ऊंटाधुरा दर्रा
ऊंटा धुरा अंटा धुरा | |
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ऊँचाई | 5,360 m (17,585 ft) |
स्थान | चीन-भारत सीमा |
पर्वतमाला | हिमालय |
निर्देशांक | 30°34′46″N 80°10′52″E / 30.5794908°N 80.181175°Eनिर्देशांक: 30°34′46″N 80°10′52″E / 30.5794908°N 80.181175°E |
ऊंटा धुरा या अंटा धुरा हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है जो भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र को तिब्बत से जोड़ता है।[1] यह प्राचीनकाल से भोटिया व्यापारियों द्वारा कुमाऊँ और तिब्बत के बीच आने-जाने के लिये प्रयोग किया जाता रहा है।
स्थिति
ऊंटाधुरा दर्रा कुमाऊँ मण्डल के पिथौरागढ़ जनपद की मुनस्यारी तहसील में भारत-तिब्बत सीमा पर स्थित है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई ५,३६० मीटर (१७,५९० फ़ीट) है। यह देखने में ऊँट की पीठ जैसा लगता है, और इस कारण इसे ऊंटाधुरा कहा जाता है। तिब्बत में इसका नाम क्यूनाम ला है।[2]
१९०९ की इम्पीरियल गैज़ेटर ऑफ इंडिया में इसका वर्णन करते हुए लिखा गया है:[3]
- अंटा धुरा: संयुक्त प्रान्त के अल्मोड़ा ज़िले में तिब्बत सीमा पर ३०°३५'उ, ८०°११'पू के निर्देशांकों पर स्थित एक दर्रा। इसका महत्त्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह पहाड़ों की तलहटी में बसे टनकपुर बाजार से तिब्बत के ज्ञानमा और गरतोक, जिसे हाल ही में व्यापार के लिए खोला गया है, तक जाने वाले सबसे सीधे रास्ते पर पड़ता है। यह दर्रा, हालांकि, यात्रियों के लिए काफी मुश्किल है। यह दर्रा तिब्बत और ब्रिटिश क्षेत्रों को अलग करने वाली पर्वतमाला के राइट एंगल पर स्थित एक अन्य पर्वतमाला की तीन चोटियों को पार करता है, जिनकी ऊंचाई १७,३०० से १७,६०० फ़ीट तक है, और इस दर्रे पर साल के ११ महीनों में बर्फ पड़ी रहती है।
प्राचीन व्यापार मार्ग
कुमाऊँ की ओर, ऊंटाधुरा से डुंग होते हुए मिलम पहुंचा जा सकता था, जो जोहार घाटी में स्थित था, और भोटिया व्यापारियों का प्रमुख गाँव था। मिलम से आगे मार्तोली और रालम होते हुए मुनस्यारी आता था। मुनस्यारी से यह मार्ग दोफाड़ हो जाता था, एक रास्ता बायीं ओर को अस्कोट-जौलजीबी होते हुए नेपाल को जाता था, जबकि दायीं ओर का रास्ता बागेश्वर होते हुए कुमाऊँ की राजधानी अल्मोड़ा तक आता था। मकर संक्रान्ति के दिन बागेश्वर और जौलजीबी में बड़े मेलों का आयोजन होता था, जिनमें भोटिया व्यापारी अपना सामान बेचकर वापस चले जाते थे।
तिब्बत की ओर, ऊंटाधुरा से दो रास्ते बंट जाते थे, एक पूर्व दिशा की ओर, और दूसरा उत्तर की ओर। पूर्व दिशा वाला मार्ग जैंती ला और कुंगरी-बिंगरी ला दर्रों से होता हुआ ज्ञानमा की ओर जाता था। इन तीनों दर्रों के बीच रुकने योग्य कोई स्थान नहीं होने के कारण भोटिया व्यापारी तीनों दर्रों को एक ही दिन में बिना रुके पार करते थे। ज्ञानमा से आगे यही रास्ता कैलाश-मानसरोवर यात्रा के मार्ग से भी मिलता था। उत्तर की ओर जाने वाले दूसरे रास्ते पर कुछ दूरी पर टोपीढुंगा नामक पहाड़ी आती थी, जहाँ से इन्हीं जगहों के लिए वैकल्पिक मार्ग थे। एक रास्ता दक्षिण पूर्व की ओर जैंती ला को, और दूसरा रास्ता पूर्व की ओर कुंगरी-बिंगरी ला तक जाता था। उत्तर की ओर आगे बढ़ते रहने पर यह रास्ता गरतोक तक जाता था, जो तब पश्चिमी तिब्बत की राजधानी थी।[4]
वर्तमान अवस्था
वर्ष १८२१ में चिल्किया मण्डी, ढिकुली से बागेश्वर-मुनस्यारी-मिलम तक सड़क बनायी गयी, जिससे इस दर्रे से आने वाले व्यापारियों को पहली बार मैदानों तक पहुँचने का रास्ता मिला। इस सड़क को १८३० में व्यापारियों के लिए खोला गया था। १८७४ तक मुनस्यारी-अस्कोट सड़क का निर्माण हो गया था, और १८९८ में टनकपुर नगर के गठन के कुछ समय बाद ही टनकपुर और अस्कोट भी सड़क मार्ग से जुड़ गए थे।[5] टनकपुर से सीधा जुड़ जाने पर तो इस दर्रे का महत्त्व और भी बढ़ गया, क्योंकि अब और भी बड़ी संख्या में व्यापरी सीधे मैदानों तक सामान बेचने आने लगे थे। यह व्यापर स्वतंत्र भारत तक फलता-फूलता रहा, हालाँकि १९६२ के भारत-चीन युद्ध के बाद भोटिया व्यापारियों के तिब्बत सीमा पार करने पर निषेध लग गया, और यह व्यापारी मार्ग समाप्त हो गया।
प्रसिद्ध यात्री
कई यात्री इस दर्रे को पार कर चुके हैं। उनमें से कुछ प्रमुख नाम निम्न हैं:[6]
- लेफ्टिनेंट ह्यूघ रोज (१९३१)
- लोंगस्टाफ़ तथा उनका दल (१९०७)
- डब्लू॰ एच॰ मर्रे (१९५०)
- ए॰ डी॰ मोडी तथा गुरदयाल सिंह (१९५९)
सन्दर्भ
- ↑ Kapadia, Harish (1998). Meeting the Mountains (अंग्रेज़ी में). New Delhi: Indus Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788173870859. मूल से 1 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 अगस्त 2018.
- ↑ Sherring, Charles (1996). Western Tibet and the British Border Land (अंग्रेज़ी में). New Delhi: Asian Educational Services. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120608542. मूल से 2 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2018.
- ↑ इम्पीरियल गैज़ेटर ऑफ इंडिया, १९०९, पृ ३८६ Archived 2018-08-01 at the वेबैक मशीन, ३८७ Archived 2018-08-01 at the वेबैक मशीन
- ↑ Pant, Shiva Darshan (1988). The Social Economy of the Himalayans: Based on a Survey in the Kumaon Himalayas (अंग्रेज़ी में). Mittal Publications. मूल से 2 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2018.
- ↑ "उत्तराखण्ड में औपनिवेशिक शासनकाल की परिवहन एवं यातायत व्यवस्था (1815 ई0 से 1947 ई0 तक)" (PDF). मूल से 2 अगस्त 2018 को पुरालेखित (PDF). अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2018.
- ↑ Kapadia, Harish (1999). Across Peaks & Passes in Garhwal Himalaya (अंग्रेज़ी में). New Delhi: Indus Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788173870972. मूल से 2 अगस्त 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 अगस्त 2018.