अम्ल
अम्ल एक रासायनिक यौगिक है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है। इसका pH मान 7.0 से कम होता है। जोहान्स निकोलस ब्रोंसटेड और मार्टिन लॉरी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा के अनुसार, अम्ल वह रासायनिक यौगिक है जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करता है। जैसे- एसीटिक अम्ल (सिरका में) और सल्फ्यूरिक अम्ल (बैटरी में). अम्ल, ठोस, द्रव या गैस, किसी भी भौतिक अवस्था में पाए जा सकते हैं। वे शुद्ध रूप में या घोल के रूप में रह सकते हैं। जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वे (अम्लीय) कहलाते हैं। मानव आंत्र में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता से होने वाली बीमारी को अम्लता या एसीडिटी कहते हैं। अम्ल नीले लिटमस को लाल कर देता है
अम्ल के कुछ गुण निम्नलिखित हैं- 1 अम्ल का PH मान 7 से कम होता है। 2 अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल करता है। अम्ल जल से अभिक्रिया करके हाइड्रोजन आयन देता है।
अम्ल एवं क्षारक (परिचय एवं इतिहास)
अम्ल (ऐसिड) उन पदार्थों को कहते हैं जो पानी में घुलने पर खट्टे स्वाद के होते हैं (अम्ल = खट्टा), हल्दी से बनी रोली (कुंकम) को पीला कर देते हैं,तथा इनका जलीय विलयन नीले लिटमस पेपर को लाल करता है। अधिकांश धातुओं पर (जैसे जस्ते पर) अभिक्रिया करके हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करते हैं, और क्षारक को उदासीन (न्यूट्रल) कर देते हैं। मोटे हिसाब से क्षारक (बेस) उन पदार्थों को कहते हैं जिनका विलयन चिकना-चिकना सा लगता है (जैसे बाजा डिग्री सोडे का विलयन), स्वाद कडवा होता है, हल्दी को लाल कर देते हैं और अम्लों को उदासीन करते हैं। उदासीन करने का अर्थ है ऐसे पदार्थ (लवण) का बनाना जिसमें न अम्ल के गुण होते हैं, न क्षारक के।
लवाज़िए ने (1770 ई. में) ऑक्सीजन के गुणों का अध्ययन करते समय देखा कि कार्बन, गंधक और फ़ास्फोरस सदृश तत्त्व जब ऑक्सीजन में जलते हैं तब उनसे बने आक्साइड जल के साथ मिलकर अम्ल बनाते हैं। वे इस परिणाम पर पहुँचे कि अम्लों में ऑक्सीजन रहता है और अम्लों की अम्लीयता का कारण ऑक्सीजन है। इसी कारण इस गैस का नाम "आक्सीजन" पड़ा, जिसका अर्थ होता है "अम्ल बनानेवाला पदार्थ" तथा इसी कारण जर्मन भाषा में ऑक्सीजन को "सायर स्टफ़" अर्थात् अम्ल पदार्थ कहते हैं।
लवाज़िए ने ही अम्लों को दो वर्गों, अकार्बनिक अमलों और कार्बनिक अम्लों में विभक्त किया था। पीछे देखा गया कि कुछ तत्वों के आक्साइड पानी में घुलकर अम्ल नहीं बल्कि क्षार बनाते हैं और कुछ अम्लों में ऑक्सीजन बिलकुल नहीं होता। बर्टीले ने सन् 1787 में हाइड्रोसाइएनिक अम्ल, डेवी ने सन् 1810-11 में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सन् 1813 में हाइड्रियोडिक अम्ल का आविष्कार किया। इनमें से किसी में ऑक्सीजन नहीं है।
आगे चलकर देखा गया है कि जो पदार्थ बिलकुल सूखे होते हैं, उनमें कोई अम्लीय अभिक्रिया नहीं होती। तब लोगों ने अम्लों को दो वर्गों में विभक्त किया, एक हाइड्रो-अम्ल और दूसरा आक्सी-अम्ल। पीछे सन् 1815 में डेवी ने सुझाव रखा कि अम्लों की अम्लीयता ऑक्सीजन के कारण नहीं, वरन् हाइड्रोजन के कारण है। डूलांग ने सन् 1815 में आक्सैलिक अम्ल का अध्ययन किया और इस परिणाम पर पहुँचे कि आक्सीजनवाले और बिना आक्सीजनवाले अम्लों में कोई भेद नहीं है।
अम्लों में कोई ऐसा गुण नहीं है जिसे हम अम्लों का विशिष्ट लक्षण कह सकें। साधारण गुण ऊपर बताए जा चुके हैं। अम्ल और धातु की अभिक्रिया में अम्ल के अणु का एक, या एक से अधिक, हाइड्रोजन परमाणु धातुओं, धातुओं के आक्साइडों, हाइड्रोक्साइडों अथवा कार्बोनेटों से विस्थापित हो जाता है।
ऐसे भी कुछ अम्ल हैं जो खट्टे होने के बदले मीठे होते हैं। ऐसा एक अम्ल ऐमिडो-फोस्फरिक अम्ल है। कुछ ऐसे भी अम्ल हैं जो क्षारहर नहीं होते। कुछ ऐसे भी क्षार हैं जिनका हाइड्रोजन धातुओं से विस्थापित हो जाता है। फिटकरी अम्ल नहीं है। इसमें विस्थापित होनेवाला कोई हाइड्रोजन भी नहीं है। पर यह स्वाद में खट्टा और क्रिया में क्षारहर होता है। यह नीले लिटमस को लाल भी कर देता है। इसी प्रकार सोडियम बाईसल्फाइड खट्टा और क्षारहर होता है। यह नीले लिटमस को लाल करता है। इसमें विस्थापित होनेवाला हाइड्रोजन भी है, पर यह अम्ल नहीं है। मिथेन अम्ल नहीं है, पर इसका हाइड्रोजन जस्ते से विस्थापित हो जाता है और इस प्रकार ज़िंक डाइमेथिल बनता है जो लवण नहीं है।
अत: अम्ल की कोई संतोषप्रद परिभाषा अब तक नहीं दी जा सकी है। आयन सिद्धांत के आधार पर यदि हम अम्लों की परिभाषा देना चाहें तो कह सकते हैं कि अम्लों में हाइड्रोजन आयनों का रहना अत्यावश्यक है।
सिलवियन ने सन् 1659 में पहले पहल अम्लों और क्षारकों में विभेद किया था। रूल ने सन् 1774 में क्षारक नाम उस पदार्थ को दिया जो अम्लों के साथ मिलकर लवण बनाता है। आजकल क्षारक उन ऑक्सीजन वाले पदार्थों को कहते हैं जो अम्लों के पूरक होते हैं। क्षार धातुओं, क्षारीयमृदा धातुओं और अन्य धातुओं के आक्साइड और वे सभी वस्तुएँ क्षारक हैं जो अम्लों के साथ मिलकर लवण बनाती हैं। आरंभ में क्षारक केवल उन धातुओं अथवा धातुओं के आक्साइडों के लिए व्यवह्रत होता था जो लवणों के "बेस" या आधार थे। लवणों के क्षारक आवश्यक अवयव हैं।
क्षारक वास्तव में ऐसे पदार्थ हैं, जो अम्ल के साथ मिलकर लवण एवं जल बनाते हैं। उदाहरणत:, जिंक आक्साइड सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर ज़िंक सल्फेट और जल बनाता है, दाहक सोडा सल्फ़्यूरिक अम्ल के साथ मिलकर सोडियम सल्फेट और जल बनाता है। धातुओं के आक्साइड सामान्यत: क्षारक हैं। परन्तु इसके अपवाद भी हैं।
क्षारकों में धातुओं के आक्साइड और हाइड्राक्साइड हैं, पर सुविधा के लिए तत्वों के कुछ ऐसे समूह भी रखे गए हैं जो अम्लों के साथ मिलकर बिना जल बने ही लवण बनाते हैं। ऐसे क्षारकों में अमोनिया, हाइड्राक्सीलेमिन और फास्फीन हैं। द्रव अमोनिया घुल जाता है, परन्तु फीनोल्फथैलीन से कोई रंग नहीं देता। अत: कहाँ तक यह क्षारक कहा जा सकता है, यह बात संदिग्ध है।
यद्यपि ऊपर की क्षारक की परिभाषा बड़ी असंतोषप्रद है, तथापि इससे अच्छी परिभाषा नहीं दी जा सकी है। क्षारक (बेस) और क्षार (ऐल्कैली) पर्यायवाची शब्द नहीं हैं। सभी क्षार क्षारक हैं, परन्तु सभी क्षारक क्षार नहीं हैं। क्षार-धातुओं के आक्साइड, जैसे सोडियम आक्साइड, जल में घुलकर हाइड्राक्साइड बनाते हैं। ये प्रबल क्षारकीय होते हैं। क्षारीय मृदाधातुओं के आक्साइड, जैसे कैलिसयम आक्साइड, जल में अल्प विलेय और अल्प क्षारीय होते हैं। अन्य धातुओं के आक्साइड जल में घुलते नहीं और उनके हाइड्राक्साइड परोक्ष रीतियों से ही बनाए जाते हैं।
धातुओं के आक्साइड और हाइड्राक्साइड क्षारक होते हैं। क्षार धातुओं के आक्साइड जल में शीघ्र घुल जाते हैं। कुछ धातुओं के आक्साइड जल में कम विलेय होते हैं और कुछ धातुओं के आक्साइड जल में तनिक भी विलेय नहीं हैं। कुछ अधातुओं के हाइड्राइड, जैसे नाइट्रोजन और फास्फोरस के हाइड्राइड (क्रमश: अमोनिया और फास्फीन) भी भस्म होते हैं।
अम्लों का वर्गीकरण
- आक्सीजन की उपस्थिति/अनुपस्थिति के आधार पर
- anoxic (HCl, H 2 S);
- oxygenated (HNO 3).
- क्षारकता के आधार पर - (अम्लीय हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या के आधार पर)
- Monobasic (HPO 3);
- Double-(H 2 SeO 4, Azelaic acid);
- Tribasic (H 3 PO 4).
- Chetyrehosnovnye (H 4 CO 4).
- क्रियाशीलता के आधार पर
- Strengths - almost completely dissociated, the dissociation constants of greater 1.10 −3 (HNO 3);
- Weaknesses - the dissociation constant of less than 1.10 −3 (acetic acid, K d = 1.7 × 10 -5).
- Sustainability
- Stable (H 2 SO 4);
- Unstable (H 2 CO 3).
- कार्बनिक या अकार्बनिक
- वाष्पशीलता (volatility) के आधार पर
- वाष्पशील (H 2 S, HCl);
- अवाष्पशील
- जल में विलेयता (Solubility) के आधार पर
- जल में विलेय (H 2 SO 4);
- अविलेय (H 2 SiO 3);
अम्लों के रासायनिक गुण
- एम्फोटेरिक आक्साइडों के साथ क्रिया करके लवण और जल बनाते हैं।
- क्षारों के साथ क्रिया करके लवण व जल बनाते हैं (उदासीनीकरण अभिक्रिया)
- अघुलनशील क्षारों के साथ क्रिया करके लवन और जल बनाते हैं।
- लवणों के साथ क्रिया
- शक्तिशाली अम्ल, कमजोर अम्लों के मूलकों को विस्थापित कर देते हैं।
(इस क्रिया में अस्थायी कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है जो तुरन्त पानी और कार्बन डाईआक्साइड में टूत जाता है।)
- धातुओं के साथ क्रिया
- नाइट्रिक अम्ल और सांद्र सल्फ्यूरिक अम्ल क्रिया अलग प्रकार से होती है-
- उदाहरण
कुछ सामान्य अम्ल
(खनिज) एसिड अकार्बनिक
- गंधक का अम्ल या सल्फ्यूरिक अम्ल
- हाइड्रोक्लोरिक एसिड
- फॉस्फोरिक एसिड
- Orthocarbonic एसिड
- नाइट्रिक एसिड
- बोरिक अम्ल
- Sulfurous एसिड
- हाइड्रोजन सल्फाइड
- Hydrofluoric एसिड
- Yodovodorodnaya एसिड
- Hypochlorous एसिड
- क्लोरिक एसिड
- क्लोरस एसिड
- Perchloric एसिड
- नाइट्रोजनवाला एसिड
- Hydrobromic एसिड
- Silicic एसिड
- Permanganate
- कार्बोनिक एसिड
- हाइड्रोजन साइनाइड
- Hydrofluoric एसिड
- Rodanistovodorodnaya एसिड
- Tiosernaya एसिड
- आवधिक एसिड
- Iodic एसिड
- आर्सेनिक अम्ल
- मोलिब्डेनम एसिड
कार्बनिक अम्ल
इन्हें भी देखें
- अम्ल एवं क्षार के सिद्धान्त
- अतिअम्ल (Superacid)
- अम्लों की सूची