गोविंदराव खरे
सुबेदार गोविंदराव नाईक खरे मराठा साम्राज्य मे पेशवा सरकार के अन्तर्गत रतनगढ़ किले के सूबेदार थे। उनका जन्म महाराष्ट्र के एक किसान कोली परिवार में हुआ था। खरे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारी थे जिन्होने महाराष्ट्र मे अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए थे और ब्रिटिश शासन का अंत घोषित कर दिया था।[1]
सूबेदार सरदार गोविंदरावजी नाईक खरे | |
---|---|
विकल्पीय नाम: | वंडकरी |
मृत्यु - स्थान: | अहमदनगर, ब्रिटिश भारत |
आंदोलन: | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
धर्म: | हिंदू कोली |
प्रभावित किया | रामजी भांगरे |
१८१८ मे मराठा साम्राज्य और ब्रिटिश सरकार के बीच युद्ध हुआ जिसमें मराठा साम्राज्य खत्म हो गया इसके बाद भी खरे पेशवा के प्रति निष्ठावान रहा। ब्रिटिश सरकार की तरफ़ से खरे को सुबेदार की पदवी के लिए प्रस्ताव आया लेकिन खरे ने इंकार कर दिया। इसके बाद सरकार ने खरे के १२ रिस्तेदारो की जमीन छीन ली जिसपर वो शिवाजी के समय से हक जमाते आए थे साथ ही अंग्रेज और भी स्थानीय लोगों के साथ भी एसा कर रहे थे कारणवश खरे और १२ कोलीयों ने अन्य कोलीयों को एकजुट किया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।[2]
विद्रोह
गोविंदराव खरे विद्रोह का एलान करने के पश्चात अपने क्रांतिकारी सेना बनाई और पहाड़ी इलाकों में केंद्र बना लिया। खरे के साथ काफी कोली जुड़े साथ ही कोंकण से आए रामजी भांगरे भी खरे के साथ हो गया और पहली ही बार मे सरकारी खजाने पर हमला बोल दिया। ब्रिटिश सरकार ने कैप्टन मैकिंटोश को ब्रिटिश सेना के साथ बागीयों को पकड़ने भेजा लेकिन मैकिंटोश खरे से लडने मे समर्थ नही था इसलिए उसने पहने बागीयों की पूरी जानकारी जुटानी चाही। मैकिंटोश ने पश्चिमी घाट मे सेना को जानकारी जुटाने में लगा दिया। सभी लोग क्रांतिकारीयों के पक्ष मे थे इसलिए किसी ने भी अंग्रेजों का साथ नही लेकिन कुछ चीतपावन ब्राह्मणों ने अंग्रेजों को काफी जानकारी दी।[3]
१८३० मे कैप्टन मैकिंटोश ने अकोला की पहाड़ियों से सेना भेजी जहां क्रांतिकारी सेना और ब्रिटिश सेना के बीच मुठभेड़ में ब्रिटिश सेना के कई जवान मारे गए लेकिन कैप्टन मैकिंटोश को कुछ भी हाथ नही लगा। खरे और रामजी भांगरे आसानी से बचकर निकल गए। लेकिन कुछ समय बाद दुबारा मुठभेड़ हुई जहां खरे को बंदी बना लिया गया और फांसी की सज़ा सुनाई गई।[4][3]
संदर्भ
- ↑ Maharashtra State Gazetteers: Ahmadnagar (अंग्रेज़ी में). Director of Government Printing, Stationery and Publications, Maharashtra State. 1976.
- ↑ Nand, Brahma (2003). Fields and farmers in western India, 1850-1950 (अंग्रेज़ी में). Bibliomatrix.
- ↑ अ आ Divekar, V. D. (1993). South India in 1857 War of Independence (अंग्रेज़ी में). Lokmanya Tilak Smarak Trust. मूल से 4 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 अप्रैल 2020.
- ↑ Gāre, Govinda (1976). Tribals in an Urban Setting: A Study of Socio-economic Impact of Poona City on the Mahadeo Kolis (अंग्रेज़ी में). Shubhada Saraswat.