतार की भाखा कीना॥
- चार सो चार चलित्र नवीना॥
- भाखा बणाई प्रभ स्रवण कराई॥
- भए प्रसन्न सतगुर मन भाई॥
- सभ सहंसक्रित भाखा करी ॥
- बिदिआ सागर ग्रिंथ पर चड़ी ॥
दशम ग्रंथ के अनुसार चौबीस अवतार
दसवें सिखगुरु गुरु गोविंद सिंह जी के दशम ग्रंथ में भी इन चौबीस अवतारों का उल्लेखन है परंतु इनके नाम कुछ अलग प्रकार के हैं। दशम ग्रंथ के अनुसार चौबीस अवतार हैं:
- मच्छ (मत्स्य)
- कच्छ (कूर्म)
- नर
- नारायण
- महा मोहिनी
- बैराहा (वाराह)
- नरसिंह
- बामन (वामन)
- परशुराम,
- ब्रह्मा
- रूद्र
- जालंधर
- बिशन (विष्णु)
- शेषायी (बलराम)
- अरिहंत (ऋषभदेव)
- मनु
- धन्वन्तरि
- सूरज (सूर्य)
- चंदा (चंद्र)
- राम
- किशन (कृष्ण)
- नर (अर्जुन)
- बुद्ध
- कल्कि