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गींदड़ (लोकनृत्य)

गिंदड्

गींदड़ राजस्थान के शेखावाटी अंचल का एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है। इसका आयोजन होली के पर्व पर किया जाता है। यह गुजरात के गरबा नृत्य से काफी हद तक मिलता-जुलता है। इसमें गरबा की तरह ही कई पुरूष अपने दोनों हाथों में लकड़ी की डंडियाँ लेकर अपने आगे व पीछे के साथियों की डंडियों के साथ चोट करते हुए गोल घेरे में चलते हुए आगे बढ़ते हैं। घेरे के केन्द्र में एक ऊँचा मचान (दो आदमियों के बैठने लायक जगह, जो कि सामान्यतः चार बल्लियों को आयताकार रूप में रखते हुए उनके ऊपर कोई लकड़ी या कपड़ा बाँधकर बना ली जाती है।) बनाया जाता है। घेरे के केन्द्र पर एक ऊँचा झण्डा भी लगाया जाता है जो कि मचान के केन्द्र से भी निकलता हुआ ऊपर तक जाता है। मचान पर बैठा हुआ व्यक्ति नगाड़ा बजाता है। घेरे में अंदर की खाली जगह में कुछ लोग चंग (ढपली जैसा ही वाद्य परन्तु आकार में ढपली से बड़ा होता है, इसे स्थानीय भाषा में 'ढप' या 'चंग' के नाम से जाना जाता है।) बजाते हुए एक विशेष प्रकार के लोकगीत (इन लोकगीतों को स्थानील क्षेत्रों में 'धमाल' के नाम से ही जाना जाता है) गाते हुए घूमते हैं। इस तरह नगाड़े, चंग, धमाल व डंडियों की एक ताल में मिलती हुई ध्वनियों से जो प्रेमपूर्वक हृदय में आनन्द की अनुभूति का आभास कराता है वो किसी को भी आनन्दित करने के लिए बाध्य होता है और सभी उपस्थित लोग आनन्द से झूम उठते हैं।

गींदड़ को कहीं-कहीं गींदड़ी के नाम से भी पुकारा जाता है।

राजस्थान में मूलत : राजलदेसर, लक्ष्मणगढ़, रामगढ़ , मुकुंदगढ़ में ये नृत्य काफी लोकप्रिय हैं । राजलदेसर का गिंदड़ सर्वाधिक लोकप्रिय है। लक्ष्मणगढ़ में ’’सदाबहार गिंदड़ समिति’’ गिंदड नृत्य की सबसे पुरानी टोली मानी जाती हैं ।

गरबा और गींदड़ मे अन्तर

गरबा और गींदड़ में ए॰ मुख्य भेद डंडियों का होता है, गींदड़ की डंडियां गरबा के डांडियों से आकार में अधिक लम्बाई लिए॰होती हैं। दुसरा मुख्य भेद यह होता है, गरबा में स्त्री-पुरूषों के जोडे होते हैं जबकि गींदड़ में मुख्य रूप से पुरूष ही भागीदारी करते हैं। परन्तु गींदड़ में पुरूष ही स्त्रियों का या अन्य रूप से स्वांग रचकर नाचते हुए॰घूमते हैं।