अनन्त काकबा प्रियोलकर
अनन्त काकबा प्रोलकर (१८९७ - १९७३) एक भारतीय नीतिशास्त्री, लेखक और राजनीतिक कार्यकर्ता थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1951 में कारवार में आयोजित अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। [1] उनकी पुस्तक द गोवा इनक्विजिशन उनकी सबसे अधिक बिकने वाली कृति बनी हुई है। उन्होंने कोंकणी को मराठी भाषा की एक बोली माना।
प्रकाशित साहित्य
- दि गोवा इन्क्विजिशन (मुंबई विद्यापीठ प्रेस, १९६१)[2]
- ग्रांथिक मराठी भाषा आणि कोंकणी बोली (पुस्तकीय मराठी भाषा और कोंकणी बोली)
- दमयंती स्वयंवर (आध्यात्मिक)
- दि प्रिंटिंग प्रेस इन इंडिया (मराठी संशोधन मंडळ, मुंबई १९५८)
- प्रिय आणि अप्रिय (प्रिय और अप्रिय)
- लोकहितवादीकृत निबंध संग्रह (संपादित, ललित प्रकाशन)
- गोवा री-डिस्कवर्ड
गौरव
- अध्यक्ष, मराठी साहित्य संमेलन, कारवार १९५१
सन्दर्भ
- ↑ "अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलनअखिल भारतीय साहित्य संमेलन". मूल से 14 July 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-07-06.
- ↑ http://en.wikipedia.org/wiki/Goa_Inquisition