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आदित्य सागर जी महाराज

मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज एक प्रख्यात दिगम्बर जैन संत हैं।उन्हें उनकी विद्वत्ता और तप के लिए जाना जाता है। मुनि श्री हिन्दी, अंग्रेजी आदि 16 भाषाओं के ज्ञाता हैं ।[2]

== जीवनी ==

उनका जन्म 24 मई 1986 को मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में हुआ था। उन्होने एमबीए की उपाधि प्राप्त की तत्पश्चात उन्होने ब्रह्मचर्य व्रत अंगीकार कर सांसारिक सुखों को त्याग दिया | आदित्य सागर जी महाराज को जी को 08 नवम्बर 2011 में सागर में 25 वर्ष की आयु में आचार्य विशुद्ध सागर जी ने दीक्षा दी जो आचार्य विराग सागर जी के वंश के थे। मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने लगभग 30,000 श्लोक प्रमाण संस्कृत ,प्राकृत रचना कर चुके है उनके कार्य में आदि कित्तन्नं ,जिन शासन सहस्त्र्नाम हित मणिमाला शामिल हैं।] मुनि श्री 108 आदित्य सागर जी महाराज कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं। जय आदि!

  • संयम पुरूषोतम आचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी के आशीष से आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर महाराज की बुंदेलखंडी पूजा*

॥स्थापना॥ जग रौशन करती हैं चर्या,दिव्य प्रभा फैलावत हैं। आदित्य गुरु की चर्या लखके,मिथ्यातम नश जावत हैं॥ तप चिंतन उर ज्ञान श्रेष्ठ हैं,श्रेष्ठ शिष्य कहलावत हों। महा दिगम्बर विशुद्ध गुरु को,पल पल नाम बढ़ावत हों॥ आगम के आदित्य प्रभाकर,हृदय कमल में वाश करो। हृदय कमल में ज्योत जलाके,मिथ्यातम का नाश करो॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र अत्र अवतर सम्बोषट आव्हानन।*
  • अत्र तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।*
  • अत्र मम सन्निहितो भवः भव वषद सन्निध्किरणं।*

जल ॥जल॥ पानी छानो वाणी छानो,गुरुवर हमें बतावत हैं। जीवों की रक्षा करके गुरु,करुणा रस झलकावत हैं॥ पानी के संग वाणी छानो,राग द्वेष नई आवत हैं। राग द्वेष से रहित जीव के,जन्म जरा नश जावत हैं॥

  •  ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलम् निर्व स्वाहा।* 

॥चंदन॥ जो नई जमता लिंगा ने बैठो,द्वेष दाह भड़काबत हैं। इग्नोर करो ऐसे लोगो को,आदित्य गुरु बतलावत हैं॥ मंत्र दियो इग्नोर नमः को,जो जन मन से ध्यावत हैं। आदित्य गुरु के पथ पे चलके,भव को ताप नशावत है॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र संसार ताप विनाशनाय चन्दनं निर्व स्वाहा।*

॥अक्षत॥ नींद खुली और सपने टूटे,ऐसे भोग हमारे हैं। खंड खंड हैं जगती के पद,ये सब दुख के द्वारे हैं॥ दुख में सुख को खोज के मानुष,निज आतम भटकावत हैं। अक्षय बनबे मुनि व्रत धारो,गुरुवर हमें बतावत हैं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र अक्षय पद प्राप्ताय अक्षतं निर्व स्वाहा।*

॥पुष्प॥ पारिजात मंदार सुमन ये,कुछ पल को मन भावत हैं। कुछ मिनटों की धूप लगे तब,पल भर में मुरझावत हैं॥ आदित्य पुष्प हैं अमर अनोखा,जब जब ऊ को हेरत हैं। मुरझाये चेहरे खिलते जब,गुरु मुस्कान बिखेरत हैं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र कामवाण विनाशनाय पुष्पं निर्व स्वाहा।*

॥नैवेद्य॥ दर दर भटका फिर भी स्वामी,क्षुधा शांत ना कर पाया। भंडारों को रिक्त किये पर,पेट नहीं ये भर पाया॥ क्षुधा रोग की औषध खाने,गुरु चरणन में आवत हैं। नष्ट करो इस क्षुधा रोग को,नैवज तुम्हें चढ़ावत हैं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र मुनीन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्य निर्व स्वाहा।*

॥दीप॥ गुरु वाणी ही सार जगत में,भेद ज्ञान प्रगटावत है। रत्नत्रय की दिव्य ज्योत से,मिथ्या तिमिर नशावत हैं॥ आदित्य वचन की दिव्य किरण,मम हृदय कमल में झल जाएं। मोहान्धकार को नश करके हम,संयम पथ पे चल पाएं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र मोहांधकार विनाशनाय दीपम् निर्व स्वाहा।*

॥धूप॥ दुनियां के प्रपंचो में पड़,राग द्वेष खूबई करते। कर्म अशाता घेरत हैं तब,करमन को दोषी मढ़ते॥ भौत सियाने हो तुम गुरुवर,प्रपंचों में नई पड़ते। उदय नहीं उपयोग में जीके,जड़ कर्मों से तुम लड़ते॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र अष्टकर्म दहनाय धूपम् निर्व स्वाहा।*

॥फल॥ मोह भाव में पड़के बड्डे,पर से तुम जुड़ जावत हों। कर्म उदय में आवे पे तुम,नाना खेल दिखावत हो॥ मोह भाव को तजके गुरुवर,ऐसो खेल खिलावत हैं। कर्मों की सेना से लड़के,मुक्ति फल को पावत हैं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र मोक्षफल प्राप्ताय फलम् निर्व स्वाहा।*

॥अर्घ्य॥ विशुद्ध गुरु ने प्रगट किय़ा वह,ज्ञान सूर्य कहलावत हैं। परमागम की दिव्य प्रभा से,मिथ्या तिमिर नशावत हैं॥ आदित्य गुरु की चर्या लखके,भेद ज्ञान हो जावत हैं। मुनि में गुरु के दर्शन कर नर,धन्य धन्य हो जावत हैं॥ भाग्यवान हैं वे नर नारी,चरणन शीष झुकावत हैं। गुरु चरणन में अर्घ चढ़ाके,पद अनर्घ प्रगटावत हैं॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र अनर्घ्य पद प्राप्ताय अर्घ्य निर्व स्वाहा*

॥जयमाला॥ आदित्य गुरुवर परम तपस्वी,सुर नर शीष झुकावत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥ जैन धर्मः हैं ऋणी आपका,उपकारो को गावत हैं। जीर्ण क्षीण प्रतिमा को लखके,जीर्णोध्दार करावत हैं॥1॥ ताड़पत्र प्राचीन ग्रंथ को,गुरु अनुवाद करावत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥टेक॥ वीणा मां के लल्ला प्यारे,पितु राजेश कहावत हैं। वीर प्रभु शासन में जन्मे,सन्मति नाम कहावत हैं॥2॥ संस्कार धानी में जन्मे,संस्कार सिखलावत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥ पच्चीस वर्ष में मुनि दीक्षा दे,धर्मः सारथी बना दियो। युवा धर्मः के रथ को खींचे,गुरु स्वप्न साकार कियो॥3॥ मंगलगिरी में विशुद्ध गुरु से,दीक्षा पा हर्षावत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥टेक॥ ज्येष्ठ कृष्ण एकम को जन्मे,जग में हर्ष अपार भयो। कार्तिक शुक्ला तेरस के दिन,श्रमण लिंग अवतार भयो॥4॥ संवत बीस तितालीस जन्मे,अरसठ में व्रत धारत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥टेक॥ जिनशासन अनमोल धरोहर,सोला भाषा जानत हैं। प्राकृत कन्नड़ मलयालम सब,ज्यों की त्यों पहचानत हैं॥5॥ सई बातों को सुन लघुनन्दन,रोमांचित हो जावत हैं। श्रुत संवगी ई धरती पे,गुरुवर जी कहलावत हैं॥टेक॥

  • ॐ ह्रूं  आगम आदित्य प्रभाकर श्रुत संवेगी 108 श्री आदित्यसागर मुनीन्द्र अनर्घ्य पद प्राप्ताय जयमाला पूर्ण अर्घ्यं  निर्व स्वाहा*
  • रचयिता-महाकवि लघुनँदन जैन सियावास तीर्थ बेगमगंज m.p*

साहित्य सृजन

मुनि श्री द्वारा रचित साहित्य वाङ्ग्मय का विवरण इस प्रकार है प्राकृत अनुवाद 1. इष्टोपदेश –भाष्य (3575 श्लोक प्रमाण ) 2. स्वरूप-सम्बोधन-परिशीलन (3975 श्लोक प्रमाण ) 3. समाधि तंत्र अनुशीलन (5511 श्लोक प्रमाण ) 4. स्वानुभव तरिंगिणी (1011 श्लोक प्रमाण ) 5. निजानुभव तरिंगिणी (2300 श्लोक प्रमाण ) 6. आत्मा बोध (1635 श्लोक प्रमाण ) 7. नियम देशना (अप्रकाशित ) 8. बोध वाक्यामृत 9. सूक्ति सुधा 10. दिव्व वयन्णम 11. भव्व वयन्णम

अपभ्रंश अनुवाद 1. अप्पबोहो 2. बोध वाक्यामृत 3. सूक्ति सुधा

कन्नड अनुवाद 1. सरस्वती स्तोत्रम 2. उव्वसग्गहरं थोत्तम 3. गणधरवलय स्तोत्रम 4. श्री परमर्षि स्वस्ति मंगल पाठ 5. सीयलेस थोत्तम 6. निर्ग्रंथ गुरु पुजा

हिन्दी अनुवाद 1. झाणज्झयण-पाहुड़ (श्रीमत कुंद्कुंदाचार्य रचित ) संकलन 1. देशना बिन्दु 2.दशना संचय 3.तत्व बोध 4.तत्व तरिंगिणी 5.हिन्दी –प्राकृत क्रिया कोश

हिन्दी –प्राकृत अव्यय कोश


मौलिक रचना संस्कृत /प्राकृत /अपभ्रंश 1. सध बोध प्रकाशित (अप्रकाशित )