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काठात

यह भारत की एक प्राचीन जनजाति है। राजस्थान चीता-मेहरात(काठात) समुदाय 4 ज़िलो मे बहुतायत मे हे ये लोग मुगल कालिंन से मुस्लिम धर्म के अनुयायी रहे है ये मुख्यत: काठा जी के 3 वचनो पर हमेशा से जीवन पद्धती जीते  आये हे 1. खतना 2. दफनाना 3. हलाल खाना  ये तीनो मुख्यत: इस्लाम धर्म की सुन्नते हे लेकिन ये लोग अपनी प्राचीन संस्करती से इतना जुडे हुए हे की मुस्लिम होते हुए भी हिन्दू धर्म के नाम व त्योहार मनाते हे जेसे होली, दिवाली, राखी व स्वयं का मुख्य त्योहार ईद इनका मानना हे की समाज मे एकता ज़रूरी हे ओर इसी ताने बाने को बनाने के लिए हमेशा संघर्षरत रहते हे समय के साथ काठातो में सामाजिक संगठन अस्तित्व में आया तथा यह विचार भी आया कि हमारी लडकियो की शादी बरड वंशीय रावतो में होती है, जिससे उसके मरने पर उसे हिन्दू रीति से जलाया जाता है, दफनाया नहीं जाता। इससे धार्मिक विद्वेष की सम्भावना रहती है। इसी प्रकार बरड़ों की लड़की काठातो की बहू होती है, उसे मरने के बाद दफनाया जाता है। यह सिलसिला सैकड़ो वर्ष चला। इसमे अन्दरुनी तनाव के अलावा ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है कि जब इस बात को लेकर कोई बड़ा मनमुटाव आया हो।

काफी विचार-विमर्श के बाद काठाजी के वंशजो ने अपने में ही चार भाग बना लिये, जो डांगोँ के नाम से जानी जाती हैं। डांग का अर्थ क्षेत्र से हैं। राजस्थान के मेवात में मेवातियो की भी डांगे हैं। मीणा क्षेत्रों में भी डांगोँ का प्रचलन हैं। काठातो की डांगों में व अन्य डांगों यह अन्तर है कि काठातो की डांगे उस क्षेत्र के मूल पुरुष के नाम से हैं। काठात धर्म मुस्लिम में जोड़ने लगा आने वाले समय में पूरी तरह से मुस्लिम हो जाएगा यह मानना है ❣️