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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद

हिंदू संत

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, भारत में हिन्दू सन्तों एवं साधुओं का सर्वोच्च संगठन है। इसमें 13 अखाड़े सम्मिलित हैं. ये तीन मतों के अनुसार संचालित होते हैं। हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाजों और त्योहारों का आयोजन करने के साथ ही कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में भी इन अखाड़ों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। देश भर में जितने भी आश्रम हैं उन सब का संबंध भी प्रायः किसी न किसी अखाड़े से होता है।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की ओर से देश के 13 अखाड़ों को ही मान्यता प्राप्त है। (इनके अलावा त्रिकाल भवंता का परी अखाड़ा और किन्नर अखाड़ा भी अखाड़ा होने का दावा करते हैं किंतु इन्हें अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की मान्यता प्राप्त नहीं है) हरिद्वार कुंभ के पहले अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने कहा कि 13 अखाड़ों के अलावा किसी भी अन्य अखाड़े को हरिद्वार कुम्भ में प्रवेश करने नहीं दिया जाएगा, साथ ही उन्होंने सरकार से भी फर्जी अखाड़ों को कोई मदद नहीं देने भी अपील की थी।

अखाड़ों की स्थापना और इतिहास

मान्यता है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने देश के चारों छोर पर स्थित बद्रीनाथ (उत्तर), रामेश्वरम (दक्षिण), जगन्नाथ पुरी (पूर्व), और द्वारिका पीठ (पश्चिम) दिशा में हिंदू धर्म को संगठित करने और एक सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से चार धाम (मठ) स्थापित किये, और इन्हीं मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा। आद्य शंकराचार्य का मत था कि मठ, मंदिरों और आश्रमों को एक सूत्र में पिरोया जाए और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए आवश्यकता पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल भी किया जा सके, तभी से मठों में साधु कसरत कर शरीर को सुदृढ़ बनाते हैं और हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी लेते हैं। धीरे धीरे इन अखाड़ों का विस्तार हुआ और अब देश में कुल 13 अखाड़े हैं। ये सभी अखाड़े शैव, वैरागी और उदासीन नामक तीन मतों (संप्रदाय )के हैं। इन अखाड़ों को कुंभ और अर्धकुंभ में व्यवस्था करने और शाही स्नान की विशेष सुविधाएं मिलती हैं, इनके नहाने के लिए विशेष प्रबंध होते हैं। सरकार की ओर से इन्हें आर्थिक सहयोग सहित अनेक सुविधाएं एवं विशेषाधिकार भी दिए जाते हैं। और इन विशेषाधिकारों को देखते हुए अखाड़ों के बीच वर्चस्व की प्रतियोगिता भी होने लगी, जिसे नियंत्रित करने उच्च अधिकार प्राप्त अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद

आद्य शंकराचार्य द्वारा हिंदू धर्म में जिस सहयोग, संगठन और एक सूत्र में पिरोने के पवित्र भाव से इस परंपरा की शुरुवात की गई थी वो वर्चस्व की लड़ाई के कारण धीरे धीरे क्षीण होने लगी तब इस समस्या के समाधान और अखाड़ों पर नियंत्रण के लिए वर्ष 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई। यद्यपि परिषद की स्थापना से कुछ हद तक नियंत्रण अवश्य हुआ किंतु अब भी वर्चस्व स्थापित करने परस्पर प्रतियोगिता चलती ही रहती है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ही सभी तेरह अखाड़ों के कुंभ व अर्धकुंभ में स्नान का समय और उनकी जिम्मेदारी तय करता है, जिसे सभी अखाड़े मानते हैं।

अखाड़ा परिषद विवाद

प्रयागराज कुंभ 2013 से पहले अखाड़ा परिषद में दो फाड़ हो गया था तब अयोध्या के श्री महंत ज्ञानदास परिषद के अध्यक्ष थे। परिषद में दो फाड़ होने के बाद निर्मल अखाड़े के बलवंत सिंह दूसरे गुट के अध्यक्ष बन गए, किंतु कुछ महीनों में ही आपसी सुलह हो गई। इसके बाद एक बार फिर से अखाड़ा परिषद में दो फाड़ हो गया है। अखाड़ा परिषद में अब दो अध्यक्ष हो गये हैं। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। तेरह में से आठ अखाड़ों ने मिलकर प्रयागराज में मनसा देवी ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना था, इसी के साथ अखाड़ा परिषद भी दो धड़ों में बंट गई है। इससे पहले सात अखाड़ों ने महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव महंत रविंद्र पुरी को अध्यक्ष एवं बैरागी अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री चुना था। अब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष दो बन गए हैं, इससे संत समाज में भी भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी है और सरकार भी असमंजस में पड़ गयी है। अब प्रयाग राज कुंभ 2025 के पहले इस वर्चस्व की लड़ाई को सुलझाने पुनः प्रयास किए जा रहे हैं। संभव है अभी ये विवाद शांत हो जाए, किंतु सनातन संस्कृति और हिंदू एकता के संदर्भ में ऐसे विवाद निश्चित ही अप्रिय और अनुचित हैं।


अखाड़ों की जानकारी

:शैव संन्यासी संप्रदाय:

शिव और उनके अवतारों को मानने वाले शैव कहे जाते हैं। इनमें शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग जैसे उप संप्रदाय हैं। शैव संन्यासी संप्रदाय के पास सात अखाड़े हैं।

'1.श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी', दारागंज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश इसके पास महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा की जिम्मेदारी है। महानिर्वाणी अखाड़ा या श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी (संस्कृत और हिंदी में श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी) एक शैव शास्त्रधारी (आध्यात्मिक लिपि वाहक) अखाड़ा है। यह हिंदू परंपरा में तीन प्रमुख (कुल सात में से) शास्त्रधारी अखाड़ों में से एक है।

'2. श्री पंच अटल अखाड़ा', चौक, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, यहां सिर्फ ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को दीक्षा दी जाती है।

'3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी', दारागंज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, कहते हैं यह सबसे अधिक शिक्षित अखाड़ा है। इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं।

'4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा' पंचायती त्रयंबकेश्वर, नासिक, यहां महामंडलेश्वर नहीं होते। आचार्य ही प्रमुख होता है।

'5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा', बाबा हनुमान घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, इसमें करीब पांच लाख साधु-संत हैं और यह सबसे बड़ा अखाड़ा माना जाता है।

'6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा', दशाश्वमेध घाट, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, इस अखाड़े में महिला साध्वियों को दीक्षा देने की परम्परा नहीं है।

'7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा', गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़, गुजरात, यहां केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है

:वैरागी संप्रदाय:

वैरागी संप्रदाय भगवान विष्णु को मानते हैं। इनमें कई उप संप्रदाय हैं, जिनमें इनमें बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माधव, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय आदि हैं।

इनके पास तीन अखाड़े हैं।

'1. श्री दिगंबर अनी अखाड़ा', शामलाजी खाक चौक मंदिर, सांभर कांथा, गुजरात, इस अखाड़े को वैष्णव सम्प्रदाय में राजा का दर्जा प्राप्त है।

'2. श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा', हनुमान गढ़, अयोध्या, उत्तर प्रदेश, वैष्णव सम्प्रदाय के सबसे ज्यादा 09 अखाड़े इसी अखाड़े के पास हैं।

'3. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा', धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, उत्तर प्रदेश, इस अखाड़े में कुश्ती के पहलवान भी तैयार किए जाते हैं, यहां के कई संत प्रोफेशनल पहलवान भी रह चुके हैं।

:उदासीन संप्रदाय:

ये सिख-साधुओं का संप्रदाय है। सनातन धर्म को भी मानते हैं। उदासीन सम्प्रदाय में तीन अखाड़े हैं।

'1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा', कृष्णनगर, कीडगंज, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, इस अखाड़े का मुख्य उद्देश्य सेवा करना है।

'2. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन', कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड, इस अखाड़े में 8 से 12 वर्ष तक बच्चों को दीक्षा दी जाती है।

'3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा', कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड, इस अखाड़े में धूम्रपान पूर्णतया वर्जित है, तथा अन्य कई नियमों का भी पालन किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्तरराष्ट्रीय जगतगुरु दसनाम गुसांई गोस्वामी एकता अखाड़ा परिषद, दिल्ली (गृहस्थ दसनामी गोस्वामी गुसांई का एक सामाजिक अखाड़ा भी है।)

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ