आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण
परिचय
आचार्य मिथिलेशनन्दिनीशरण अयोध्या की युवा पीढ़ी के प्रतिनिधि सन्त और प्रखर आध्यात्मिक विचारक हैं। आचार्यजी श्रीहनुमान् जी की उपासना के प्रधान केन्द्रों में से एक अयोध्या स्थित सिद्धपीठ श्रीहनुमत् निवास के पूज्य महान्त हैं। वर्ष २०१२ से आचार्यपीठ श्रीलक्ष्मणकिला के अति प्राचीन शिव मन्दिर अनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर[1] का संचालन करते हुये उसका जीर्णोद्धार किया है। सनातन धर्म की अवधारणाओं को बदलते जीवन के सन्दर्भों में निरूपित करने, उनकी प्रासंगिकता को प्रतिपादित करने तथा धर्म के सार्वभौम स्वरूप को स्पष्ट करने की दिशा में आचार्य जी के लेख, वक्तव्य और अनवरत व्याख्यान-क्रम उल्लेखनीय हैं। सामाजिक क्षेत्र में कार्य काटने वाले संगठन सेवाज्ञ संस्थानम्[2] के संरक्षक के रूप में आचार्य जी अखिल भारतीय युवा-संवाद के आयोजन युवा धर्म संसद् और छात्र-छात्राओं के आजीविका-और चरित्र-निर्माण के द्वन्द्व का समाधान करने के देशव्यापी आयोजन "उत्तिष्ठ भारत" के माध्यम से सतत संवादरत हैं। राष्ट्रीय समाचार पत्र, पत्रिकायें, आकाशवाणी और दूरदर्शन समेत प्रायः प्रमुख संवाद माध्यमों से आचार्यजी के प्रबोधन देश के सम्मुख आ रहे हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा की गुत्थियों के सुलझाने, उनकी तर्कसंगत व्याख्या करने के लिये आचार्यजी देश के प्रमुख मंचों पर प्रायः दृष्टिगत होते हैं। दिल्ली में श्री अयोध्या न्यास के द्वारा आयोजित होने वाले विराट् आयोजन अयोध्या पर्व[3] में दिये गये आपके उद्बोधन देश के प्रबुद्ध वर्ग में कौतूहल का विषय बने हैं। विशेष रूप से मिथिला-अयोध्या सम्बन्ध तथा गाँधी और रामराज्य पर विचारकों की टिप्पणियाँ विशेष महत्त्वपूर्ण हैं।
शिक्षा-दीक्षा
आचार्य जी ने प्राथमिक शिक्षा अपने पैतृक निवास में रहकर पूरी की। सन् १९९३ में अयोध्या आकर गुरुकुल पद्धति से श्रीसद्धर्मविवर्द्धिनी संस्कृत पाठशाला में व्याकरण वर्ग में प्रथमा में प्रवेश लिया। पूर्वमध्यमा उत्तीर्ण करने के बाद श्रीत्रिदण्डिदेव संस्कृत महाविद्यालय में प्रवेश लिया और उत्तर मध्यमा एवं शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। बाल्यकाल से आध्यात्मिक अभिरुचि के साथ ही साहित्य के संस्कार होने के कारण हिन्दी में लेखन करना प्रारम्भ कर दिया था, अतः शास्त्री के उपरान्त साकेत महाविद्यालय-अयोध्या में हिन्दी साहित्य में परास्नातक किया। तदुपरान्त सम्पूर्णानन्द संस्कृत महाविद्यालय-वाराणसी से धर्मशास्त्र में आचार्य किया। इस परीक्षा में सर्वाधिक प्राप्त करके आपने तीन स्वर्णपदक प्राप्त किये। संयुक्त शोध पात्रता परीक्षा (CRET) के अन्तर्गत शोधवृत्ति प्राप्त करते हुये आचार्य जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में शोधार्थी के रूप में प्रवेश लिया और "तुलसी-साहित्य में कृषक-जीवन की अभिव्यक्ति का स्वरूप" शीर्षक पर शोध पूरा किया। उपाधि के पूर्व आपने अपने पूज्य गुरुदेव अयोध्या के अद्वितीय विरक्त, दार्शनिक एवं श्रीराजगोपाल मन्दिर-अयोध्या के महान्त श्रीकौशलकिशोरशरण जी महाराज 'फलाहारी बाबा' से विरक्त दीक्षा (लँगोटी-अँचला) ग्रहण किया और उपाधि लेने से विरत हो गये।
- ↑ "पञ्चमुखी महादेव मन्दिर", विकिपीडिया, 2021-12-20, अभिगमन तिथि 2024-02-28
- ↑ Sansthanam, Sevagya. "Sevagya Sansthanam". Sevagya Sansthanam (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-02-28.
- ↑ "श्री अयोध्या न्यास | संस्कार समृद्धि शौर्य | Shri Ayodhya Nyas". श्री अयोध्या न्यास (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-02-28.