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ओरछा की रानी

ओरछा की रानी

धर्मपाल की पत्नी महारानी लड़ई दुलैया सरकार जू देव बुंदेला अत्यंत महत्वाकांक्षी थी। उसने सुजनसिंह के साथ राज्य का बंटवारा किया। और हमीरसिंह नामक एक पुत्र गोद लिया। महारानी लड़ई दुलैया सरकार के तीक्ष्ण बुध्दी के सामने सुजनसिंह पराभूत होकर 1851-53 में झांसी नरेश महाराज गंगाधर राव की शरण में गया। सन् 1854 में ब्रिटिश सरकार महारानी लड़ई दुलैया सरकार के दत्तक पुत्र को उत्तराधिकारी के रुप में मंजूरी दे दी थी। इस बीच अंग्रेजों द्वारा यह तय किया गया की पुरानी सहायता के एवं कर्जा चुकाने के लिए ओरछा की टिहरी जागीर का वार्षिक लगान 6000 रूपये झांसी राज्य को दे दिया जाये। ओरछा की रानी प्रति वर्ष अपने दत्तक पुत्र के नाम पर यह लगान भरा करती थी। जिस कारण झांसी के प्रति ओरछा का द्वेष और तीव्र हुआ।

21 नवम्बर सन् 1853 में झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर जी का निधन हुआ। तब झांसी की सीमा असुरक्षित थी। इसका फायदा उठाकर पुराने द्वेष और अपमान का बदला लेने के लिए 1857 में ओरछा की रानी लड़ई दुलैया सरकार ने अपनी कमर कसकर तैयार हुई।

रानी लड़ई दुलैया सरकार जू देव ओरछा की 20.000 सेना और युध्द की सामग्री लेकर झांसी के विभिन्न भागों पर विजय प्राप्त करते हुए झांसी नगर पहुंचा। 10 अगस्त 1857 को मऊरानीपुर परगना जित लिया। महारानी लक्ष्मीबाई ने पडौसी राज्यों की करतूत अंग्रेजों को बतायी थी। उन्होंने विलियम बैक्टींग द्वारा राजा रामचंद्र राव के प्रदत्त झांसी किले पर ब्रिटिश युनियन जॅक ध्वज लगवा दिया।

महारानी लड़ई दुलैया सरकार और सेनापती नत्थे खान उस समय बेतवा नदी किनारे शिविर में थे। महारानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश अधिकारी एरस्काईन को सहायता करने हेतू पत्र लिखा। यह पत्र 2 अक्तूबर 1857 को लिखा गया था। यह पत्र एरस्काईन को मिल गया था इसका प्रमाण राजकीय अभिलेखागार में मौजूद हैं। किंतू अंग्रेजों ने महारानी लक्ष्मीबाई की कोई सहायता नहीं की। एरस्काईन ने ही रानी लक्ष्मीबाई को झांसी का शासन सौंप दिया था। और उसने ही इस मामले में दखल नहीं दी थी। रानी लक्ष्मीबाई को झोकनबाग हत्याकांड का आरोपित घोषित करते हुए उसने अपने उच्च अधिकारियों को रिपोर्ट देते हुए कहां की झांसी की रानी एक विद्रोही हैं और ओरछा का कार्य पुरी तरह से समर्थन के योग्य हैं। ओरछा रानी अंग्रेज़ों की मित्र है।

महारानी लक्ष्मीबाई स्वयं युध्द के लिए तैयार हुई। इस बीच रानी लड़ई सरकार के नेतृत्व में नत्थे खान ने महारानी लक्ष्मीबाई को पत्र भेजकर कहां की वे किला और नगर छोडकर चले जाऐ। महारानी लक्ष्मीबाई ने दरबार बुलाया और युध्द की तैयारी शुरू की। महारानी ने नत्थे खान को जवाब में युध्द की घोषणा की।

उस समय झांसी की सेना अधिक नहीं थी। झांसी सेना में रघुनाथ सिंह, जवाहर सिंह, राव दुल्हाजू, गौस खान, लालाभाऊ बख्शी, खुदा बख्श, नारी सेना और विशेष रूप से मानवती देवी प्रमुख थी। पेशवा जमाने की तोपों को तैयार किया गया। भवानी शंकर, कडक बिजली, नालदार, शत्रु संहार, घन गर्जन तोप तयार हुई। अक्तूबर में ओरछा की रानी अपनी सेना लेकर आयी। भयंकर युध्द हुआ झांसी के आसपास के इलाकों पर रानी लड़ई सरकार का कब्जा हुआ। वे झांसी नगर और किले की तरफ बडी। महारानी लक्ष्मीबाई स्वयं युध्द में कुद पड़ी थी। महारानी लक्ष्मीबाई के रणकौशल के आगे रानी लड़ई सरकार तथा सेनापती नत्थे खान को भागना पड़ा। 23 अक्तूबर 1857 को महारानी लक्ष्मीबाई इस युध्द में विजयी हुई। मऊरानीपुर पर रानी लक्ष्मीबाई का कब्जा हुआ।

1857 के नवम्बर में फिर से रानी लड़ई सरकार के नेतृत्व में सेनापती नत्थे खान की सेना आ पहुंची। ओरछा गेट से रानी लक्ष्मीबाई की तोपों का एैसा हमला हुआ की, नत्थे खान की सेना भागने लगी। तब झांसी की वीरांगना मानवती देवी हैहयवंशी ने अपना वीरता और साहस का ऐसा प्रदर्शन किया की नत्थे खान खान की सेना झांसी सीमा से बाहर गयी।

30 नवम्बर 1857 को कालिंजर के जहागिरदार चौबे और बानपूर नरेश राजा मर्दन सिंह जू देव की मध्यस्थी के कारण रानी लक्ष्मीबाई और ओरछा की रानी लड़ई दुलैया सरकार के बीच संधि हुई। वे दोनों बहन की तरह एक दुसरे से स्नेह करने लगी।

1857 के अगस्त तथा अक्तुबर में ओरछा की रानी लड़ई सरकार ने हमला किया था। और फिर नवम्बर में लड़ई सरकार के नेतृत्व में सेनापती नत्थे खान की सेना ने हमला किया। तब रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार सिर्फ झांसी नगर तक सिमित था।

दिसंबर में संधि के उपरांत महारानी लक्ष्मीबाई का संपुर्ण झांसी प्रदेश पर अधिकार हुआ। ओरछा रानी द्वारा कब्जा किये गये इलाके रानी लक्ष्मीबाई को वापस मिल गये थे। ओरछा युध्द की वजह से झांसी का इतना नुकसान हुआ था की मार्च 1858 के युध्द में झांसी पराभूत हुई। और रानी किला छोडकर कालपी गयी।

कहां जाता है की स्वतंत्रता युध्द में रानी लक्ष्मीबाई की ओरछा की महारानी लडई दुल्लैया सरकार ने गुप्त रूप से भी भी सहायता की थी । रानी लडई सरकार इतिहास में नाम बहुत कम ही लिखा गया है। इस कारण उनकी जन्म, मृत्यू और स्वतंत्रता युध्द का कोई प्रमाण नही मिलता।

लेकिन महारानी लडई दुल्लैया सरकार समुचे बुंदेलखंड तथा ओरछा इतिहास का गौरवपूर्ण हिस्सा है।