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क्षमा राव

पण्डिता क्षमाराव (4 जुलाई 1890 - 22 अप्रैल 1954) एक संस्कृत विदुषी थीं जिन्होंने संस्कृत साहित्य में नूतन विधाओं तथा विषयवस्तु का अवतरण किया। वे गार्गी एवं मैत्रेयी की परम्परा को आगे बढाने वाली संस्कृत कवयित्री हैं। उन्होंने कथाओं को भी पद्य में लिखा। चरित काव्य के अन्तर्गत उन्होंने तुकारामचरित, रामदासचरित तथा ज्ञानेश्वरचरित का ग्रथन किया। गांधी जी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर उन्होंने 'सत्याग्रहगीता' नामक महाकाव्य की रचना की जो १९३२ में पेरिस से प्रकाशित हुआ। अपने पिता की जीवनी लेखन से पण्डिता क्षमा ने संस्कृत साहित्य में नई विधा का सूत्रपात किया।

पण्डिता क्षमा राव का जन्म 4 जुलाई 1890 को महाराष्ट्र के एक विद्वत्परिवार में हुआ था। दुर्भाग्य से तीन वर्ष की अल्प आयु में ही उनको पितृ-वियोग सहना पड़ा। पिता की मृत्यु के पश्चात् क्षमा का बचपन अपनी चाची के घर घोर कष्टों और अभावों में बीता। प्रतिकूल परिस्थितियों के होते हुए भी मेधाविनी क्षमा 10 वर्ष की आयु से ही संस्कृत और अंग्रेजी में कविताएंँ लिखने लगी थी।

20 वर्ष की आयु में उनका विवाह प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. राघवेन्द्र राव के साथ हो गया। 1911 में पति के साथ यूरोप-भ्रमण के दौरान उन्होंने अंग्रेजी, फ्रेंच और जर्मन भाषाओं का अभ्यास किया, पाश्चात्य संगीत, पियानो-वादन और टेनिस में प्रवीणता प्राप्त की। यूरोप की संस्कृति को निकट से जानकर अंग्रेजी भाषा में उत्तम साहित्य की रचना की। वे यूरोप के अनेक विद्वानों और साहित्यकारों के सम्पर्क में आईं|

साहित्य सेवा

क्षमाराव ने अपने जीवन के हर क्षण को साहित्यसर्जन के प्रति समर्पित करते हुए एक विशाल श्रेष्ठ साहित्य की रचना की। पण्डितसमाज ने उन्हें ‘पण्डिता’ एवं ‘साहित्यचन्द्रिका’ की उपाधियों से विभूषित किया। उन्होंने संस्कृत के प्रसिद्ध आचार्य कवि राजशेखर की इस उक्ति को सार्थक किया कि ‘प्रतिभा स्त्री-पुरुष का भेद नहीं करती।’ सन 1953 में उनके पति की मृत्यु के एक वर्ष के भीतर ही 22 अप्रैल 1954 को क्षमाराव निधन हो गया।

रचनाएँ

संस्कृत साहित्य में पण्डिता क्षमाराव द्वारा रचित प्रमुख नारी चरित्र प्रधान ऐतिहासिक रचनाएँ हैं -

मीरा लहरी - इसका प्रकाशन 1944 में हुआ। पण्डिता क्षमाराव द्वारा रचित यह गीतिकाव्य दो खण्डों में विभक्त है जिसमें मीरा की जन्म से लेकर मृत्यु तक की कथा निबद्ध है।

वीरभा - इसका प्रकाशन 1954 में 8 भूपेन्द्र वसु, एवन्यू, कोलकाता से हुआ है। इसकी नायिका वीरभा है और इसी के नाम पर इस रूपक का नामकरण किया गया है। वीरभा नामक महिला युवावस्था में ही अपने सम्पूर्ण व्यक्तिगत सुखों को तिलांजलि देकर तपस्विनी के जीवन को स्वीकार करती है। वह अपने राष्ट्र को विदेशी शासकों के क्रूर जाल से मुक्त कराने की अदम्य भावना से महात्मा गांधी द्वारा संचालित सत्याग्रह आन्दोलन में अग्रणी भूमि निभाती है। इसका नेतृत्व करके सभी के मानस में राष्ट्रीय भावना का प्रबल संचार करती है।

पण्डिता क्षमाराव की ‘मीरालहरी‘ को उपजीव्य बनाकर लीलाराव दयाल ने ऐतिहासिक कथा प्रधान मीराचारितम् नामक रूपक की रचना की है। मजूंषा पत्रिका अगस्त, 1960 वर्ष-10, अंक 6 में यह प्रकाशित हुई है। 13 दृश्यों में विभक्त इस रूपक में मीरा की बाल्यावस्था से लेकर जीवन भर की हरिभक्ति परक घटनाएँ चित्रित की गई हैं। ससुराल पक्ष के द्वारा अनेकों अत्याचार किए जाने पर भी मीरा अपनी भक्ति को नहीं छोड़ती है और चुपचाप अत्याचारों को सहन करती हुई वह एक दिन कृष्ण में ही अन्तर्लीन हो जाती है।