गुरु। गीता
यह भगवद्गीता का ही एक प्रकार है जिसमे श्री कृष्ण को गुरु मानके उनका दिया हुवा उपदेश अर्जुन की भांति शिष्य ग्रहण करता है और गुरु शिस्य परंपरा से निर्मित गीता का अध्ययन गुरु गीता के नाम से प्रसिद्ध है।
श्रीमद भगवद्गीता का ही अध्ययन गुरु के द्वारा होने से गुरु गीता कहा जाता है .
ओर एक सत्य यह भी है
गुरु गीता एक हिन्दू ग्रंथ है। इसके रचयिता 'भगवान सदाशिव हैं। वास्तव में यह स्कन्द पुराण का एक भाग है। इसमें कुल ३५२ श्लोक हैं।
गुरु गीता में भगवान शिव और पार्वती का संवाद है जिसमें पार्वती भगवान शिव से गुरु और उसकी महत्ता की व्याख्या करने का अनुरोध करती हैं। इसमें भगवान शंकर गुरु क्या है, उसका महत्व, गुरु की पूजा करने की विधि, गुरु गीता को पढने के लाभ आदि का वर्णन करते हैं।
वह सद्गुरु कौन हो सकता है उसकी कैसी महिमा है। इसका वर्णन इस गुरुगीता में पूर्णता से हुआ है। शिष्य की योग्यता, उसकी मर्यादा, व्यवहार, अनुशासन आदि को भी पूर्ण रूपेण दर्शाया गया है। ऐसे ही गुरु की शरण में जाने से शिष्य को पूर्णत्व प्राप्त होता है तथा वह स्वयं ब्रह्मरूप हो जाता है। उसके सभी धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य आदि समाप्त हो जाते हैं तथा केवल एकमात्र चैतन्य ही शेष रह जाता है वह गुणातीत व रूपातीत हो जाता है जो उसकी अन्तिम गति है। यही उसका गन्तव्य है जहाँ वह पहुँच जाता है। यही उसका स्वरूप है जिसे वह प्राप्त कर लेता है।