कोल्हापुर
कोल्हापुर Kuntan (Previous name) | |
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कोल्हापुर का नया महल | |
कोल्हापुर | |
निर्देशांक : 16°41′N 74°14′E / 16.69°N 74.23°Eनिर्देशांक: 16°41′N 74°14′E / 16.69°N 74.23°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | महाराष्ट्र |
ज़िला | कोल्हापुर ज़िला |
Population (2011) | |
• Total | 5,49,236 |
भाषा | |
• प्रचलित | मराठी |
Time zone | भारतीय मानक समय (UTC+5:30) |
कोल्हापुर (Kolhapur) भारत के महाराष्ट्र राज्य के कोल्हापुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह ज़िले का मुख्यालय भी है। भूतपूर्व समय में यह भोंसले छत्रपति द्वारा शासित कोल्हापुर रियासत की राजधानी थी।[1][2][3]
विवरण
कोल्हापुर मुंबई से 400 किलोमीटर दूर स्थित है। मुंबई से पास होने के कारण बड़ी संख्या में पर्यटक सप्ताहंत में यहां आते हैं। यह स्थान ऐतिहासिक तथा धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। कोल्हापुर का मराठी कला के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। विशेष रूप से कोल्हापुरी हस्तशिल्प बहुत प्रसिद्ध है। कोल्हापुरी चप्पलें तो देश विदेश में मशहूर हैं ही। प्रकृति, इतिहास, संस्कृति और आध्यात्म से रूबरू कराता कोल्हापुर सभी आयु के लोगों को कुछ न कुछ अवश्य देता है।
मुख्य आकर्षण
महालक्ष्मी मंदिर
यह मनमोहक मंदिर कोल्हापुर तथा आसपास के हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। यह मंदिर देवी महालक्ष्मी को समर्पित है जिन्हें अंबा बाई के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर में काशी विश्वेश्वर, कार्तिकस्वामी, सिद्धिविनायक, महासरस्वती, महाकाली, श्री दत्ता और श्री राम भी विराजमान हैं। महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण कार्य चालुक्य शासक करनदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में 9वीं शताब्दी में शिलहार यादव ने इसे विस्तार प्रदान किया। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में देवी महालक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है। कोल्हापुर यह स्थान 'तांबडा' और सफेद रस्सा के लिए और मिसलपाव इस खाद्यपदार्थों के लिए प्रसिद्ध है। इसके साथ ही कोल्हापुर की चप्पल भी खूप प्रसिद्ध है।जिसे कोल्हापुरी चपल ही कहा जाता है।अपनत्व की भावना भी यहाँ के लोगों में दिखाई देती है। यहाँ की मिसळपाव यह बहुत प्रसिद्ध खाद्यपदार्थ है। खाऊ गल्ली की राजाभाऊं इनकी भेल प्रसिद्ध है। इसके साथ ही बावडा मिसळ, फडतरे, चोरगे, हॉटेल साकोली एेसी अनेक मिसलपाव की जगहें प्रसिद्ध है।मिरजकर तिकटी,गंगावेस यहाँ दुध कट्टे पर उत्तम प्रकार का ताजा दूध मिलता है।
पौराणिक हिंदू धर्मशास्त्र के अनुसार, प्राचीन काल में केशी राक्षस का लडका कोल्हासुर यह यहाँ राज्य कर रहा था। उसने राज्य में अनाचार और सभी के त्रस्त कर रखा था इसलिए देवाें की प्रार्थना पर महालक्ष्मीने उनसे युद्ध किया। यह युद्ध नौ दिवस चला और अश्विन शुद्ध पंचमी को महालक्ष्मीने कोल्हासूर इस राक्षस का वध किया। उस समय कोल्हासूर महालक्ष्मी को शरण गया और उसने देवी के पास अपने नगर का कोल्हापूर और करवीर यह नाम जैसे है वैसे ही चालू रखे ऐसा वर माँगा उसके अनुसार इस नगरी को कोल्हापुर या करवीर इस नाम पहचाना जाता है।
नया महल और छत्रपति शाहू संग्रहालय
1884 में बने इस महल का महाराज का नया महल भी कहा जाता है। इसका डिजाइन मेजर मंट ने बनाया था। महल के वास्तुशिल्प पर गुजरात और राजस्थान के जैन व हिंदू कला तथा स्थानीय राजवाड़ा शैली का प्रभाव है। महल के प्रथम तल पर वर्तमान राजा रहते हैं जबकि भूतल पर वस्त्रों, हथियारों, खेलों, आभूषणों आदि का संग्रह प्रदर्शित किया गया है। ब्रिटिश वायसराय और गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से लिखे गए पत्र भी यहां देखे जा सकते हैं। महल के अंदर ही शाहु छत्रपति संग्रहालय भी है। यहां पर कोल्हापुर के महाराज शहाजी छत्रपति की बहुत सी वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं जैसे बंदूक, ट्रॉफियां और कपड़े आदि।
पन्हाला किला
कोल्हापुर का पन्हाला किला समुद्र तल से ३१२७ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां की प्राकृतिक खूबसूरती और शांत अपनी ओर खींचती है। पन्हाला का नाम मिला पन्न्ना नामक जनजाति के नाम पर पड़ा जो आरंभ में इस किले पर शासन करती थी। इस किले का निर्माण १०५२ में राजा भेज ने करवाया था। बाद में शिलहार और यादव वंशों ने भी यहां राज किया। वीर मराठा शिवाजी ने १६५९ में इस स्थान को आदिल शाह के नियंत्रण से मुक्त कराया। १७८२ तक पन्हाला कोल्हापुर की रानी ताराबाई के राज्य की राजधानी रहा।
काशी विश्वेश्वर मंदिर
काशी विश्वेश्वर मंदिर महालक्ष्मी मंदिर के उत्तर में घाटी-दर्वजा परिसर में स्थित है। मंदिर का निर्माण्ा 6ठी-7वीं शताब्दी के दौरान किया गया था और इसका विस्तार राजा गोंडाडिक्स ने किया था। कबीर महात्मय के अनुसार इस स्थान पर अगस्ति ऋषि, लोपमुद्रा, राजा प्रल्हाद और राजा इंद्रसेन दर्शन करने आए थे। मंदिर बन ने से पूर्व यहां पर दो जलकुंड थे- काशी और मणी कमिका जिनमें से मणीकमिका पूरी तरह नष्ट हो गया। इसके स्थान पर महालक्ष्मी उद्यान बनाया गया। कहा जाता है कि बाहर के छोटे मंडप में एक प्राचीन गुफा है जो ध्यान साधना के उद्देनश्य से बनाई गई थी। प्रवेश स्थान पर गणेश, तुलसी आदि की प्रमिमाएं हैं। मंदिर के पास ही जोतिबा का छोटा सा मंदिर भी है।
जोतिबा मंदिर
जोतिबा कोल्हापुर के उत्तर में पहाड़ों से घिरा एक खूबसूरत मंदिर है। इसका निर्माण 1730 में नवाजीसवा ने करवाया था। मंदिर का वास्तु प्राचीन शैली का है। यहां स्थापित जोतिबा की प्रतिमा चारभुजाधारी है। माना जाता है कि जोतिबा भैरव का पुनर्जन्म था। उन्होंने रत्नासुर से लड़ाई में देवी महालक्ष्मी का साथ दिया था। रत्नासुर के नाम से रत्न और चारोओर पहाड़ है उससे गिरी ऐसे गांव का नाम रत्नागिरी पड़ा। बाद में गांव वालों ने इसका नाम जोतिबा रख दिया। चैत्र पूर्णिमा के अवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। उस समय गुलाल उड़ाकर भक्त अपनी श्रद्धा का परिचय देते हैं। उस समय पहाड़ भी मानो गुलाबी रंग में रंग जाते हैं।
रंकाळा तालाब
महालक्ष्मी मंदिर के पश्चिम में स्थित रंकाला झील यहां के स्थानीय लोगों के साथ-साथ सैलानियों के बीच भी लोकप्रिय है। झील का निर्माण स्वर्गीय महाराजा श्री शाहू छत्रपति ने करवाया था। झील के आसपास चौपाटी और अनेक उद्यान हैं।
दाजीपुर अभ्यारण्य
दाजीपुर बिसन अभ्यारण्य कोल्हापुर और सिंधुदुर्ग जिले की सीमा पर स्थित है। इस प्रसिद्ध पर्यटक स्थल में पशु-पक्षियों की अनेक प्रजातियां पाई जाती है। यहां चारों ओर प्रकृति की खूबसूरती बिखरी हुई है। यह जंगल गावा भैंसों के लिए जाना जाता है। इसके अलावा जंगली हिरन, चीतल आदि भी यहां देखे जा सकते हैं। जंगल में गंगनगिरी महाराजा का मठ भी है। वनस्पतिशास्त्र के छात्रों के लिए यह स्थान बहुत ज्ञानवर्धक है। रोमांच के शौकीनों के लिए यह स्थान स्वर्ग है। ट्रैकिंग का मजा लेने के लिए अनेक लोग यहां आते हैं।
टाउन हॉल
कोल्हापुर शहर के बीचों बीच स्थित इस इमारत का निर्माण 1872-1876 के बीच किया गया था। यहां पर संग्रहालय भी है जिसमें ऐतिहासिक चीजें देखी जा सकती हैं। संग्रहालय में ब्रह्मपुरी से लाई गई वस्तुएं, प्राचीन मूर्तियां, सुप्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा बनाए गए चित्र, कलाकृतियां, प्राचीन सिक्के, कढ़ाईदार सामान, वस्त्र, तलवारें, बंदूर आदि रखे गए हैं। टाउन हॉल परिसर में सरकारी कार्यालय, कोर्ट, सरकारी अस्पताल, टेलिफोन कार्यालय हैं। इसलिए यहां हमेशा भीड़ भाड़ रहती है। यहां के उद्यान में विशाल फव्वारा, कुड और महादेव मंदिर है।
आवागमन
- वायु मार्ग
नजदीकी हवाई अड्डा बेलगांव में है जो कोल्हापुर से 150 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग
यहां पुणे-मिरज-कोल्हापुर सेक्शन का रेलवे स्टेशन है जो भारत के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
- सड़क मार्ग
कोल्हापुर दिल्ली से चेन्नई जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 48 द्वारा कई अन्य नगरों से जुड़ा हुआ है। रत्नगिरि जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 166 का भी एक अंत यहाँ स्थित है। कोल्हापुर से मुंबई, पणजी, मिराज, सांगली, पुणे, सतारा, सावंतवाड़ी, सोलापुर, नांदेड़ और अन्य कई जगहों के लिए राज्य परिवहन की नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
उद्योग और व्यापार
यहाँ के उद्योगों में वस्त्र निर्माण, इंजीनियरिंग उत्पाद उद्योग और चीनी प्रसंस्करण शामिल है। पश्चिमी घाटी और वर्णा नदी के किनारे गन्ना उत्पादन के कारण चीनी मिलों की संख्या बढ़ी है। यहाँ दुग्ध उत्पादन और प्रसंस्करण व मुर्गीपालन महत्त्वपूर्ण सहायक आर्थिक गतिविधियाँ हैं। कोल्हापुर के दक्षिण में गोकुल शिरगांव नामक नया शहरी क्षेत्र है। जो दुग्ध उत्पादन और औषधि निर्माण इकाइयों के लिए ख़ास तौर पर प्रसिद्ध है। इस प्रमुख गन्ना उत्पादन क्षेत्र में चीनी मिलें आम है। ज़िले के अन्य स्थानों को उनकी कुछ विशिष्टताओं के लिए जाना जाता है। इचलकरंजी को हथकरघा और विद्युतचालित करघे के लिए हुपारी को चांदी के आभूषणों और कापशी को चमड़े के सामान के लिए जाना जाता है।
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
- ↑ "RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831
- ↑ "Mystical, Magical Maharashtra Archived 2019-06-30 at the वेबैक मशीन," Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458
- ↑ Hunter, William Wilson, Sir, et al. (1908). Imperial Gazetteer of India, Volume 18, pp 398–409. 1908-1931; Clarendon Press, Oxford