कंकाल (उपन्यास)
कंकाल धर्म के आवरण में छल-छद्म एवं अनाचार की पृष्ठभूमि पर लिखित जयशंकर प्रसाद का प्रथम उपन्यास है, जिसका प्रकाशन सन् १९२९ ई॰ में भारती भंडार, इलाहाबाद से हुआ था।[1]
परिचय
इस उपन्यास के सन्दर्भ में डॉ॰ सत्यप्रकाश मिश्र ने लिखा है :
"कंकाल उसी युग का एकमात्र ऐसा बोल्ड उपन्यास है जो धार्मिक आडम्बर का न केवल पर्दाफाश करता है बल्कि उसे सामाजिक सड़न का प्रमुख कारण मानता है। ...कंकाल पुरुषसत्तात्मक व्यवस्था के प्रति पूर्णतः असंतोष और विद्रोह की रचना है। स्त्री और शक्ति के प्रति प्रसाद का मत जीवन-दृष्टि, शैव दर्शन और गंभीर चिंतन का परिणाम है।"[2]