एशिया में साम्राज्यवाद के बीज पन्द्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पड़ गये थे जब भारत के लिये समुद्री मार्ग की खोज करने के लिये एक-के-बाद-एक कई समुद्री यात्राएँ की गयीं। ये यात्राएं यूरोप और एशिया के बीच मसालों के क्षेत्र में सीधा व्यापार-सम्पर्क स्थापित करने के उद्देश्य से की गयीं।
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