हेत्वाभास
भारतीय न्यायदर्शन (तर्कशास्त्र) में हेत्वाभास उस अवस्था को कहते हैं जिसमें वास्तविक हेतु का अभाव होने पर या किसी अवास्तविक असद् हेतु के वर्तमान रहने पर भी वास्तविक हेतु का आभास मिलता या अस्तित्व दिखाई देता है और उसके फल-स्वरूप भ्रम होता या हो सकता हो।
'हेत्वाभास' दो शब्दों 'हेतु' और 'आभास' की सन्धि से बना है। 'आभास' का मतलब है 'जो नहीं है वह दीखना' या 'जो नहीं है वैसा दीखना'। हेतु का आभास तब होता है जब हेतु के पाँचों लक्षणों (पक्षसत्व, सपक्षसत्व, विपक्षासत्व, अवाधितत्व और असत् प्रतिपक्षतव) का अभाव हो।
भारतीय नैयायिकों ने इसके पाँच प्रकारों की चर्चा की है। गौतम ने हेत्वाभास के निम्नलिखित पाँच भेद बताए हैं-
- सव्यभिचार
- विरुद्ध
- प्रकरणसम,
- साद्य-सम और
- कालातीत
इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- आगमन तर्कशास्त्र (गूगल पुस्तक ; लेखक- केदारनाथ तिवारी)
- भारतीय तर्कशास्त्र (गूगल पुस्तक ; एन पी तिवारी)