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अबूझमाड़

अबूझमाड़
Abujmarh
अबूझमाड़ का एक दृश्य
भूगोल
Map showing the location of अबूझमाड़
Map showing the location of अबूझमाड़
Map showing the location of अबूझमाड़
Map showing the location of अबूझमाड़
स्थानछत्तीसगढ़,    भारत
निर्देशांक19°32′24″N 80°48′22″E / 19.540°N 80.806°E / 19.540; 80.806निर्देशांक: 19°32′24″N 80°48′22″E / 19.540°N 80.806°E / 19.540; 80.806
क्षेत्र3,900 वर्ग किलोमीटर (4.2×1010 वर्ग फुट)

अबूझमाड़ (Abujmarh) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर अंचल के नारायणपुर जिले में स्थित है। इसका कुछ हिस्सा महाराष्ट्र तथा कुछ आंध्र प्रदेश में पड़ता है। भारत में विलुप्त होते बाघों के लिये यह क्षेत्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह भारत के ६ प्रमुख बाघ आश्रय स्थलों क्रमश: इन्द्रावती, नल्लामल्ला, कान्हा, नागझीरा, ताडोबा और उदन्ती सीतानदी राष्ट्रीय उद्यान से जंगलो के द्वारा संपर्क में है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है अबूझ मतलब जिसको बूझना संभव ना हो और माड़ यानि गहरी घाटियां और पहाड़। यह एक अत्यंत दुर्गम इलाका है।[1][2]

यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के चेरापूंजी(Cherrapunji) के नाम से भी जाना जाता है। यह छत्तीसगढ़ का ऐसा क्षेत्र है जहां पर सर्वाधिक वर्षा होता है।

स्थिति

गुगल मैप के अनुसार लगभग ५००० वर्ग किलोमीटर के इस इलाके में कोई सड़क नहीं है। यहां करीब २०० ऐसे गांव है जिनकी जगह बदलती रहती है क्योंकि यहां रहने वाले माड़िया आदिवासी जगह बदल बदल कर बेरवा पद्धती से खेती करते हैं।

परिस्थितियाँ

अबूझमाड़ और इसके निवासी आज तक अपने आदिकालीन स्वरूप में है। चूंकि यहां रहने वाले माड़िया आदिवासी बाहरी लोगों से संपर्क रखना पसंद नहीं करते, इस कारण अभी तक यहां पायी जाने वाली पेड़ पौधों और वन्य प्राणियो की संख्या और प्रकार के बारे में सही जानकारी नहीं है और यहां के बाघों की गणना भी नहीं हुई है। इसकी सीमा पर रहने वाले व्यापारी आज भी आदिवासियों से तेल और नमक का वनोंपज के साथ विनिमय करते हैं। आदिवासियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार यहाँ बाघ, वनभैंसा, गौर, सांभर चौसिंगा इत्यादि जीव प्रचुर मात्रा में हैं, लेकिन पहाड़ी इलाका होने के कारण यहां चीतलों की संख्या कम है।

सबसे बडी बात यह है कि यहां कभी वनों की कटाई नहीं हुई है और मध्य भारत में यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां हम हमारे मूल जंगलो में पाई जाने वाली वनस्पतियों और वन्य प्राणियों जो जंगलों की कटाई कर उनका कोयला बना कर वहां सागौन नीलगिरी साल इत्यादि का रोपण करने के कारण विलुप्त हो चुके हैं का अध्ययन करने का सुनहरा अवसर मिल सकता है। और यह इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दक्षिण भारत की अनेक नदियों का जलग्रहण क्षेत्र है।

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ