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उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण

उष्ण निमज्जन से गैलवानीकृत हस्त-रेल का क्रिस्टलीय तल

उष्ण निमज्जन गैलवानीकरण (Hot-dip galvanizing) गैलवानीकरण की सबसे अच्छी विधि है। यदि उचित ढंग से मुलम्मा चढ़ाया जाय तो वायुमंडल में खुला रखने के लिये सर्वश्रेष्ठ मुलम्मा इस विधि से चढ़ता है। इस विधि से लोहा, इस्पात तथा अलुमुनियम पर लगभग ४६० डिग्री सेल्सियस ताप पर जस्ते की पतली तह लगायी जाती है। जब वायुमण्डल में गैलवानीकृत वस्तु को छोड़ दिया जाता है तो शुद्ध ऑक्सीजन के साथ क्रिया करके यह जिंक आक्साइड बना लेता है। फिर यह जिंक आक्साइड वायुमण्डल की कार्बन डाई आक्साइड से क्रिया करके जिंक कार्बोनेट (ZnCO3) बना लेता है जो कि बहुत ही मजबूत पदार्थ है और इस कारण बहुत सी स्थितियों में मूल पदार्थ के संक्षरण को रोकता है।

विधि

इसके लिये पिटवां लोहे, या मृदु इस्पात, का एक पात्र आवश्यक होता है, जिसमें पिघला स्पेल्टर रखा जा सके। इस पात्र को नीचे से गरम कर जस्ते को पिघलाते हैं। जिन पात्रों पर जस्ता चढ़ाना होता है, उन्हें पहले अम्ल से, पीछे जल से धोकर सुखाते और तब द्रावक के साथ उपचारित कर पिघले जस्ते में डुबा देते हैं। लोहे की सतह पर यदि बालू के कण चिपके हों तो 5 प्रतिशत हाइड्रोक्लोरिक अम्ल से प्रारंभ में उपचारित कर लेते हैं। अम्लमार्जन के पश्चात आक्सीकरण से बचाने के लिये, उसे पानी में डुबाकर रखते हैं। जस्ता-उष्मक पर तैरते हुए द्रावक स्तर पर ले जाने के पूर्व, इस्पात की ऊपरी सतह के आक्साइड को 5 से 20 प्रति शत तक के जिंक अमोनियम क्लोराइड के विलयन से पारित कर दूर कर लेते हैं।

जस्ता उष्मक का ताप 425 डिग्री से 460 डिग्री सें. तक रह सकता है। जस्ती तार बनाने की विधि यह है कि उर्ध्वाधर तर्कु (spindle) से इस्पात के तार को पहले सोस उष्मक में ले जा कर तार का ऐनीलीकरण करते हैं और फिर क्रमश: उष्ण हाइड्रोक्लोरिक अम्ल में ले जाते, पानी से धोते और ज़िंक क्लोराइड के द्रावक उष्मक में ले जाते हैं। तब उसे जस्ता उष्मक में ले जाकर निमज्जक छड़ों द्वारा सतह के नीचे रखते हैं। उष्मक से निकालकर इसे ऐस्बेस्टस के गुद्दों या काठ कोयले के संस्तर से पारित करते हैं और पानी के फुहारे से ठंडा कर गड़ारी (reel) पर लपेटते हैं। चादर की जस्ती बनाने के लिये भरणरोलों (feeding rolls) से चादरें निकालकर द्रावक उष्मक में और द्रावक स्तर से होते हुए जस्ता उष्मक में ले जाते हैं। पार्श्वनियामक (side guide) और निचले रोलों द्वारा चादरें पिंच (pinch) रोलों में जाती हैं, जो अंशत: उष्मक में डूबे रहते हैं और वहाँ से निकलकर वे शीतक वाहक (cooling conveyors) में जाती हैं। समतल करनेवाले रोलों (rolls) से निकलने के बाद चादरें आवश्यक विस्तार में काट ली जाती हैं।

जस्ती पाइप का द्रावक धावन (flux wash) करते हैं और उसे जस्ता चढ़ानेवाली केटली के द्रावक स्तरों से पारित करके लपेटते हैं। पाइप को ऐसे रखते हैं कि उसके अभ्यंतर भाग से अधिक से अधिक जस्ता बहकर निकल जाय। अम्लमार्जन और द्रावक उपचार के बाद छोटे-छोटे खंडों और लोगों (fixtures) को पिटकों में रखते और पोछते हैं। मैल की निकासी और पोंछाई से कितना जस्ता नष्ट होता है, यह वस्तु की किस्म पर निर्भर करता है।

जस्ता शीघ्रता से लोहे के साथ मिश्रधातु की परत बनाता है। इस्पात के तुंरत बाद Fe3Zn10 के निक्षेप का पतला कठोर निक्षेप रहता है। दूसरा यौगिक FeZn7 होता है, जो जस्ते के लेप को चिपकाता है। यह FeZn13 से घिरा हुआ रहता है, जो विसरण की दर (disffusion rate) को सीमित करता है। बाह्य भाग पर शुद्ध जस्ते की परत रहती है।

जस्ती लेप का बाहरी रूप जस्ते की सतह की परत के मणिभीकरण की प्रकृति से निर्धारित होता है, जो अधिकांश शीतलन की दर पर निर्भर करता है। जस्ते में वंग की उपस्थिति से लेप की एकरूपता और चिपकने का गुण बढ़ जाता है। जसते के ऊष्मक (bath) में 0.1 प्रतिशत, या इससे कम सांद्रण में, ऐल्यूमिनियम की उपस्थिति का उपयोग बहुत बढ़ गया है। इसे सतह के नीचे इसलिये डाला जाता है कि गलन के द्रावक से इसकी प्रक्रिया तेजी से होकर परिचालन की कठिनाइयों को न बढ़ाए। जस्ती गलन की तरलता को ऐल्यूमिनियम सरलता से बढ़ा देता है, अत: इसका उपयोग अनियमित आकार की झिरी या तरेड़ (slot or crevices) वाली वस्तुओं के लेप में होता है, जहाँ अन्य विधि से जस्ते के पहुँचने में कठिनाई होती हैं।

सतह की चमक को प्रभावित करने वाले कारक

कोई भी वस्तु, जो जस्ते के सतह तनाव को बदल सकती है चमक का नियंत्रण करती है। इसमें निम्ललिखित बातें महत्त्व रखती हैं :

1. इस्पात की किस्म,

2. अम्लमार्जन की विधि और कोटि,

3. चादर का ऐनीलीकरण करनेवाले द्रव्यों की भिन्नता,

4. चादर की सतह की दशा,

5. उपयोग में आए स्पेल्टर की किस्म,

6. जस्ता चढ़ाने के ऊष्मक का ताप,

7. जस्ते में चादर में निमज्जन का समय तथा

8. जस्ता चढ़ाने की रीति।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ