एथेंस का संविधान
एथेंस में सरकार का प्राचीनतम रूप एकतंत्रात्मक था। राजा, 'यूपात्रिद' नामक एक स्थायी परिषद् की सहायता से शासन करता था। एकतंत्र के क्षीण होने पर द्राकोने द्वारा स्थापित सांवैधानिक व्यवस्था के अनुसार राजनीतिक अधिकार उन लोगों को प्राप्त हुए जो सैन्य-साधन-संपन्न थे। ये लोग संपत्ति के आधार पर आर्कनों तथा कोषाध्यक्षों का निर्वाचन करते थे। इनके अतिरिक्त 401 सदस्यों की ऐरोपागस नामक एक परिषद् थी जिसका चुनाव 30 वर्ष से अधिक वय के नागरिक लाटरी द्वारा करते थे। परिषद् प्रशासकों पर अकुंश रखती थी।
समाज के उच्च वर्ग में सत्ता सीमित रहने के कारण जनसाधारण ने इस व्यवस्था का विरोध किया। फलत: सोलन ने नई राजनीतिक व्यवस्था स्थापित की। आबादी को संपत्ति के आधार पर चार वर्गो में विभाजित किया गया जिनमें राजनीतिक पद वितरित हुए। दो जनतांत्रिक संस्थाओं "एकलेजिया" (सभा) तथा "बौले" (परिषद्) की स्थापना की गई। एकलेजिया में सभी वर्गो के नागरिक होते थे। यह आर्कनों का चुनाव, प्रशासकों के व्यवहार का निरीक्षण तथा सामान्य राजनीतिक और न्यायिक अधिकारों का प्रयोग करती थी। प्रत्येक वर्ग से 100 सदस्यों के हिसाब से चुने गए 400 सदस्यों की "बौले" एक्लेजिया की क्रियाओं पर नियंत्रण रखती थी तथा सभा के अधिवेशनों की तिथि और उसक कार्यक्रम निश्चित करने के अतिरिक्त सभा की आज्ञप्तियाँ लागू करने का उत्तरदायित्व लेती थी।
ई. पू. 560 से 510 तक निरंकुश शासन के बाद क्लेइस्थेनीस ने पुन: जनतांत्रिक संविधान लागू किया जिसे पेरिक्लीज़ के सुधारों ने पूर्णता प्रदान की। क्लेइस्थेनीस ने आबादी को 10 वर्गो में बाँटा तथा प्रत्येक से 50 सदस्य लेकर 500 सदस्यों की परिषद् (बौले) की स्थापना की। सदस्यों का निर्वाचन 30 वर्ष से अधिक के नागरिकों में से लाटरी द्वारा होता था। परिषद् के अधिकार निम्नलिखित थे : सैन्य प्रबंध का निरीक्षण करना, वैदेशिक नीति संबंधी कर्तव्य पूरे करना, राजदूतों का स्वागत करना, विदेशी राज्यों से संधि करना, वित्तीय क्षेत्र में व्यय पर नियंत्रण रखना, महाभियोग–यथा षड्यंत्र, देशद्रोह, घूसखोरी–का अधिकार प्रयुक्त करना। सभा (एकलेजिया) के सदस्य 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिक होते थे। ऐसे विधायी कार्यो के लिए, जिनके वैध होने के लिए सर्वसंमति की आवश्यकता होती थी, 6,000 सदस्यों की संख्या राज्य की प्रतिनिधि संख्या मान ली जाती थी। सभा की बैठकें दो प्रकार की होती थीं–सामान्य और विशिष्ट। दोनों बैठकों का कार्यक्रम सभा के लिए परिषद् तैयार करती थी। सभा राज्य में संप्रभु प्रशासकीय सत्ता थी, परंतु वह सही अर्थ में विधायिनी नहीं थी। संप्रभुता संविधान में निहित थी और संविधान का संरक्षण न्यायालयों के सुपुर्द था। सभा केवल प्रशासकीय आज्ञप्तियाँ जारी कर सकती थी, विधान नहीं। विधायी कार्य सभा और न्यायपालिका के सहयोग से होते थे।
सभा के मुख्य अधिकार निम्नलिखित थे : युद्धघोषणा और शांतिस्थापना तथा राजदूतों की नियुक्ति, विदेशों से व्यावसायिक संबंध स्थापित करने की स्वीकृति देना, सभी वित्तीय विषयों पर अंतिम स्वीकृति देना, राज्यधर्म का नियंत्रण करना, नागरिकता, पारितोषिक और उपाधि प्रदान करना।
न्यायपालिका (हेलीया) में 30 वर्ष से अधिक के सभी नागरिक होते थे। ई.पू. चौथी शताब्दी में न्यायधीश 10 पैनेलों में विभाजित थे जिन्हें दिकास्तरी कहते थे। निजी मुकदमों में मुआवजा वादी को प्राप्त होता था। न्यायालय की फीस जमानत के रूप में जमा होती थी और निर्णय से पूर्व मुकदमा उठा लेने पर वादी को कोई दंड नहीं मिलता था। परंतु सार्वजनिक मुकदमों में, जिसमें फौजदारी के मुकदमें भी संमिलित थे, मुआवजा धन के रूप में होने पर राज्य को मिलता था और दंड के रूप में होने पर राज्य द्वारा दिया जाता था। न्यायालय की कोई फीस नहीं जमा होती थी; निर्णय से पूर्व मुकदमा वापस लेने पर या निर्णय में न्यायालय का पंचमांश मत भी वादी के पक्ष में न होने पर उसे 100 द्राख्म जुर्माना देना होता था और वह भविष्य में ऐसे मुकदमे लाने का अधिकार खो बैठता था।
प्रशासकीय पदों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सेनानायक (स्त्रातेगी) का पद था जिनके लिए दसो क्स्लेइथीनियन वर्गो के आधार पर 10 सदस्यों के एक मंडल (बोर्ड) की स्थापना की गई थी। सेनानायकों का विशिष्ट अधिकार था सभा के विशेष अधिवेशन बुला सकना। सैन्य आयव्ययक (बजट) संबंधी, वित्त के, सैन्य संचालन के, तथा सैन्य नियमों के उल्लंघन पर दंड देने के अधिकारों के अतिरिक्त संधियों को लागू करने की जिम्मेदारी भी उनकी थी। इस प्रकार सेनानायक एक साथ युद्धनेता, विदेशमंत्री तथा वित्तमंत्री होते थे। ई.पू. चौथी शताब्दी में मंडल के सदस्यों में कार्यविभाजन कर दिया गया जिससे प्रत्येक को उसकी योग्यता के अनुसार कार्य सौंपा जाने लगा। सेनानायकों के अतिरिक्त एथीना की मूर्ति तथा अन्य बहुमूल्य धर्मिक उपादानों के कोषाध्यक्ष, सार्वजनिक ठेकों के आयुक्त, राजकीय वित्त के संग्राहक के पद थे। प्रत्येक पद के लिए लाटरी द्वारा 10 सदस्य चुने जाते थे।
सन्दर्भ ग्रन्थ
- अरिस्टाटल (अनुवाद के.वी. फ्रिज) : द कांस्टिटयूशन ऑव एथेंस, न्यूयार्क, 1950;
- कूलांजेज़, एफ. डी. (अनु. डब्ल्यू. स्माल) : दि एंश्येंट सिटी, बोस्टन, 1901;
- गिल्बर्ट, जी. : ग्रीक कांस्टिटयूशनल ऐंटीक्विटीज़ ऑव स्पार्टा ऐंड एथेन्स, लंदन, 1895;
- ग्लाज़ जी. : द ग्रीक सिटी ऐंड इट्स इंस्टिटयूशनल; लंदन, 1950;
- ग्रीनिज़, ए. एच.जे. : ऐ हैंडबुक ऑव कांस्टिटयूशनल हिस्ट्री, मैकमिलन, 1920;
- जोन्स, ए. एच. एम. : एथीनियस डिमाक्रेसी, आक्सफ़र्ड, 1957;
- हीडलम, जे.डब्ल्यू : एलेक्शन बाई लाट ऐट एथेन्स, कैंब्रिज, 1891।
बाहरी कड़ियाँ
- Aristotelian Text, trans. by Horace Rackham (HTML at Perseus)
- Aristotelian Text, trans. by Frederic G. Kenyon
- Aristotelian Text, trans. by Frederic G. Kenyon, alternate presentation
- Pseudo-Xenophon, translated by E. G. Marchant
- The Athenian Constitution by Aristotle (translated by Sir Frederic G. Kenyon), in the Web site of the Constitution Society
- P. J. Rhodes' 1981 Commentary on the Aristotelian Athenaion Politeia at Google Books.