चना
चना | |
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वैज्ञानिक वर्गीकरण | |
जगत: | पादप |
विभाग: | मैग्नोलियोफाइटा |
वर्ग: | मैग्नोलियोडा |
गण: | Fabales |
कुल: | Fabaceae |
उपकुल: | Faboideae |
वंश: | Cicer |
जाति: | C. arietinum |
द्विपद नाम | |
Cicer arietinum L. |
चना चना एक प्रमुख दलहनी फसल है। चना के आटे को 'बेसन' कहते हैं | चना जिसका साइंटिफिक नाम Cicer arietinum है. जिसकी ज्यादातर खेती भारत और मध्य पुर्वीय देशो में बहुत लंबे समय से की जाती आयी है. इसकी सब्जी खाने में काफी स्वादिष्ट होती है. साथही यंह अन्य सब्जियों असानिसे इस्तेमाल होता रहता है. चने में विटामिन, मिनिरल और फायबर की काफी मात्रा होती है. यंह स्वास्थ केलिए काफी लाभदायक है. जिसमे वजन को नियंत्रण करनेमे, पाचन तंत्र का स्वास्थ और अन्य घातक बीमारियों से बचनेमे मदत करता है. विशेस बात करे तो इसमे प्रोटीन की काफी मात्रा होती है, बहोत से लोग जो मासं का सेवन नही करते उनके लिए यंह चना एक अन्य खाने का विकल्प के तोरपर देखा जाता है.[1]
काबुली चना
चने की ही एक किस्म को काबुली चना या प्रचलित भाषा में छोले भी कहा जाता है। ये हल्के बादामी रंग के काले चने से अपेक्षाकृत बड़े होते हैं। ये अफ्गानिस्तान, दक्षिणी यूरोप, उत्तरी अफ़्रीका और चिली में पाए जाते रहे हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में अट्ठारहवीं सदी से लाए गए हैं, व प्रयोग हो रहे हैं।[2]
चने की खेती
नीचे चना की उन्नत उत्पादन तकनीक दी गयी है जो उत्तरी भारत के लिये विशेष रूप से लागू होती है-
बुआई का समयः समय पर बुआई 1-15 नवंबर व पछेती बुआई 25 नवंबर से 7 दिसंबर तक
- बीज की मात्राः मोटे दानों वाला चना 80-100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर ; सामान्य दानों वाला चनाः 70-80 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
- बीज उपचारः बीमारियों से बचाव के लिए थीरम या बाविस्टीन 2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करें। राइजोबियम टीका से 200 ग्राम टीका प्रति 35-40 कि.ग्रा. बीज को उपचारित करें।
- उर्वरकः उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें।
- नत्रजनः 20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर (100 कि.ग्रा. डाई अमोनियम फास्फेट)
- फास्फोरसः 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
- जिंक सल्फेटः 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर
- बुआई की विधिः चने की बुआई कतारों में करें। गहराईः 7 से 10 सें.मी. गहराई पर बीज डालें। कतार से कतार की दूरीः 30 सें.मी. (देसी चने के लिए) ; 45 सें.मी. (काबुली चने के लिए)
- खरपतवार नियंत्रणः
फ्रलूक्लोरेलिन 200 ग्राम (सक्रिय तत्व) का बुआई से पहले या पेंडीमेथालीन 350 ग्राम (सक्रिय तत्व) का अंकुरण से पहले 300-350 लीटर पानी में घोल बनाकर एक एकड़ में छिड़काव करें। पहली निराई-गुड़ाई बुआई के 30-35 दिन बाद तथा दूसरी 55-60 दिन बाद आवश्यकतानुसार करें।
- सिंचाईः यदि खेत में उचित नमी न हो तो पलेवा करके बुआई करें। बुआई के बाद खेत में नमी न होने पर दो सिंचाई, बुआई के 45 दिन एवं 75 दिन बाद करें।
पौध संरक्षण
- कटुआ सूंडी (एगरोटीस इपसीलोन)
इस कीड़े की रोकथाम के लिए 200 मि.ली. फेनवालरेट (20 ई.सी.) या 125 मि.ली. साइपरमैथ्रीन (25 ई.सी.) को 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।
- फली छेदक (हेलिकोवरपा आरमीजेरा)
यह कीट चने की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इससे बचाव के लिए 125 मि.ली. साइपरमैथ्रीन (25 ई. सी.) या 1000 मि.ली. कार्बारिल (50 डब्ल्यू.पी.) को 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर उस समय छिड़काव करें जब कीड़ा दिखाई देने लगे। यदि जरूरी हो तो 15 दिन बाद दोबारा छिड़काव करें।
- उक्ठा रोगः
इस रोग से बचाव के लिए उपचारित करके ही बीज की बुआई करें तथा बुआई 25 अक्टूबर से पहले न करें।
- जड़ गलनः
इस रोग के प्रभाव को कम करने के लिए रोगग्रस्त पौधों को ज्यादा न बढ़ने दें। रोगग्रस्त पौधों एवं उनके अवशेष को जलाकर नष्ट कर दें या उखाड़कर गहरा जमीन में दबा दें। अधिक गहरी सिंचाई न करें।
चना के उत्पादन का विश्व वितरण
चना का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है।
उत्पादक रैंक (2013) | देश | 2010 | 2011 | 2012 | 2013 |
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1 | भारत | 7,480,000 | 8,220,000 | 7,700,000 | 8,832,500 |
2 | ऑस्ट्रेलिया | 602,000 | 513,338 | 673,371 | 813,300 |
3 | पाकिस्तान | 561,500 | 496,000 | 291,000 | 751,000 |
4 | तुर्की | 530,634 | 487,477 | 518,000 | 506,000 |
5 | म्यान्मार | 441,493 | 473,102 | 500,000 | 490,000 |
6 | इथियोपिया | 284,640 | 322,839 | 409,733 | 249,465 |
7 | ईरान | 267,768 | 290,243 | 315,000 | 295,000 |
8 | मेक्सिको | 131,895 | 72,143 | 271,894 | 209,941 |
9 | कनाडा | 128,300 | 90,800 | 161,400 | 169,400 |
10 | संयुक्त राज्य अमेरिका | 87,952 | 99,881 | 151,137 | 157,351 |
— | विश्व | 10,897,040 | 11,497,054 | 11,613,037 | 13,102,023 |
Source: FAO[3] | Source: FAO[4] |
दाल
चने को दल कर दोनो पत्रक अलग अलग होने पर चने की दाल मिलती है। चने की दाल का प्रयोग भोजन में विशेष रूप से किया जाता है। ये अत्यधिक गुणकारी होती है। इसकी दाल को पीस कर आटा प्राप्त किया जाता है जिसे सामान्य भाषा मे बेसन कहा जाता है। बेसन से भारत मे कई प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते है जैसे बेसन चक्की , बेसन के चीले, आलूबड़े आदि।
सन्दर्भ
- ↑ Jadhav (November 10, 2022). "Bengal Gram In Hindi | Top 10 Health Benefits | Side Effects | चना |". Medicinetalk.in. अभिगमन तिथि March 25, 2023.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 अप्रैल 2009.
- ↑ "Production of Chickpea by countries". UN Food & Agriculture Organization. 2011. मूल से 4 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-08-28.
- ↑ "Production of Chickpea by countries". UN Food & Agriculture Organization. 2014. मूल से 20 अक्तूबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-11-13.
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- चने की उन्नत खेती[मृत कड़ियाँ] (डिजिटल मण्डी)
- चना (हिंदीआयुर्वेद)
- चना Archived 2024-01-23 at the वेबैक मशीन (नयी दिशाएँ)
- जैविक धान के बाद चने की खेती[मृत कड़ियाँ]
- कीट प्रबंधन - चना (एम पी कृषि)