आशुलिपि
आशुलिपि (Shorthand) लिखने की एक विधि है जिसमें सामान्य लेखन की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से लिखा जा सकता है। इसमें छोटे प्रतीकों का उपयोग किया जाता है। आशुलिपि में लिखने की क्रिया आशुलेखन (stenography) कहलाती है। स्टेनोग्राफी से आशय है तेज और संक्षिप्त लेखन। इसे हिन्दी में 'शीघ्रलेखन' या 'त्वरालेखन' भी कहते हैं।
लिखने और बोलने की गति में अंतर है। साधारण तौर पर जिस गति से कुशल से कुशल व्यक्ति हाथ से लिखता है, उससे चारगुनी, पाँचगुनी गति से वह संभाषण करता है। ऐसी स्थिति में वक्ता के भाषण अथवा संभाषण को लिपिबद्ध करने में विशेष रूप से कठिनाई उपस्थित हो जाती है। इसी कठिनाई को हल करने के लिये त्वरालेखन के आविष्कार की आवश्यकता पड़ी।
परिचय
आशुलिपि की बहुत सी पद्धतियाँ हैं। आशुलिपि के सभी तरीकों में प्रायः प्रयुक्त होने वाले कुछ शब्दों एवं वाक्यांशों के लिए संकेत या लाघव निश्चित होते हैं। इस विधा में सुशिक्षित व्यक्ति इन संक्षेपों का उपयोग करके उसी गति से लिख सकता है जिस गति से कोई बोल सकता है। संक्षेप विधि वर्णों पर आधारित होती है। आजकल बहुत से सॉफ्टवेयर प्रोग्रामों में भी आटोकम्प्लीट आदि की व्यवस्था है जो आशुलिपि का काम करती है।
आशुलिपि का प्रयोग उस काल में बहुत होता था जब रिकार्डिंग मशीनें या डिक्टेशन मशीने नहीं बनीं थीं। व्यक्तिगत स्क्रेटरी तथा पत्रकारों आदि के लिए आशुलिपि का ज्ञान और प्रशिक्षण अनिवार्य माना जाता था।
स्टेनोग्राफ़ी में युवाओ के लिये अच्छा कॅरियर है, यह १० वी कक्षा के बाद किया जा सकता। इसे लिखने की कई प्रणाली प्रचलन में है- अंग्रेजी में पीटमैन मुख्यतः प्रचलित है तथा हिन्दी में ऋषि प्रणाली, विशिष्ट प्रणाली, सिह प्रणाली आदि है। वैसे हर लेखक की अपनी एक विशेष प्रणाली बन जाती है।
स्टेनोग्राफर पर कार्यालय या संस्था के गोपनीय दस्तावेकजों को संभालने का दायित्व रहता है। स्टेनोग्राफर अपने अधिकारी के प्रति विश्वनीय पद है। इस पद पर काम करना एक गरिमापूर्ण व चुनौतीपूर्ण है। भारत में स्टेनोग्राफर के पद अदालतों, शासकीय कार्यालयों, मंत्रालयों, रेलवे विभागों में होते हैं। स्टेनोग्राफर का कोर्स करने के लिए कड़े परिश्रम की आवश्कता होती है, क्योंकि इस भाषा में शब्द गति होना आवश्यक है। एक कुशल स्टेनोग्राफर बनने के लिए उस विषय की भाषा का व्याकरण का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। स्टेनोग्राफर बनने के लिए 100 शब्द प्रति मिनट की गति उत्तीर्ण करना आवश्यक होता है। देश में विभिन्न संस्थाएं स्टेनोग्राफर के कोर्स करवाए जाते हैं। देश में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) में भी स्टेनोग्राफर का एक वर्षीय कोर्स करवाया जाता है।
इन संस्थानों में 100 शब्द प्रति मिनट की गति से परीक्षाएं भी ली जाती हैं। इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद आप स्टेनोग्राफर बन सकते हैं। सरकारी विभागों द्वारा विज्ञापनों में स्टेनोग्राफर की भर्तियां निकाली जाती हैं।
शार्टहैन्ड (आशुलिपि) का कोर्स शासकीय संस्थाओ में जैसे
- पालिटेक्निक कालेजो में एम.ओ.एम (आधुनिक कार्यालय प्रबंधन या मॉडर्न ऑफिस मैनेजमेंट) के रूप में उपलब्ध है। इसमे आशुलिपि के अलावा कम्प्यूटर, टंकण एवं लेखा (Account) से सम्बन्धित कोर्स करवाये जाते हैं।
- भारतीय तकनीकी संस्थानो- औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थाओ (आई.टी.आई) में भी यह कोर्स करवाया जाता है। जिसकी अवधि १ वर्ष की होती है। इसमें आशुलिपि के अलावा अन्य सहायक विषय एवं टंकण कोर्स भी महत्वपूर्ण होते हैं। इन सन्स्थाओ में १०० एवं ८० शब्द प्रति मिनट की गति से परीक्षाएँ ली जाती है।
स्टेनोग्राफर (आशुलिपिक) बनने के लिए १०० शब्द प्रति मिनट की गति उत्तीर्ण करना आवश्यक होता है। स्टेनोग्राफर का पद हर राज्यों के शासकीय कार्यालयों में, मन्त्रालयों में, रेल्वे विभागो में होते हैं। हर साल स्टेनोग्राफरो की भर्ती से सम्बन्धित विज्ञापन पर्याप्त मात्रा में निकलते हैं। एक कुशल स्टेनोग्राफर बनने के लिए उसे उस विषय की भाषा का, व्याकरण का ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। स्टेनोग्राफर के पद का वेतनमान भी आकर्षक होता है। स्टेनोग्राफर पर अपने कार्यालय/संस्था के गोपनीय दस्तावेजों को सम्भालने का दायित्व रहता है। यह अपने अधिकारी के प्रति विश्वसनीय पद है, इस पद पर काम करना एक गरिमापूर्ण व चुनोतीपूर्ण कार्य है।
इतिहास
हिंदी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं में त्वरालेखन का आविष्कार बहुत बाद में हुआ। वास्तव में विदेशी शासन के अधीन होने के कारण हमारे देश की न तो कोई राजभाषा थी और न कोई प्रांतीय भाषा भी अपने प्रांत में सरकारी कामकाज में विशेष महत्त्व प्राप्त कर सकी थी। इसलिये हिंदी टंकण की तरह, हिंदी त्वरालेखन की मूल प्रेरणा अंग्रेजी शार्टहैंड से ही प्राप्त हुई।
भारत में त्वरालेखन के विकास की एक कथा है कि जब वेदव्यास महाभारत लिखने के लिये बैठे तब उनके संमुख यह समस्या उपस्थित हुई कि इस विशाल महाभारत को कौन लिपिबद्ध करेगा। निदान गणेश जी इस दुष्कर कार्य के लिये कटिबद्ध हुए। भगवान वेदव्यास धाराप्रवाह बोलते जाते और गणेश जी उसे लिपिबद्ध करते जाते थे। किंतु यह हुई पौराणिक बात त्वरालेखन की।
संसार की भाषाओं में त्वरालेखन का प्रयास प्राय: रोम साम्राज्य में ईसा पूर्व ६३ में हुआ। रोम के सीनेट में सिसरो आदि के भाषणों को नोट करने के लिये मार्कस टुलियस टिरो (Marcus Tullius Tiro) ने त्वरा लेखन की एक प्रणाली का आविष्कार किया, जिसे 'टिरोनियन नोट' कहा जाता था। इस प्रणाली का प्रचलन रोम साम्राज्य के पतन के पश्चात् कई शताब्दियों बाद तक रहा। इसके साथ ही ईसा की चौथी शताब्दी में ग्रीस में त्वरालेखन का आविष्कार हुआ जिसका प्रचलन आठवीं शताब्दी तक रहा।
वर्तमान त्वरालेखन का जन्मस्थान इंगलैंड है। रानी एलीजाबेथ के समय में 'ब्राइट्स सिस्टम' (Brights System) नामक शार्टहैंड का आविष्कार हुआ। फिर सन् १६३० ईo में टामस शेलटन ने त्वरालेखन पर एक पुस्तक प्रकाशित कराई। इसके पश्चात् सन् १७३७ ईo में डॉo जान बायरन ने त्वरालेखन की 'यूनिवर्सल इंगलिश शार्ट हैंड' नामक एक पुस्तक प्रकाशित कराई। किंतु इन सभी पद्धतियों में लघुप्राण अक्षरों को हटाकर तथा कुछ अन्य अक्षरों को शब्दों के बीच में से निकालकर संक्षिप्त किया जाता था, इससे वक्ता के भाषण को नोट करने में सहूलियत हो जाती थी। लेकिन इसके साथ ही ध्वनि के आधार पर लिखने का भी प्रयास होता रहा।
ध्वनि पद्धति (Phonetic System) : सर आइजक पिटमैन की पुस्तक 'स्टेनोग्राफिक साउंड हैंड' (Stenographic Sound hand) सन् १८३७ ईo में प्रकाशित हुई। इस पद्धति में स्वर और व्यंजनों को अलग अलग चिह्नों से निर्धारित किया गया। साथ ही संक्षिप्त करने का भी एक नियम बनाया गया। इस पद्धति का विकास होता गया और आगे चलकर यह प्रणाली बहुत ही उपादेय सिद्ध हुई। अंग्रेजी में पिटमैन्स प्रणाली का ही विशेष प्रचलन है।
हिंदी त्वरालेखन आर्थिक दृष्टि से लाभजनक न होने तथा ब्रिटिश भारत में हिंदी का महत्वपूर्ण स्थान, सरकारी कार्यालयों में न होने के कारण त्वरालेखन के अन्वेषण के विषय में प्रयास अपेक्षाकृत काफी विलंब से हुआ। किंतु फिर भी त्वरालेखन के आविष्कार के लिये यदाकदा प्रयत्न होते रहे। स्वाधीनताप्राप्ति के लिये किए जानेवाले आंदोलनों के समय, हिंदी में हुए नेताओं के भाषणों को ब्रिटिश भारत की सरकार नोट कराती थी, जिससे वह सरकार के विरुद्ध प्रकट किए गये आपत्तिजनक विचारों के लिए नेताओं को उत्तरदायी ठहरा सके। उस समय अंग्रेजी के पिटमैन शार्टहैंड के ही आधार पर, अभ्यास के बल पर, भाषणों के नोट लिए जाते थे, किंतु साथ ही हिंदी के त्वरालेखन की नींव पड़ गई थी। सन् १९०७ ईo में काशी नागरीप्रचारिणी सभा ने श्री निष्कामेश्वर मिश्र, बीo एo, एलo टीo की 'हिंदी' शार्टहैंड नामक पुस्तक प्रकाशित की, जो हिंदी त्वरालेखन में अपने विषय की सर्वप्रथम महत्वपूर्ण पुस्तक है। श्री मिश्र महोदय ने बड़े परिश्रम से हिंदी शार्टहैंड की जो पुस्तक तैयार की, वह उनकी अभूतपूर्व सूझ का परिणाम तो थी ही, साथ ही उससे हिंदी त्वरालेखन सीखनेवालों के लिये एक समुचित मार्ग मिल गया। इसके पहले हिंदुस्तानी भाषा को नोट करने के लिये उर्दू त्वरालेखन की जो पद्धति प्रचलित हुई थी उसमें कठिन परिश्रम के पश्चात् साल डेढ़ साल में एक सौ शब्द प्रति मिनट की गति से लिखा जा सकता था। लेकिन श्री मिश्र जी की निष्कामेश्वर प्रणाली से पाँच-सात महीने के अभ्यास से ही सौ शब्द प्रति मिनट की गति से लिखा जाने लगा।
हिंदी त्वरालेखन में अन्य सज्जनों के प्रयास भी जारी रहे इस दिशा में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य किया इलाहाबाद के श्री ऋषिलाल अग्रवाल ने। ऋषि प्रणाली उन्हीं का आविष्कार है। इस प्रणाली के आविष्कार के पूर्व हिंदी में त्वरालेखन का प्रचार हो चुका था। इसलिये हिंदी त्वरालेखन के क्षेत्र में आई असुविधाओं को समझकर उनके निराकरण का प्रयत्न श्री ऋषिलाल अग्रवाल ने किया। इस प्रणाली की सर्वाधिक विशेषता यह रही है कि व्यंजनों की रचना अधिकतर ज्यामिति की सरल रेखाओं को लेकर की गई है और जहाँ सरल रेखाओं से काम नहीं चला, वहाँ पर वक्र रेखाओं को लिया गया, लेकिन ये वक्र रेखाएँ भी लहरदार या मनमाने ढंग से न लेकर वृत्त के आधार पर ली गई हैं।
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- The Louis A. Leslie Collection of Historical Shorthand Materials at Rider University – materials for download
- The Shorthand Place – includes chronological list of shorthand systems
- omniglot.com-writing shorthand