गनकॉटन
गनकॉटन एक प्रकार का विस्फोटक है जो सैलूलोज़ का नाइट्रेट एस्टर है और रुई या सैलूलोज को सांद्र नाइट्रिक और सांद्र सल्फ्यूरिक अम्लों के मिश्रण के साथ उपचारित करने से प्राप्त होता है। देखने में यह बिल्कुल रुई सा लगता है और रुई सा ही सफेद, गंधहीन और स्वादहीन ठोस होता है। जल, ऐल्कोहल, ईथर और ग्लेशियल ऐसीटिक अम्ल (glacial acetic acid) में यह अविलेय होता है, पर ऐसीटोन, ऐल्किल ऐसीटेट और नाइट्रो-बेंज़ीन में घुल जाता है। गनकॉटन में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 14.14% रहनी चाहिए यदि नाइट्रोजन की प्रति शत मात्रा कम हो तो ईथर-ऐल्कोहल में घुलकर कोलोडियम बनता है।
गनकाटन बड़ी तीव्रता से जलता है। यह प्रस्फोटन से ही विस्फुटित होता है। प्रस्फोटन के लिए मरकरी फल्मिनेट प्रयुक्त होता है। संपीडन से विस्फोटन के लिए टारपीडो और कारतूस में प्रयुक्त होता है। पाइरॉक्सीलीन के साथ मिलकर यह धूम्रहीन चूर्ण बनाता है, जिसमें विस्फोटनतरंग का वेग बहुत मंद हो जाता है। प्रणोदक के लिये अधिक सुविधाजनक होता है। बंदूक और तोपों में इसका प्रयोग व्यापक रूप से होता है। यदि गनकॉटन को नाइट्रोग्लिसरीन के साथ ऐसीटोन के सहारे मिलाया जाए तो ऐसे मिश्रण को कॉर्डाइट कहते हैं। यह बहुत महत्व का विस्फोटक है। नाइट्रो-ग्लिसरीन को कोलोडियन के साथ मिलाने से भी बिना ऐसीटोन की सहायता से कॉर्डाइट प्राप्त हो सकता है।
इसका आविष्कार 1846 में स्विटज़रलैंड के एक जर्मन वैज्ञानिक सी. एफ. शायन बीन ने किया था। रुई को अम्लों के मिश्रण में डुबोकर निचोड़ और सुखा लिया जाता है फिर उसे सारे अम्ल और अशुद्धियों से परिशुद्ध करने के निमित्त पानी में उबाला जाता है। इस प्रकार परिशुद्ध रुई की लुगदी बनाकर फिर धोया जाता है और गीली अवस्था में ही उसकी छोटी छोटी ईटें बना ली जाती हैं।
सूखा गनकाटन बड़ी तेजी से हिस की आवाज करता जलता है। यदि उसपर हथौड़े से चोट की जाय तो विस्फोट करेगा। गनकाटन की विस्फोटक गति तीन मील प्रति सेकेंड है इस कारण इसका प्रयोग बंदूक या तोप में नहीं किया जाता। उसमें अनेक धूमरहित चूर्ण मिश्रित किया जाता है। इसका प्रयोग प्लास्टिक बनाने में भी होता है।