कष्टार्तव (डिसमेनोरीया)
Dysmenorrhea वर्गीकरण एवं बाह्य साधन | |
आईसीडी-१० | N94.4-N94.6 |
---|---|
आईसीडी-९ | 625.3 |
डिज़ीज़-डीबी | 10634 |
मेडलाइन प्लस | 003150 |
एम.ईएसएच | D004412 |
कष्टार्तव (या डिसमेनोरीया) एक स्त्रीरोग संबंधी चिकित्सा अवस्था है जिसकी विशेषता है माहवारी के दौरान गर्भाशय में असहनीय पीड़ा. जबकि अधिकांश महिलाएं मासिक धर्म के दौरान मामूली दर्द का अनुभव करती हैं, कष्टार्तव की पहचान तब होती है जब असहनीय पीड़ा के कारण सामान्य क्रिया-कलाप में बाधा उत्पन्न होने लगती है, या इलाज की आवश्यकता होती है।
कष्टार्तव में विभिन्न प्रकार के दर्द हो सकते हैं, जिनमें शामिल है तीक्ष्ण, धड़कता, सुस्त, वमनकारी, जलनकारी, या भेदने वाला दर्द. कष्टार्तव मासिक धर्म के कई दिनों पूर्व से हो सकता है या उसके साथ हो सकता है और यह आमतौर पर मासिक धर्म के उतरते ही कम होने लगता है। कष्टार्तव अत्यधिक रक्त स्राव के साथ हो सकता है जिसे अतिरज (मैनोरेजिया) के नाम से जाना जाता है।
द्वितीयक कष्टार्तव की पहचान तब होती है जब गर्भाशय के भीतर या बाहर अंतर्निहित बीमारी, विकार, या संरचनात्मक विकृति इसके लक्षण के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। प्राथमिक कष्टार्तव की पहचान तब होती है जब इनमें से कोई भी नहीं पाया जाता है।
वर्गीकरण
कष्टार्तव को एक अंतर्निहित कारण की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर या तो प्राथमिक या द्वितीयक के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। द्वितीयक कष्टार्तव मौजूदा हालत के साथ जुड़ा हुआ कष्टार्तव होता है। द्वितीयक कष्टार्तव का सबसे आम कारण होता है अन्तर्गर्भाशय-अस्थानता (एंडोमेट्रियोसिस)[1] अन्य कारणों में शामिल है गर्भाशय का ट्यूमर (लियोमायोमा),[2] ग्रंथिपेश्यर्बुदता (एडेनोमायोसिस),[3] डिम्बग्रंथि पुटी और श्रोणि रक्त-संकुलन.[4] कॉपर आईयूडी की उपस्थिति भी कष्टार्तव का कारण हो सकती है।[5][6] अन्तर्गर्भाशय-अस्थानता के रोगियों में, लेवोनॉरजेसट्रेल अंतर्गर्भाशयी प्रणाली (मिरेना) को राहत प्रदान करते पाया गया।[7]
संकेत व लक्षण
कष्टार्तव के मुख्य लक्षण हैं पेट के निचले हिस्से, नाभि सम्बन्धी क्षेत्र या सुप्राप्युबिक क्षेत्र में केंद्रित दर्द. इसे सामान्यतः पेट के दाहिने या बांयी ओर महसूस किया जाता है। यह जांघ और पीठ के निचले हिस्से में फैल सकता है। अन्य लक्षणों में मिचली और उल्टी, दस्त या कब्ज, सिर दर्द, चक्कर आना, स्थितिभ्रान्ति, ध्वनि, प्रकाश, गन्ध, स्पर्श के प्रति अतिसम्वेदनशीलता, बेहोशी और थकान शामिल है। कष्टार्तव के लक्षण अक्सर डिंबोत्सर्जन के तुरंत बाद शुरू होते हैं और मासिक धर्म के अंत तक चलते हैं। इसका कारण है कि कष्टार्तव अक्सर डिंबोत्सर्जन के साथ शरीर में हार्मोन के स्तर में होने वाले परिवर्तन के साथ जुड़ा हुआ है। कुछ प्रकार की गर्भ निरोधक गोलियों के सेवन से कष्टार्तव के लक्षणों को रोका जा सकता है, क्योंकि गर्भ निरोधक गोलियां होने वाले डिंबोत्सर्जन को रोक सकती हैं।
पैथोफिज़ियोलॉजी
एक महिला के मासिक धर्म चक्र के दौरान, संभाव्य गर्भावस्था की तैयारी के लिए अन्तःगर्भाशय मोटा हो जाता है। डिंबोत्सर्जन के बाद, यदि डिंब निषेचित नहीं होता और गर्भ नहीं ठहरता, तब निर्मित गर्भाशय ऊतक की जरूरत नहीं होती और वह बह जाता है।
प्रोस्टाग्लैंडीन नामक आणविक यौगिक, मासिक धर्म के दौरान स्रावित होते हैं, जिसका कारण है एंडोमेट्रियल कोशिकाओं का विनाश और उसके परिणामस्वरूप उनके अंतर्निहित सामग्री का स्राव.[8] गर्भाशय में प्रोस्टाग्लैंडीन और अन्य उत्तेजक मध्यस्थों का स्राव गर्भाशय के सिकुड़न का कारण होता हैं। यह पदार्थ प्राथमिक कष्टार्तव का एक प्रमुख कारक माना जाता हैं।[9] जब गर्भाशय की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं, वे अन्तःगर्भाशय के ऊतक में रक्त की आपूर्ति को बाधित करता है, जिससे वे खराब हो जाते हैं और मृत हो जाते हैं। गर्भाशय का यह संकुचन तब तक जारी रहता है जब तक कि वे पुराने, मृत अन्तर्गर्भाशयकला सम्बन्धी ऊतक को योनि और गर्भाशय ग्रीवा के माध्यम से नीचोड़ कर शरीर से बाहर निकाल नहीं देता है। ये संकुचन और इसके परिणामस्वरूप पास के ऊतकों को होने वाले अस्थायी ऑक्सीजन की कमी, मासिक धर्म के दौरान अनुभव किये जाने वाले दर्द या "ऐंठन" के लिए जिम्मेदार होती है।
अन्य महिलाओं की तुलना में, प्राथमिक कष्टार्तव वाली महिलाओं में गर्भाशय की पेशी की गतिविधियों में वृद्धि पायी जाती है जिसके तहत उनमें अधिक सिकुड़न और संकुचन की आवृत्ति में वृद्धि होती है।[10]
रोग-निदान
एमआरआई के उपयोग से किये हुए एक अनुसंधान अध्ययन के अनुसार, कष्टार्तव से ग्रसित और युमनोरिक (सामान्य) प्रतिभागियों के गर्भाशय के दृश्य विशेषताओं की तुलना की गयी। अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि कष्टार्तव से ग्रसित रोगियों में चक्र के 1-3 दिन के दर्द की मात्रा के साथ सहसंबद्धता दिखाई दी और यह नियंत्रण समूह से काफी अलग थी।[11]
उपचार
पोषाहार
कई पोषक तत्वों वाली खुराक को कष्टार्तव के उपचार के लिए प्रभावी माना जाता है, इनमें शामिल है ओमेगा-3 फैटी एसिड, मैग्नीशियम, विटामिन ई जिंक और थिएमाइन (विटामिन B1)
अनुसंधान इंगित करते हैं कि कष्टार्तव के अंतर्निहित जो तंत्र है वह है ओमेगा 3 फैटी एसिड से प्राप्त गैर-उत्तेजक, वाहिकाविस्फारक एइकोस्नोइड और एसिड ओमेगा -6 फैटी से प्राप्त उत्तेजक और, वाहिकाओं को संकुचित करनेवाले एइकोस्नोइड के वितरण के बीच संतुलन.[12] कई अध्ययनों से पता चलता है कि ओमेगा -3 फैटी एसिड का सेवन कोशिका झिल्ली में ओमेगा 6-के एफए को कम करने के द्वारा कष्टार्तव के लक्षण को पलट सकता है।[13][14][15] ओमेगा-3 फैटी एसिड का सबसे बड़ा आहार स्रोत सन तेल में पाया जाता है।[16]
ऐसा संकेत दिया गया है कि मैग्नीशियम की खुराक भी राहत प्रदान करती है: दो डबल-ब्लाइंड, कूटभेषज-नियंत्रित अध्ययन ने कष्टार्तव पर मैग्नीशियम के एक सकारात्मक उपचारात्मक प्रभाव को दर्शाया है।[17][18] एक बेतरतीब, डबल-ब्लाइंड, नियंत्रित परीक्षण ने साबित किया कि विटामिन ई का मौखिक सेवन प्राथमिक कष्टार्तव के दर्द से आराम देता है और रक्त स्राव को भी कम कर देता है।[19] पूर्ववृत्त की एक समीक्षा से पता चला कि मासिक धर्म के शुरू होने से एक से चार दिनों पहले जिंक की रोज़ाना 30-मिलीग्राम के 1 से 3 खुराक, अनिवार्य रूप से सभी मासिक धर्म चेतावनीयों और सभी मासिक धर्म ऐंठन को रोकता है।[20] प्राथमिक कष्टार्तव के उपचार में विटामिन B1 के मौखिक सेवन की प्रभावकारिता को साबित करने के लिए, एक बेतरतीब, डबल-ब्लाइंड, कूटभेषज-नियंत्रित एक अध्ययन 556 लड़कियों पर किया गया जो 12-21 वर्ष की आयु वर्ग की थीं और जिन्हें हल्के से लेकर बहुत अधिक अकड़नेवाला कष्टार्तव था। थिएमाइन हाइड्रोक्लोराइड (विटामिन B1) को 100 मिलीग्राम की एक मौखिक खुराक, 90 दिनों तक रोज़ाना दिया गया। विटामिन बी1 के खुराक को 90 दिनों तक चलाने के बाद 'सक्रिय उपचारों के पहले' समूह और 'कूटभेषज के पहले' समूह के संयुक्त अंतिम परिणाम इस प्रकार थे, 87 प्रतिशत पूरी तरह ठीक हो गयी, 8 प्रतिशत को राहत मिली (दर्द लगभग नहीं के बराबर) और 5 प्रतिशत पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। कोई दवा नहीं दिए जाने पर भी यह परिणाम दो महीने बाद भी ऐसे ही रहे। दमन-उन्मुख सभी वर्तमान उपचारों के विपरीत, यह रोगहर उपचार प्रत्यक्ष रूप से रोग के कारण को ठीक करता है, पार्श्व प्रभाव से मुक्त है, सस्ती है और लेने में आसान है।[21] एक नियंत्रित अध्ययन में, थियामाइन (विटामिन बी 1) के सेवन को कष्टार्तव से पीड़ित 87% महिलाओं को "उपचारात्मक" राहत प्रदान करते हुए दिखाया गया।[22]
एनएसएआईडी
नॉन-स्टेरायडल ऐंटी-इन्फ्लेमेट्री ड्रग (NSAID) प्राथमिक कष्टार्तव के दर्द से राहत देने में प्रभावी हैं।[23] एनएसएआईडी के पार्श्व प्रभावों में शामिल है उबकाई, अपच, पेप्टिक अल्सर और दस्त.[24] जो रोगी अधिक प्रचलित एनएसएआईडी को नहीं ले पाते हैं, या जिनके लिए यह अधिक कारगर साबित नहीं होती है, उन्हें कॉक्स-2 प्रावरोधक लेने की सलाह दी जाती है।[25] एक अध्ययन के अनुसार एनएसएआईडी से किया गया पारंपरिक चिकित्सा "रोगसूचक राहत प्रदान करता है, लेकिन लंबे समय तक उपयोग करने पर इसके बढ़ते प्रतिकूल प्रभाव होते हैं",[26] एक अन्य के अनुसार एनएसएआईडी का लम्बे समय तक प्रयोग "गंभीर प्रतिकूल प्रभाव" डाल सकता है।[27]
हार्मोन संबंधी गर्भ निरोधक
हालांकि हार्मोनल सम्बन्धी गर्भनिरोधक का उपयोग प्राथमिक कष्टार्तव के लक्षणों में सुधार कर सकता हैं या उनसे राहत दे सकता है,[28][29] 2001 के एक व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि प्राथमिक कष्टार्तव के लिए सामान्यतः प्रयोग की जाने वाली आधुनिक कम खुराक मिश्रित मौखिक गर्भनिरोधक गोली की प्रभावकारिता को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जाना चाहिए। [30] नॉरप्लांट[31] और डेपो-प्रोवेरा[32][33] भी प्रभावी हैं, क्योंकि ये तरीके अक्सर रजोरोध को प्रेरित करते हैं। अंतर्गर्भाशयी प्रणाली (मिरेना आईयूडी) को कष्टार्तव के लक्षण को कम करने में उपयोगी पाया गया है।[34]
गैर-दवा के उपचार
कष्टार्तव के लिए कई दवा रहित उपचारों का अध्ययन किया गया है, जिनमें शामिल है व्यवहार सम्बन्धी, एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर, काइरोप्रैक्टिक देखभाल और TENS की एक इकाई का उपयोग.
व्यवहार सम्बन्धी उपचार यह मानता है कि कष्टार्तव के अंतर्निहित मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया पर्यावरण और मनोवैज्ञानिक कारणों से प्रभावित होता है और यह कि अंतर्निहित प्रक्रियाओं में बदलाव के बजाय कष्टार्तव का उन शारीरिक और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के द्वारा सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है जो लक्षणों के साथ जूझने की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। 2007 में किये गये एक व्यवस्थित समीक्षा में इस बात के कुछ वैज्ञानिक सबूत पाए गये कि व्यवहार सम्बन्धी हस्तक्षेप प्रभावी हो सकते हैं, लेकिन डेटा के खराब गुणवत्ता के होने के कारण परिणाम को सावधानीपूर्वक देखा जाना चाहिए। [35]
एक्यूपंक्चर और एक्युप्रेशर् को कष्टार्तव के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। एक समीक्षा में उद्धृत किये गये चार अध्ययन, जिनमें से दो रोगी-गुप्त थे, यह दर्शाते हैं कि एक्यूपंक्चर और एक्युप्रेशर् प्रभावी रहे थे।[36] इस समीक्षा में कहा गया कि कष्टार्तव के लिए यह उपचार "आशाजनक" दिखाई देता हैं और यह कि शोधकर्ता आगे के अध्ययन को उचित मानते हैं। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि एक्यूपंक्चर कष्टार्तव के व्यक्तिपरक धारणा को कम कर सकता है,[37] एक अन्य ने संकेत दिया कि कष्टार्तव रोगियों में एक्यूपंक्चर जोड़ना उनके दर्द और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ जुड़ा हुआ था।[38]
हालांकि काइरोप्रैक्टिक देखभाल के लिए इस सिद्धांत के अंतर्गत दावे किये गये हैं कि रीढ़ की हड्डी में मोच का उपचार लक्षण को कम कर सकती है,[39] 2006 में एक व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि कुल मिलाकर कोई भी सबूत यह नहीं साबित करते कि रीढ़ की हड्डी में हेरफेर प्राथमिक और द्वितीयक कष्टार्तव के उपचार पर प्रभावी है।[40]
प्रायः पुराने दर्द के लिए इस्तेमाल, ट्रांसक्यूटेनीयस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टीम्युलेशन (TENS) इकाई के साथ उपचार को, कई अध्ययनों में प्रभावी बताया गया है।[41][42][43][44] एक अध्ययन ने प्रदाताओं को TENS इकाई को रोगियों पर आज़माने के लिए प्रोत्साहित किया, इसका आधार था उनकी खोज जिसमें उन्हें "गैर-आक्रामक, कुशल और प्रयोग करने में आसान पाया गया।[45] उन्हीं शोधकर्ताओं के एक अध्ययन में TENS की प्रभावशीलता के प्रमाण पेश किये गये।[46] प्रभावित भाग पर एक गर्म पानी की बोतल रखना इसका एक वैकल्पिक उपाय है। गर्मी उस भाग में मांसपेशियों को आराम देता है और महसूस हो रहे दर्द से अस्थायी राहत प्रदान करता है।
अन्य दवाएं और हर्बल उपचार
कष्टार्तव के उपचार में अन्य दवाओं और हर्बल उपचार का अध्ययन किया गया है। 2008 के एक व्यवस्थित समीक्षा ने प्राथमिक कष्टार्तव के लिए चीनी हर्बल चिकित्सा के प्रभावशाली होने के आशाजनक सबूत पाए, लेकिन यह सबूत अपने कार्यप्रणाली की खराब गुणवत्ता के कारण सीमित था।[47] एक अध्ययन में पाया गया कि दो जापानी हर्बल दवा ने अध्ययन के सभी भागीदारों को पूरी राहत प्रदान की। [48] एक समीक्षा ने ट्रांसडरमल नाइट्रोग्लिसरीन के उपयोग की प्रभावशीलता का संकेत दिया। [49] एक डबल-ब्लाइंड, नियंत्रित अध्ययन में पाया गया कि अमरूद के पत्ते के अर्क से किये गये उपचार लक्षणों में महत्वपूर्ण कमी को परिणामित करते हैं।[50] एक छोटे से डबल-ब्लाइंड, कूटभेषज-नियंत्रित अध्ययन में यह पाया गया कि गुआइफेनेसिन प्राथमिक कष्टार्तव को कम करता था, लेकिन इसका प्रभाव महत्वपूर्ण नहीं था।[51]
हार्मोन सम्बन्धी उपचार
एक अध्ययन में सुझाव दिया गया कि V1(a) चयनात्मकता के साथ वैसोप्रेसिन प्रतिपक्षी, कष्टार्तव सहित, विभिन्न प्रकार के विकारों के इलाज में उपयोगी हो सकता है।[52]
पूर्वानुमान
नॉर्वे में किये गये एक सर्वेक्षण से पता चला कि 20 से 35 वर्ष की आयु की महिलाओं में से 14 प्रतिशत इतनी गंभीर लक्षण का अनुभव करती हैं कि वे स्कूलों और कार्य क्षेत्रों से दूर घर पर ही रहती हैं।[53] किशोर लड़कियों के बीच, इस समूह में कष्टार्तव उनके स्कूल से आवर्तक अल्पकालिक अनुपस्थिति का प्रमुख कारण है।[1]
जानपदिक रोग विज्ञान
कष्टार्तव की आख्या के अनुसार इसके व्यक्ति के किशोराव्स्था और 20 के वर्षों में होने की सम्भावना अधिक होती है और आमतौर पर उम्र के साथ इस आख्या में गिरावट आती है। एक अध्ययन से संकेत मिला कि किशोर महिलाओं में से 67.2% कष्टार्तव का अनुभव करती हैं।[54] हिस्पैनिक किशोर महिलाओं के एक अध्ययन ने इस समूह में एक उच्च व्यापकता और प्रभाव का संकेत दिया। [55] एक अन्य अध्ययन ने संकेत दिया कि कष्टार्तव 36.4% प्रतिभागियों में मौजूद था और यह काफी हद तक कम उम्र और कम समता के साथ जुदा हुआ था।[56] कहा जाता है कि प्रसव कष्टार्तव से राहत देता है, लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता है। एक अध्ययन ने संकेत दिया कि प्राथमिक कष्टार्तव से पीड़ित अप्रसवा, महिलाओं में मासिक धर्म की तीव्रता 40 साल की उम्र के बाद काफी कम हो जाती है।[57] एक प्रश्नावली का निष्कर्ष था कि, कष्टार्तव सहित माहवारी की अन्य समस्याएं, उन महिलाओं में अधिक आम हैं जो यौन दुर्व्यवहार से पीड़ित रही हैं।[58]
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बाहरी कड़ियाँ
साँचा:Diseases of the pelvis, genitals and breastsसाँचा:Menstrual cycle