गिरिजाकुमार घोष
गिरिजाकुमार घोष () हिन्दी साहित्यकार तथा पत्रकार थे। वे इंडियन प्रेस के प्रबन्धक थे। हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग की पत्रिका 'सम्मेलन पत्रिका' के वे प्रथम सम्पादक थे। वे बांग्ला से हिन्दी अनुवाद के लिए भी प्रसिद्ध हैं। हिन्दी कहानियों में वे अपना नाम 'लाला पार्वतीनन्दन' देते थे। हिन्दी में आख्यायिकाओं का प्रारम्भ करनेवाले गिरिजाकुमार घोष ही थे। उनके उपरान्त बाबू जयशंकर प्रसाद, ज्वालादत्त, प्रेमचंद, कौशिक, सुदर्शनज, हृदयेशज आदि कहानी-लेखक हुए।
हिन्दी सेवा
गृहिणी (१९१०) की भूमिका में गिरिजाशंकर घोष कहते हैं-
- हिन्दी भाषा में पुरुषों के लिए साहित्य का मैदान तैयार करने का काम कुछ कुछ मेरे ऊपर भी पड़ चुका है। हिन्दी के सब रसिक लगभग इस बात को जानते हैं कि 'सरस्वती' नाम की मासिक पत्रिका के संचालन का भार उसकी बाल्यावस्था में मेर ही ऊपर सौंपा गया था। जब पहले पहल सरस्वती प्रकाशित की गयी, उस समय हिन्दी के लेखक और पाठक दोनों की बहुत कमी थी। उस समय अंग्रेजी पढ़े लिखे विद्वान मातृभाषा से सर्वथा नहीं तो बहुत कुछ घृणा किया करते थे। परन्तु सात वर्ष के लगातार परिश्रम से मुझको जान पड़ा कि ऋतु बदलने लगी, हिन्दी भाषा की सेवा के लिए भी वीर विद्वों ने कमर कस ली; जिस मैदान में पहले इने-गिने पुराने दस पाँच नामी योद्धा देख पड़ते थे, आज कल उसी मैदान में उन पुराने वीरवरों का साथ देने के लिए अनेक युवा पुरुष सावधान होकर खड़े हो गए हैं। अब वह शुभ अवसर आ गया है जब माई के लाल माता से द्वेष नहीं रखते, अंग्रेजी पढ़ कर भी मातृभाषा की सेवा करने में उनको अब लज्जा नहीं होती।
सन्दर्भ
कृतियाँ
- बिजली (१९०४)
- गृहिणी (१९१०)
- रसातलयात्रा (१९१२)