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चरवाहा विद्यालय

चरवाहा विद्यालय Archived 2020-02-01 at the वेबैक मशीन, राष्ट्रिय जनता दल के वर्तमान अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का एक प्रयोग, जिसने दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. शिक्षा के प्रति अलख जगाने वाली यह प्रतीकात्मक योजना लालू प्रसाद यादव के साथ आज भी जुड़ी हैं. उनके द्वारा आरम्भ की गई सभी योजनाओं में “चरवाहा विद्यालय” की चर्चा सबसे अधिक होती हैं. चरवाहा विद्यालय ने यूनिसेफ सहित अमरीका और जापान के शोधार्थियों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. कालांतर में, बिहार के चुनावी मौसम में इसकी चर्चा जरूर होती हैं. यह इस योजना की प्रासंगिकता को इंगित करती हैं.

चरवाहा विद्यालय को दुनिया भर में मिली थी तारीफ

बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने, 23 दिसम्बर 1991 को, देश का पहला चरवाहा विद्यालय खुलवाया था. यह बिहार में मुजफ्फरपुर के तुर्की में 25 एकड़ की जमीन में स्थापित की गई थी. वंचित तबके के बच्चों को शिक्षित करने की इस अनोखी पहल की तारीफ दुनिया भर में हुई थी. इस योजना में जान फूंकने के लिए, लालू प्रसाद ने नारा दिया था, ओ गाय-भैंस चराने वालों, ओ सूअर-बकरी चराने वालों, ओ घोंघा चुनने वालों; पढ़ना-लिखना सीखों. तुर्की के बाद दूसरा चरवाहा विद्यालय रांची के पास झीरी में खोला गया था.

लालू प्रसाद यादव के शासन काल में कुल 354 विद्यालय (अविभाजित बिहार में) खोले गए. परन्तु, समय के साथ-साथ ये विलुप्ति की कगार पर हैं.

चरवाहा विद्यालयों को किसने बंद किया

यह एक ऐसी प्रयोग था, जिसके वजह से सामंती सोच वाले भयभीत महसूस कर रहे थे. यह प्रयोग बिहार में हाशिए पर खड़े व्यक्ति में शिक्षा के माध्यम से क्रन्तिकारी बदलाव ला सकती था.

आरम्भ में इसमें बच्चो के साथ शिक्षक भी पढ़ने आते थे. प्रति छात्र 9 रूपये मासिक वजीफा भी दिया जाता था. साथ ही, उन्हें प्रति दिन 1 रूपये का वजीफा दिया जाता था. ये उम्मीद


की गई कि, गरीब परिवार इस एवं में अपने बच्चे को स्कूल भेजने लगेंगे. छात्रों के मवेशी, स्कूल के मैदान में चरने के लिए छोड़ने की व्यवस्था थी. छात्र शाम के समय परिसर से घास अपने मवेशियों के लिए लेकर चले जाते थे. लालू प्रसाद यादव, एक युगपुरुष एवं वंचितों के सजग प्रहरी लालू प्रसाद यादव समय के साथ-साथ अधिकारीगण चरवाहा विद्यालय से मुंह फेरने लगे. जिस कारण, 1995 के बाद से यह ठप पड़ने लगा. हालाँकि, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स ये दवा करते हैं कि नीतीश कुमार की उदासीनता से यह योजना बर्बाद हुई. वर्ष 2005 से नीतीश सरकार सत्तासीन हैं. परन्तु, वर्तमान सरकार ने बिखरी पड़ी इन संसाधनों की कोई सुध नहीं ली. आप राजयभर में ऐसे विद्यालय फैले देख सकते हैं. …जो प्रशासनिक उदासीनता का धूल फांक रहे हैं.

चरवाहा विद्यालय क्यों हैं खास

आजादी के बाद से पहली बार राज्य के किसी शासक ने वंचितों को शिक्षित करने के लिए सीधी कार्रवाई की थी. इस योजना ने वंचितों में शिक्षा के प्रति तीव्र ललक का विस्तार किया. जिस वजह से वंचित तबका सालों से चली आ रही अशिक्षा की दास्ताँ को एक हद तक तोड़ने में सफल हो सका.

राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन एक इंटरव्यू में कहते हैं, “लालू जी खुद बहुत गरीबी में पले-बढ़े थे, इसलिए उन्हें जिंदगी की मुश्किलें मालूम थी. बाहर के लोग स्कूल की तारीफ करते थे. लेकिन, यहां लोगों ने दुष्प्रचार किया.’

भारत में सावित्री बाई फुले ने जहाँ महिलाओं को शिक्षा का अधिकार देने के लिए विद्यालय खोले, वहीं लालू प्रसाद यादव ने चरवाहा विद्यालय के माध्यम से बिहार के वंचितों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया. इस परिघटना को, बिहार में शिक्षा का पुनर्जागरण काल कहा जा सकता हैं.

करीने से देखे तो, बिहार में शिक्षा के प्रति क्रन्तिकारी योजनाओं का नितांत अभाव रहा हैं. समय-समय पर शिक्षा सुधार के अनेक प्रयास हुए. वास्तव में, अधिकतर योजनाएं कमोबेश फ्लॉप साबित हुई हैं. चरवाहा विद्यालय के बारे में भी यह एक सच्चाई हैं. परन्तु, इस योजना ने समाज में शिक्षा की एक नविन अलख जगाई.


आप बिहार के सुदूर गावों में भी, अशिक्षितों के बीच इस विद्यालय की चर्चा सुन सकते हैं. अपने शुरुआती वर्षों के 28 वर्षों बाद भी इसकी गूंज सुनाई देती हैं. यह वंचितों में शिक्षा के प्रति अलख जगाने में, लालू प्रसाद यादव की कामयाबी कही जा सकती हैं.

“लालू प्रसाद यादव” ने बतौर मुख्यमंत्री एक ऐसे स्कूल का सपना देखा और शुरू किया था जहाँ चरवाहे अपने जानवरों के साथ आ सकते थे और पढ़ना-लिखना सीख सकते थे. इस कॉन्सेप्ट को दुनिया ने “चरवाहा विद्यालय” के नाम से जाना.

लालू प्रसाद ने सिर्फ चरवाहा विद्यालय ही नहीं खोले. उन्होंने अपने कार्यकाल में अविभाजित राज्य को 7 विश्वविद्यालय भी दिए. साथ ही उन्होंने गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए, योग्य शिक्षकों को बहाल किया.

राज्य में आपको अनेक शिक्षक मिल जाएंगे, जो खुद को लालू छाप कहने में गर्व महसूस करते हैं. …क्योंकि, उनके कार्यकाल में बहाली के दौरान कोई घपला नहीं हुआ था. साथ ही, उन्हें खुली प्रतियोगी परीक्षा के आधार पर, बिना किसी भेदभाव के चुना गया था.

लालू प्रसाद के समय के शिक्षक, आज भी आपको राज्य के शिक्षा व्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते दिख जाएंगे. हालाँकि, उनमे अधिकतर या तो रिटायर हो गए या रिटायर होने के कगार पर हैं.

लालू प्रसाद यादव ने झेले हमले

चरवाहा विद्यालय को लेकर लालू प्रसाद यादव को काफी फजीहत झेलनी पड़ी. यह बिहार का दुर्भाग्य हैं कि जिस योजना की तारीफ़ पूरा विश्व कर रहा था, उसकी खिल्ली राज्य के कुछ लोग उड़ा रहे थे.

वास्तव में सामंती तबका, लालू यादव द्वारा की जा रही कार्यों से चिंतित था. ये चाहते थे कि वंचित तबका सदैव वंचित बना रहे. किन्तु, लालू ने इस जंजीर को तोड़ने का काम किया. जिसकी कीमत वे आज चूका रहा हैं.

अगर लालू जी BJP से हाथ मिला लेते तो आज हिंदुस्तान के राजा हरीशचंद्र होते, वे सामाजिक न्याय के युद्धबंदी हैं

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल भी लालू प्रसाद यादव के बहुजन हितैषी होने की पुष्टि करते हैं. वे कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री रहते हुए गर्मियों के दिनों में गरीबों की बस्ती में जाना. बच्चों को बुलाना और फिर फायर ब्रिगेड से उनको नहलवाना. देश में किसी और नेता ने ये नहीं किया.लालू यादव सामाजिक न्याय के लिए चल रहे युद्ध में युद्धबंदी हैं. दुश्मन की कैद में हैं.’