कसूर (फ़िल्म)
कसूर | |
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कसूर का पोस्टर | |
निर्देशक | विक्रम भट्ट |
लेखक | महेश भट्ट |
निर्माता | मुकेश भट्ट |
अभिनेता | आफ़ताब शिवदासानी, लीसा रे, आशुतोष राणा, इरफ़ान ख़ान, अपूर्व अग्निहोत्री |
छायाकार | प्रवीण भट्ट |
संगीतकार | नदीम-श्रवण |
प्रदर्शन तिथियाँ | 2 फरवरी, 2001 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
कसूर 2001 में बनी हिन्दी भाषा की रोमांचकारी फ़िल्म है। इसको मुकेश भट्ट ने निर्मित किया और निर्देशन विक्रम भट्ट द्वारा किया गया। इसमें अपनी बॉलीवुड की दुसरी फिल्म में आफ़ताब शिवदासानी और अपनी बॉलीवुड की शुरुआत में लीसा रे शामिल हैं। लीसा की आवाज दिव्या दत्ता द्वारा डब की गई थी।[1] फिल्म में अपूर्व अग्निहोत्री, इरफ़ान ख़ान और आशुतोष राणा भी हैं। इसे 2 फरवरी 2001 को जारी किया गया था। इसके गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे।
संक्षेप
फिल्म एक अमीर और जाने-माने पत्रकार शेखर (आफ़ताब शिवदासानी) की पत्नी प्रीति की हत्या से शुरू होती है। इंस्पेक्टर लोखंडे (आशुतोष राणा) मामले की जांच करते हैं और हत्या का शेखर पर आरोप लगाते हैं कि उनके पास उसे गिरफ्तार करने और दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत है। हालांकि अदालत से जमानत मिलने पर शेखर अपने वकील से मामले से लड़ने के लिए कहता है। हालांकि उसके वकील ने बताया कि वह उसके मामले से लड़ने में सक्षम नहीं है क्योंकि वह एक कॉर्पोरेट वकील है और केवल नागरिक मामलों को लड़ता है। उन्होंने शेखर को सिमरन भार्गव (लीसा रे) से पूछने का सुझाव दिया, जो कि उसके मामले को लड़ने के लिए उनकी फर्म में एक बहुत ही कुशल आपराधिक वकील है।
शेखर अपने मामले को लेने के लिए सिमरन को मनाने के लिए के उसके घर गया। सिमरन शेखर को बताती है कि वह केवल तभी उसका केस लड़ेगी जब वह आश्वस्त हो कि वह निर्दोष है। सिमरन एक ऐसे मामले में भीतरी राक्षसों से जूझ रही है जिसमें उसने एक आदमी को ऐसे अपराध के लिए दोषी ठहरवा दिया जो उसने नहीं किया था। जब वह जानती है कि उस निर्दोष व्यक्ति ने हिरासत में आत्महत्या की तो उसका अपराध बोध बढ़ता है।
शेखर का प्रतिनिधित्व करते हुए, जिसे वह निर्दोष मानती है, सिमरन उसके साथ प्यार में पड़ती है। ये शेखर की उसका विश्वास जीतने की योजना का एक हिस्सा है। वे घनिष्ठ, भावुक और कामुक यौन संबंध बनाते हैं। अदालत के शेखर को निर्दोष घोषित करने के बाद, सिमरन रात शेखर के साथ उसके घर पर बिताती है। अगली सुबह, उसकी अलमारी खोलते समय, उसे चादरों के बीच एक टाइपराइटर छुपा हुआ मिल जाता है।
इस टाइपराइटर का महत्व यह है कि इस पर उसके कार्यालय में भेजे गए 'क्रैंक' अक्षरों को टाइप किया गया है, जिससे छोटे संकेतों को छोड़ दिया गया है जो तैराकी कोच जिमी पारेरा (विश्वजीत प्रधान) की ओर इंगित करते हैं, जिसके शेखर की पत्नी के साथ संबंध थे। टाइप किए गए अक्षरों में सभी पर 'टी' है। सिमरन को पता चला कि शेखर असली हत्यारा है। वह पुलिस स्टेशन टाइपराइटर देने के लिए जाती है। शेखर इसे महसूस करता है और अपने अगले शिकार का दावा करने के लिए झपटता है। अंत में, सिमरन शेखर को आत्मरक्षा में मारती है और अमित (अपूर्व अग्निहोत्री) के साथ मिल जाती है।
मुख्य कलाकार
- आफ़ताब शिवदासानी - शेखर सक्सेना
- लीसा रे - सिमरन भार्गव
- अपूर्व अग्निहोत्री - अमित
- आशुतोष राणा - इंस्पेक्टर लोखंडे
- इरफ़ान ख़ान - सरकारी वकील मेहता
- विश्वजीत प्रधान - जिमी पारेरा
- दिव्या दत्ता - पायल
- पृथ्वी ज़ुत्शी - वकील
- सुचेता खन्ना - शालिनी
- कुरुष देबू - गवाह, रुस्तम
संगीत
कसूर | ||||
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एल्बम नदीम-श्रवण द्वारा | ||||
जारी | दिसम्बर 2000 | |||
रिकॉर्डिंग | 2000 | |||
संगीत शैली | फिल्म साउंडट्रैक | |||
लेबल | सा रे गा मा | |||
नदीम-श्रवण कालक्रम | ||||
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सभी गीत समीर द्वारा लिखित; सारा संगीत नदीम-श्रवण द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "कितनी बेचैन हो के तुम से मिली" | अलका याज्ञिक, उदित नारायण | 7:25 |
2. | "जिंदगी बन गये हो तुम" | उदित नारायण, अलका याज्ञिक | 5:36 |
3. | "मोहब्बत हो ना जाए" | कुमार सानु, अलका याज्ञिक | 6:35 |
4. | "कोई तो साथी चाहिए" | कुमार सानु | 5:29 |
5. | "दिल मेरा तोड़ दिया उसने" | अलका याज्ञिक | 5:07 |
6. | "कल रात हो गई" | अलका याज्ञिक, कुमार सानु | 7:30 |
नामांकन और पुरस्कार
वर्ष | नामित कार्य | पुरस्कार | परिणाम |
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2002 | आफ़ताब शिवदासानी | फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ खलनायक पुरस्कार | नामित |
सन्दर्भ
- ↑ "लीजा रे ने मौत को हरा जीत ली जिंदगी की जंग". पत्रिका. 3 अप्रैल 2015. मूल से 28 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 सितम्बर 2018.