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अ थिअरी ऑफ जस्टिस

ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस  
लेखकजॉन राल्स
मूल शीर्षकA Theory of Justice
देश संयुक्त राज्य अमेरिका
भाषा अंग्रेज़ी
विषयराजनीतिक दर्शन
प्रकारकथेतर साहित्य
मीडिया प्रकार प्रिंट
पृष्ठ 560
आई॰एस॰बी॰एन॰0-674-00078-1
ओ॰सी॰एल॰सी॰ क्र॰41266156
लाइब्रेरी ऑफ़ कॉंग्रेस
वर्गीकरण
JC578 .R38 1999

अ थिअरी ऑफ जस्टिस (अंग्रेज़ी: A Theory of Justice; हिन्दी: न्याय का सिद्धान्त) अमेरिकी राजनीतिक विचारक जॉन राल्स द्वारा रचित राजनीतिक दर्शन एवं नीतिशास्त्र (एथिक्स) की पुस्तक है। इसका प्रकाशन १९७१ में हुआ था तथा १९७५ और १९९९ में इसके संशोधित संस्करण प्रकाशित हुए।

जॉन बोर्डली रॉल्स उदारवादी (लिबरल) परम्परा में एक अमेरिकी नैतिक एवं राजनीतिक दार्शनिक थे। २०वीं सदी के सबसे प्रभावशाली राजनीतिक दार्शनिकों में उनकी गिनती होती है। उन्हें तर्क और दर्शन के लिए शॉक पुरस्कार (1999) और राष्ट्रीय मानविकी पदक (1999) प्रदान किय गया था।

राल्स का सामाजिक न्याय का सिद्धान्त

न्याय की अवधारणा राजनीतिक दर्शन की महत्त्वपूर्ण अवधारणा है। समकालीन उदारवाद ने इस अवधारणा को नए ढंग से पेश किया है। न्याय की समस्या का इतिहास काफी पुराना है। मानव चिन्तनशील प्राणी होने के नाते राजनीतिक समाज के प्रादुर्भाव से ही अपने लिए न्याय की मांग करता आया है। न्याय की समस्या मुख्यता यह निर्णय करने की समस्या है कि समाज के विभिन्न वर्गों, व्यक्तियों और समूहों के बीच विभिन्न वस्तुओं, सेवाओं, अवसरों, लाभों आदि को आबंटित करने का नैतिक व न्यायसंगत आधार क्या हो। इसी कारण अनेक विचारकों ने स्वतन्त्रता तथा समानता के विरोधी दावों को हल करने के लिए अपने न्याय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। उन्हीं विचारकों में से एक रॉल्स हैं।

रॉल्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'अ थिअरी ऑफ जस्टिस' में अपना न्याय का सिद्धान्त प्रस्तुत करते हुए उपयोगितावादियों के विचारों का खण्डन किया है। उसने हेयक के उस विचार का भी खण्डन किया है जो हेयक ने समकालीन उदारवादी चिन्तक होने के बावजूद भी ‘प्रगति बनाम न्याय’ के विवाद में न्याय की अवहेलना करके प्रगति का पक्ष लिया है। रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त की शुरुआत में ही न्याय के बारे में यह तर्क दिया है कि अच्छे समाज में अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं और उनमें न्याय का भी महत्त्वपूर्ण सथान है। न्याय उत्तम समाज की आवश्यक शर्त हैं, परन्तु यह उसके लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि किसी समाज में न्याय के अतिरिक्त भी दूसरे नैतिक गुणों की प्रधानता हो सकती है। परन्तु जो समाज अन्यायपूर्ण है उसकी कभी प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए। जो विचारक यह मांग करते हैं कि सामाजिक न्याय के विचार को बाधा के रूप में खड़ा नहीं करना चाहिए, उनका ध्येय समाज को नैतिक पतन की तरफ ले जाने वाला होता है। न्याय के बिना समाज की उन्नति और उत्तम समाज की स्थापना दोनों ही असम्भव है।

रॉल्स के न्याय-सिद्धान्त की व्याख्या

रॉल्स ने अपने न्याय सम्बन्धी विचार सर्वप्रथम 1950 में से बनाने शुरू किए। उसने 1957 में ‘न्याय औचित्य के रूप में’ नामक लेख में अपने न्याय सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किए। 1963 तथा 1968 में उसने अपने विचारों को फिर से आगे प्रस्तुत किया और वितरणात्मक न्याय की अवधारणा प्रस्तुत की। 1971 में रॉल्स ने जिस पुस्तक का प्रतिपादन किया, उसमें वितरणात्मक न्याय के ही दर्शन होते हैं। रॉल्स का वितरणात्मक न्याय समझौतावादी सिद्धान्त पर आधारित है। रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त को पेश करते हुए सबसे पहले उपयोगितावादी विचारों का खण्डन किया है और अपने न्याय सिद्धान्त को प्रकार्यात्मक आधार प्रदान किया है। रॉल्स ने सामाजिक सहयोग में न्याय की भूमिका को स्पष्ट करते हुए न्याय का सरलीकरण किया है और अपने न्याय सिद्धान्त को प्रकार्यातमक आधार प्रदान किया है। रॉल्स ने न्याय को उचितता के रूप में परिभाषित करके न्याय के सिद्धान्त की परम्परागत समझौतावादी अवधारणा को उच्च स्तर पर अमूर्त रूप प्रदान किया है। उसने अपने न्याय सिद्धान्त की तुलना उपयोगितावादी तथा अन्तःप्रज्ञावादी न्याय के सिद्धान्त से करके वितरणात्मक या सामाजिक न्याय सिद्धान्त की श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास किया है।

बाहरी कड़ियाँ