हेलियोस्फीयर
सूर्य से लाखों मील प्रति घंटे के वेग से चलने वाली सौर वायु[1] सौरमंडल के आसपास एक सुरक्षात्मक बुलबुला निर्माण करती हैं। इसे हेलियोस्फीयर कहा जाता है। यह पृथ्वी के वातावरण के साथ-साथ सौर मंडल की सीमा के भीतर की दशाओं को तय करती हैं।[2] हेलियोस्फीयर में सौर वायु सबसे गहरी होती है। पिछले ५० वर्षों में सौर वायु इस समय सबसे कमजोर पड़ गई हैं। वैसे सौर वायु की सक्रियता समय-समय पर कम या अधिक होती रहती है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है।
हेलियोपॉज़
सौर वायु की बौछार सौर-मंडल के प्रत्येक ग्रह पर अपना प्रभाव छोड़ती है। इसके साथ ही यह सौरमंडल और बाहरी अंतरिक्ष के बीच एक सीमा रेखा भी बनाती है। इस सीमा को हेलियोपॉज कहते हैं।[2] यह आकाशगंगा के बाहर से आने वाली ब्रह्माण्डीय किरणों को बाहर ही रोक देती है। इन किरणों में अंतरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकिरण होते हैं, जो हानिकारक भी हो सकते हैं।
टर्मिनेशन शॉक
हेलियोपॉज़ के निकट आते ही सौर वायु धीमी होती जाती है और शॉक वेव जैसी बनती है, जिसे सौर वायु का टर्मिनेशन शॉक कहते हैं।
सन्दर्भ
- ↑ सोलर विंड Archived 2018-06-21 at the वेबैक मशीन। हिन्दुस्तान लाइव। २७ नवम्बर २००९
- ↑ अ आ सोलर विंड 50 सालों में सबसे कमजोर Archived 2011-08-23 at the वेबैक मशीन। नवभारत टाइम्स। २४ सितंबर २००८