अकाली फूला सिंह
अकाली फूला सिंह निहंग (जन्म फूला सिंह ; 1 जनवरी 1761 - 14 मार्च 1823) एक अकाली निहंग सिख नेता थे। वह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में खालसा शहीदां मिसल [1] के एक सैनिक और बुद्ध दल के प्रमुख थे। वह सिख खालसा सेना में एक वरिष्ठ सेनापति और सेना के अनियमित निहंग के कमांडर भी थे। उन्होंने अमृतसर में सिख मिसलों को एकजुट करने में भूमिका निभाई। वह अंग्रेजों से नहीं डरते थे अंग्रेजों ने कई बार उनकी गिरफ्तारी का आदेश दिया लेकिन वह कभी सफल नहीं हुए। अपने बाद के वर्षों के दौरान उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के प्रत्यक्ष सलाहकार के रूप में सिख साम्राज्य के लिए सेवा की। वह नौशेरा की लड़ाई में अपनी शहादत तक कई प्रसिद्ध लड़ाइयों में एक सेनापति बने रहे। उनकी एक बात और खास थी कि वह किसी भी चीज को पंथ के ऊपर नहीं रहने देते थे, उनका इतना खौफ था कि अंग्रेज उनसे थर-थर कांपते थे।[2] वे सर्वविदित थे और एक विनम्र अद्वितीय नेता और उच्च चरित्र वाले प्रतिष्ठित योद्धा थे। [3] [4] वह गुरमत और खालसा पंथ के मूल्यों को बनाए रखने के अपने प्रयास के लिए भी जाने जाते थे।
माननीय जत्थेदार साहिब अकाली फूला सिंह | |
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श्री अमृतसर साहिब,पंजाब,भारत मैं अकाली फूला सिंह की प्रतिमा | |
जन्मजात नाम | फूला सिंह |
जन्म | 01 जनवरी 1761 गाँव सीहां, संगरूर,दल खालसा (आज पंजाब, भारत) |
देहांत | 14 मार्च 1823 पीर सबक, सिख साम्राज्य (आज ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, पाकिस्तान) | (उम्र 62)
निष्ठा | सिख साम्राज्य |
सेवा वर्ष | 1800-1823 |
उपाधि | जत्थेदार |
सम्बंध | सरदार ईशार सिंह(पिता) बीबी हरि कौर(माता) भाई संत सिंह(भाई) |
प्रारंभिक जीवन
अकाली फूला सिंह का जन्म जनवरी 1761 में सरदार ईशर सिंह के घर हुआ था। उनके पिता एक किसान थे, उनके पिता की मृत्यु के बाद अकाली फूला सिंह जो अभी भी युवा थे और उनके बड़े भाई बाबा संत सिंह की देखभाल महंत बलराम ने की और बाद मैं उनकी माँ की सलाह के तहत उन्हें अकाली बाबा नैना सिंह के पास आनंदपुर साहिब भेज दिया गया। बाबा नैना सिंह से ही उन्होंनें अमृत छका।
उन्होंने कम उम्र मैं ही काफी गुरबाणी को याद कर लिया, उन्होंन आस-पास के सिखों को गुरबाणी के अर्थ समझाने शुरु किए, उन्होंन बाबा नैणा सिंह जी की शहीदां मिसल के लिए बहुत सी लड़ाईयां लड़ी।
श्री अमृतसर साहिब की देखभाल
अकाली नैणा सिंह जी के पास रहते अकाली फूल सिंह को पता लगा की, गुरुनगरी मैं गुरु मर्यादा पूरी तरह से नहीं चल रही, ना वहां का प्रबंध अच्छे तरीके से हो रहा है, तो वह श्री आनन्दपुर साहिब से अमृतसर चले गए। वहां उन्होंने फिर से गुरुमर्यादा को चलाया। उन्होंने वाहा काफी बदलाव किए जैसे:
(1) अकाल तख़्त साहिब का हर सेवादार अमृतधारी सिख होना अनिवार्य है।
(2) मुग़ल साम्राज्य के काल मैं योद्धाओं की वारें(धार्मिक गीत) सुबह-शाम गाईं जाएंगे।
(3) अकाल तख़्त साहिब परिसर मैं किसी का निवास नहीं रहेगा।
(4) अकाल तख़्त साहिब का हुक्म अटल हुक्म हुआ करेगा।
(5) जो उसको नहीं माना करेगा, उसको या तो सज़ा दी जाएगी या गैर-सिख ऐलान दिया जाएगा।[5]
(5) किसी भी सिख(चाहे वो कोई भी हो) की निजी लड़ाई को अकाल तख़्त साहिब पर नहीं सुलझाया जाएगा।[6]
- ↑ Singh, H.S. (2008). Sikh Studies, Book 7 (Fifth संस्करण). New Delhi: Hemkunt Press. पृ॰ 36. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170102458.
- ↑ Singh, Prem (1926). Baba Phoola Singh Ji 'Akali' (4th संस्करण). Ludhiana: Lahore Book Shop. पृ॰ 36. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7647-110-0.
- ↑ Singh, Jagjit (1998). Temple of Spirituality or Golden Temple of Amritsar. New Delhi: Mittal Publications. पृ॰ 43.
- ↑ Singh, Kartar (1975). Stories from Sikh History: Book-VII. New Delhi: Hemkunt Press. पृ॰ 102.
- ↑ Dilagīra, Harajindara Siṅgha (1980). The Akal Takht (अंग्रेज़ी में). Punjabi Book Company.
- ↑ Jarnail, Ankhila (1988). "Akali Phula Singh". Punjabi digital library.