कुन्भोङ् वंश
कुन्भोङ् वंश ကုန်းဘောင် | ||||||
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राजधानी | Shwebo (1752–1760) Sagaing (1760–1765) Ava (1765–1783, 1821–1842) Amarapura (1783–1821, 1842–1859) Mandalay (1859–1885) | |||||
भाषाएँ | Burmese | |||||
धार्मिक समूह | Theravada Buddhism | |||||
शासन | Absolute monarchy | |||||
Monarch | ||||||
- | 1752–1760 | Alaungpaya (first) | ||||
- | 1878–1885 | Thibaw (last) | ||||
विधायिका | Hluttaw | |||||
ऐतिहासिक युग | Early modern period | |||||
- | राजवंश की स्थापना | 29 February 1752 | ||||
- | म्यान्मार का एकीकरण | 1752–1757 | ||||
- | Wars with Siam | 1760–1854 | ||||
- | Chinese invasion | 1765–1769 | ||||
- | Anglo-Burmese Wars | 1824–1826, 1852, 1885 | ||||
- | राजवंश का अन्त | 29 नवम्बर 1885 | ||||
मुद्रा | kyat (from 1852) | |||||
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कुन्भोंग राजवंश (बर्मी भाषा : ကုန်းဘောင်ခေတ်, कुन्भोंखेत् ) बर्मा का अन्तिम राजवंश था जिसने १७५२ से १८८५ तक बर्मा पर शासन किया। इसे 'अलोमप्रा वंश' भी कहा जाता है। बर्मा के इतिहास में यह दूसरा सबसे बड़ा साम्राज्य था। इस राजवंश ने इसके पूर्ववर्ती टौंगू राजवंश द्वारा शुरू किए गये सभी प्रशासनिक सुधार जारी रखे और इस प्रकार आधुनिक बर्मी राज्य की आधारशिला रखी। किन्तु ये सुधार भी ब्रितानियों को आगे बढ़ने से रोकने में अपर्याप्त सिद्ध हुए। 1824 से 1885 के बीच अंग्रेजों के साथ बर्मा ने तीन युद्ध किए किन्तु पराजित हुए। अन्ततः १८८५ में सहस्र वर्षों की बर्मी राजसत्ता का अन्त हो गया।