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उंच्छवृत्ति

उंच्छवृत्ति एक निर्धन ब्राह्मण था जिसका वर्णन जैमिनि अश्वमेध तथा महाभारत में प्राप्य है।

उंच्छवृत्ति बहुत गरीब था। एकबार कई दिनों के बाद एक दिन इसे भिक्षा में सेर भर सत्तू मिला। अग्नि तथा ब्राह्मण का भाग निकालने के पश्चात् इसने शेष सत्तू अपने पूत्रों तथा पत्नी में बराबर बराबर बाँट दिया। यह स्वयं खाना शुरू करे, इतने में धर्मराज ब्राह्मण रूप में आए और खाने के लिए मॉगने लगे। इसने अपना हिस्सा उन्हें दे दिया। भूख न मिटने पर इसने क्रमश: अपनी पत्नी तथा पुत्रों के हिस्से भी धर्मराज को दे दिए। इससे प्रसन्न धर्म सकुटुंब और संदेह इस ब्राह्मण को स्वर्ग ले गए। सत्तू के जो कण भूमि पर गिर गए थे उनपर एक नेवला आकर लोट गया। इससे उसका आधा शरीर सुवर्णमय हो गया। आगे चलकर वही नेवला धर्मराज युधिष्ठिर के यज्ञ में अपने शरीर का शेष भाग भी स्वर्णमय बनाने की इच्छा से गया, परंतु उसकी इच्छा पूरी न हो सकी।

वैसे 'उंच्छवृत्ति' का अर्थ है अनायास मिल जानेवाले अन्नकणों को चुन चुनकर जीवनयापन करना।