हुमायूँ का मकबरा
हुमायूँ का मकबरा | |
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दिल्ली के मानचित्र में मकबरे का स्थान | |
सामान्य विवरण | |
प्रकार | मकबरा |
वास्तुकला शैली | मुगल वास्तुकला |
स्थान | निज़ामुद्दीन पूर्व, नई दिल्ली, भारत |
निर्देशांक | 28°35′36″N 77°15′02″E / 28.593264°N 77.250602°Eनिर्देशांक: 28°35′36″N 77°15′02″E / 28.593264°N 77.250602°E |
निर्माणकार्य शुरू | 1565 |
निर्माण सम्पन्न | 1572 |
योजना एवं निर्माण | |
वास्तुकार | मिराक मिर्ज़ा घियास |
हुमायूँ का मकबरा इमारत परिसर मुगल वास्तुकला से प्रेरित मकबरा स्मारक है। यह नई दिल्ली के दीनापनाह अर्थात् पुराने किले के निकट निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में मथुरा मार्ग के निकट स्थित है। गुलाम वंश के समय में यह भूमि किलोकरी किले में हुआ करती थी और नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी। यहाँ मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है और इसमें हुमायूँ की कब्र सहित कई अन्य राजसी लोगों की भी कब्रें हैं। यह समूह विश्व धरोहर घोषित है[1], एवं भारत में मुगल वास्तुकला का प्रथम उदाहरण है। इस मक़बरे में वही चारबाग शैली है, जिसने भविष्य में ताजमहल को जन्म दिया। यह मकबरा हुमायूँ की विधवा बेगम हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में बना था। इस भवन के वास्तुकार सैयद मुबारक इब्न मिराक घियाथुद्दीन एवं उसके पिता मिराक घुइयाथुद्दीन थे जिन्हें अफगानिस्तान के हेरात शहर से विशेष रूप से बुलवाया गया था। मुख्य इमारत लगभग आठ वर्षों में बनकर तैयार हुई और भारतीय उपमहाद्वीप में चारबाग शैली का प्रथम उदाहरण बनी। यहां सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था।[2][3][4] १९९३ में इस इमारत समूह को युनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
इस परिसर में मुख्य इमारत मुगल सम्राट हुमायूँ का मकबरा है। हुमायूँ की कब्र के अलावा उसकी बेगम हमीदा बानो तथा बाद के सम्राट शाहजहां के ज्येष्ठ पुत्र दारा शिकोह और कई उत्तराधिकारी मुगल सम्राट जहांदर शाह, फर्रुख्शियार, रफी उल-दर्जत, रफी उद-दौलत एवं आलमगीर द्वितीय आदि की कब्रें स्थित हैं।[5][6] इस इमारत में मुगल स्थापत्य में एक बड़ा बदलाव दिखा, जिसका प्रमुख अंग चारबाग शैली के उद्यान थे। ऐसे उद्यान भारत में इससे पूर्व कभी नहीं दिखे थे और इसके बाद अनेक इमारतों का अभिन्न अंग बनते गये। ये मकबरा मुगलों द्वारा इससे पूर्व निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग ए बाबर से एकदम भिन्न था। बाबर के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी।[7][8] अपने पूर्वज तैमूर लंग के समरकंद (उज़्बेकिस्तान) में बने मकबरे पर आधारित ये इमारत भारत में आगे आने वाली मुगल स्थापत्य के मकबरों की प्रेरणा बना। ये स्थापत्य अपने चरम पर ताजमहल के साथ पहुंचा।[9][10][11]
स्थल
यमुना नदी के किनारे मकबरे के लिए इस स्थान का चुनाव इसकी हजरत निजामुद्दीन (दरगाह) से निकटता के कारण किया गया था। संत निज़ामुद्दीन दिल्ली के प्रसिद्ध सूफ़ी संत हुए हैं व इन्हें दिल्ली के शासकों द्वारा काफ़ी माना गया है। इनका तत्कालीन आवास भी मकबरे के स्थान से उत्तर-पूर्व दिशा में निकट ही चिल्ला-निज़ामुद्दीन औलिया में स्थित था। बाद के मुगल इतिहास में मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र ने तीन अन्य राजकुमारों सहित १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यहां शरण ली थी। बाद में उन्हें ब्रिटिश सेना के कप्तान हॉडसन ने यहीं से गिरफ्तार किया था और फिर उन्हें रंगून में मृत्युपर्यन्त कैद कर दिया गया था।[12] दिल्ली से अपने विदा होने को बहादुर शाह ज़फ़र ने इन शब्दों में बांधा है:
“ | जलाया यार ने ऐसा कि हम वतन से चले बतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चले... | ” |
गुलाम वंश के शासन में यह क्षेत्र किलोकरी किले में स्थित थी, जो नसीरुद्दीन (१२६८-१२८७) के पुत्र तत्कालीन सुल्तान केकूबाद की राजधानी हुआ करती थी।
२० जनवरी १५५६ को, हुमायूँ की मृत्यु उपरांत उसे पहले तो दिल्ली में ही दफ़्नाया गया और बाद में १५५८ में खंजरबेग द्वारा पंजाब के सरहिंद ले जाया गया। कालांतर में मुगल सम्राट अकबर ने अपने पिता की समाधि के दर्शन १५७१ में किये।[16][17][18] मकबरे का निर्माण हमीदा बानो बेगम के आदेशानुसार १५६२ में हुमायुं की मृत्यु के ९ वर्ष उपरांत आरंभ हुआ था। तब इसकी लागत १५ लाख रुपये आयी थी।[14] कई बार हमीदा बानु बेगम से हुमायुं की पहली पत्नी हाजी बेगम का भ्रम भी होता है, हालांकि १६वीं शताब्दी में लिखे ब्यौरेवार आइन-ए-अकबरी के अनुसार एक अन्य हाजी बेगम भी थीं, जो हुमायुं की ममेरी बहन थी और बाद में उसकी बेगम बनी; उसको मकबरे का दायित्व सौंपा गया था।[19]
अब्द-अल-कादिर बदांयुनी, एक समकालीन इतिहासकार के अनुसार इस मकबरे का स्थापत्य फारसी वास्तुकार मिराक मिर्ज़ा घियास (मिर्ज़ा घियाथुद्दीन) ने किया था, जिन्हें हेरात, बुखारा (वर्तमान उज़्बेकिस्तान में) से विशेष रूप से इस इमारत के लिये बुलवाया गया था। इन्होंने हेरात की और भारत की भी कई इमारतों की अभिकल्पना की थी। इस इमारत के पूरा होने से पहले ही वे चल बसे, किंतु उनके पुत्र सैयद मुहम्मद इब्न मिराक घियाथुद्दीन ने अपने पिता का कार्य पूर्ण किया और मकबरा १५७१ में बनकर पूर्ण हुआ।[16][17]
स्थापत्य
बाहरी रूप
पाषाण निर्मित विशाल इमारत में प्रवेश के लिये दो १६ मीटर ऊंचे दुमंजिले प्रवेशद्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं। इन द्वारों में दोनों ओर कक्ष हैं एवं ऊपरी तल पर छोटे प्रांगण है। मुख्य इमारत के ईवान पर बने सितारे के समान ही एक छः किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेशद्वार की शोभा बढ़ाता है। मकबरे का निर्माण मूलरूप से पत्थरों को गारे-चूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलुआ पत्थर से ढंका हुआ है। इसके ऊपर पच्चीकारी, फर्श की सतह, झरोखों की जालियों, द्वार-चौखटों और छज्जों के लिये श्वेत संगमर्मर का प्रयोग किया गया है। मकबरे का विशाल मुख्य गुम्बद भी श्वेत संगमर्मर से ही ढंका हुआ है। मकबरा ८ मीटर ऊंचे मूल चबूतरे पर खड़ा है, १२००० वर्ग मीटर की ऊपरी सतह को लाल जालीदार मुंडेर घेरे हुए है। इस वर्गाकार चबूतरे के कोनों को छांटकर अष्टकोणीय आभास दिया गया है। इस चबूतरे की नींव में ५६ कोठरियां बनी हुई हैं, जिनमें १०० से अधिक कब्रें बनायी हुई हैं। यह पूरा निर्माण एक कुछ सीढियों ऊंचे चबूतरे पर खड़ा है।[16]
फारसी वास्तुकला से प्रभावित ये मकबरा ४७ मी. ऊंचा और ३०० फीट चौड़ा है। इमारत पर फारसी बल्बुअस गुम्बद बना है, जो सर्वप्रथम सिकन्दर लोदी के मकबरे में देखा गया था। यह गुम्बद ४२.५ मीटर के ऊंचे गर्दन रूपी बेलन पर बना है। गुम्बद के ऊपर ६ मीटर ऊंचा पीतल का किरीट कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है। गुम्बद दोहरी पर्त में बना है, बाहरी पर्त के बाहर श्वेत संगमर्मर का आवरण लगा है और अंदरूनी पर्त गुफा रूपी बनी है। गुम्बद के शुद्ध और निर्मल श्वेत रूप से अलग शेष इमारत लाल बलुआ पत्थर की बनी है, जिसपर श्वेत और काले संगमर्मर तथा पीले बलुआ पत्थर से पच्चीकारी का काम किया गया है। ये रंगों का संयोजन इमारत को एक अलग आभा देता है।
आंतरिक बनावट
बाहर से सरल दिखने वाली इमारत की आंतरिक योजना कुछ जटिल है। इसमें मुख्य केन्द्रीय कक्ष सहित नौ वर्गाकार कक्ष बने हैं। इनमें बीच में बने मुख्य कक्ष को घेरे हुए शेष आठ दुमंजिले कक्ष बीच में खुलते हैं। मुख्य कक्ष गुम्बददार (हुज़रा) एवं दुगुनी ऊंचाई का एक-मंजिला है और इसमें गुम्बद के नीचे एकदम मध्य में आठ किनारे वाले एक जालीदार घेरे में द्वितीय मुगल सम्राट हुमायुं की कब्र बनी है। ये इमारत की मुख्य कब्र है। इसका प्रवेश दक्षिणी ओर एक ईवान से होता है, तथा अन्य दिशाओं के ईवानों में श्वेत संगमर्मर की जाली लगी हैं। सम्राट की असली समाधि ठीक नीचे आंतरिक कक्ष में बनी है, जिसका रास्ता बाहर से जाता है। इसके ठीक ऊपर दिखावटी किन्तु सुन्दर प्रतिकृति बनायी हुई है। नीचे तक आम पर्यटकों को पहुँच नहीं दी गई है। पूरी इमारत में पीट्रा ड्यूरा नामक संगमर्मर की पच्चीकारी का प्रयोग है और इस प्रकार के कब्र के नियोजन भारतीय-इस्लामिक स्थापत्यकला का महत्त्वपूर्ण अंग हैं, जो मुगल साम्राज्य के बाद के मकबरों, जैसे ताजमहल आदि में खूब प्रयोग हुए हैं।[20]
मुख्य कक्ष में संगमर्मर की जालीदार घेरे के ठीक ऊपर मेहराब भी बना है, जो पश्चिम में मक्का की ओर बना है। यहां आमतौर पर प्रवेशद्वारों पर खुदे कुरआन के सूरा २४ के बजाय सूरा- अन-नूर की एक रेखा बनी है, जिसके द्वारा प्रकाश क़िबला (मक्का की दिशा) से अंदर प्रवेश करता है। इस प्रकार सम्राट का स्तर उनके विरोधियों और प्रतिद्वंदियों से ऊंचा देवत्व के निकट हो जाता है।[16]
प्रधान कक्ष के चार कोणों पर चार अष्टकोणीय कमरे हैं, जो मेहराबदार दीर्घा से जुड़े हैं। प्रधान कक्ष की भुजाओं के बीच बीच में चार अन्य कक्ष भी बने हैं। ये आठ कमरे मुख्य कब्र की परिक्रमा बनाते हैं, जैसी सूफ़ीवाद और कई अन्य मुगल मकबरों में दिखती है; साथ ही इस्लाम धर्म में जन्नत का संकेत भी करते हैं। इन प्रत्येक कमरों के साथ ८-८ कमरे और बने हैं, जो कुल मिलाकर १२४ कक्षीय योजना का अंग हैं। इन छोटे कमरों में कई मुगल नवाबों और दरबारियों की कब्रों को समय समय पर बनाया हुआ है। इनमें से प्रमुख हैं हमीदा बानो बेगम और दारा शिकोह की कब्रें। प्रथम तल को मिलाकर इस मुख्य इमारत में लगभग १०० से अधिक कब्रें बनी हैं, जिनमें से अधिकांश पर पहचान न खुदी होने के कारण दफ़्न हुए व्यक्ति का पता नहीं है, किन्तु ये निश्चित है कि वे मुगल साम्राज्य के राज परिवार या दरबारियों में से ही थे, अतः इमारत को मुगलों का कब्रिस्तान संज्ञा मिली हुई है।[5][17]
इस इमारत में लाल बलुआपत्थर पर श्वेत संगमर्मर के संयोजन का सर्वप्रथम प्रयोग किया गया था। इसके साथ ही इसमें बहुत से भारतीय स्थापत्यकला के घटक देखने को मिलते हैं, जैसे मुख्य गुम्बद को घेरे हुए राजस्थानी स्थापत्यकला की छोटी छतरियां, जो मूल रूप से नीली टाइल्स से ढंकी हुई थीं।[5][17][21]
- हुमायुं के मकबरे का बाहरी मेहराब, जिसमें दो स्तरों पर दो धारें दिखाई देती हैं।
- हुमायुं के मकबरे के गुम्बद का आंतरिक दृश्य
- पश्चिम की ओर मक्का को मुख किये हुए झरोखे में बारीक कटी संगमर्मर की जाली
- हुमायुं की कब्र, मुख्य कक्ष में; असल कब्र निचले कक्ष में बनी है।
- छोटे कक्ष मेहराबदार जाली से ढंके हुए हैं।
चार-बाग उद्यान
मुख्य इमारत के निर्माण में आठ वर्ष लगे, किन्तु इसकी पूर्ण शोभा इसको घेरे हुए ३० एकड़ में फैले चारबाग शैली के मुगल उद्यानों से निखरती है। ये उद्यान भारत ही नहीं वरन दक्षिण एशिया में अपनी प्रकार के पहले उदाहरण थे। ये उच्च श्रेणी की ज्यामिती के उदाहरण हैं। जन्नत रूपी उद्यान चहारदीवारी के भीतर बना है। ये उद्यान चार भागों में पैदल पथों (खियाबान) और दो विभाजक केन्द्रीय जल नालिकाओं द्वारा बंटा हुआ है। ये इस्लाम के जन्नत के बाग में बहने वाली चार नदियों के परिचायक हैं। इस प्रकार बने चार बागों को फिर से पत्थर के बने रास्तों द्वारा चार-चार छोटे भागों में विभाजित किया गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर ३६ भाग बनते हैं। केन्द्रीय जल नालिका मुख्य द्वार से मकबरे तक जाती हुई उसके नीचे जाती और दूसरी ओर से फिर निकलती हुई प्रतीत होती है, ठीक जैसा कुरआन की आयतों में ’जन्नत के बाग’ का वर्णन किया गया है।[7][17]
मकबरे को घेरे हुए चारबाग हैं, व उन्हें घेरे हुए तीन ओर ऊंची पत्थर की चहारदीवारी है व तीसरी ओर कभी निकट ही यमुना नदी बहा करती थी, जो समय के साथ परिसर से दूर चली गई है। केन्द्रीय पैदल पथ दो द्वारों तक जाते हैं: एक मुख्य द्वार दक्षिणी दीवार में और दूसरा छोटा द्वार पश्चिमी दीवार में। ये दोनों द्वार दुमंजिला हैं। इनमें से पश्चिमी द्वार अब प्रयोग किया जाता है, व दक्षिणी द्वार मुगल काल में प्रयोग हुआ करता था और अब बंद रहता है। पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई एक बारादरी है। इसमें नाम के अनुसार बारह द्वार हैं और इसमें ठंडी बहती खुली हवा का आनंद लिया जाता था। उत्तरी दीवार से लगा हुआ एक हम्माम है जो स्नान के काम आता था।
मकबरे परिसर में चारबाग के अंदर ही दक्षिण-पूर्वी दिशा में १५९० में बना नाई का गुम्बद है। इसकी मुख्य परिसर में उपस्थिति दफ़नाये गये व्यक्ति की महत्ता दर्शाती है। वह शाही नाई हुआ करता था। यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बना है जिस पहुँचने के लिये दक्षिणी ओर से सात सीढ़ियां बनी हैं। यह वर्गाकार है और इसके अकेले कक्ष के ऊपर एक दोहरा गुम्बद बना है।[22] अंदर दो कब्रों पर कुरआन की आयतें खुदी हुई हैं। इनमें से एक कब्र पर ९९९ अंक खुदे हैं, जिसका अर्थ हिजरी का वर्ष ९९९ है जो १५९०-९१ ई. बताता है।
अन्य स्मारक
हुमायूँ के मकबरे के मुख्य पश्चिमी प्रवेशद्वार के रास्ते में अनेक अन्य स्मारक बने हैं। इनमें से प्रमुख स्मारक ईसा खां नियाज़ी का मकबरा है, जो मुख्य मकबरे से भी २० वर्ष पूर्व १५४७ में बना था। ईसा खां नियाज़ी मुगलों के विरुद्ध लड़ने वाला सूर वंश के शासक शेरशाह सूरी के दरबार का एक अफ़्गान नवाब था। यह मकबरा ईसा खां के जीवनकाल में ही बना था और उसके बाद उसके पूरे परिवार के लिये ही काम आया। मकबरे के पश्चिम में एक तीन आंगन चौड़ी लाल बलुआ पत्थर की मस्जिद है। यह अठमुखा मकबरा सूर वंश के लोधी मकबरे परिसर स्थित अन्य मकबरों से बहुत मेल खाता है।
इस परिसर में मुख्य चहारदीवारी के बाहर स्थित अन्य स्मारकों में प्रमुख है: बू हलीमा का मकबरा और उसके बाग। ये मकबरा अब ध्वंस हो चुका है और अवशेषों से ज्ञात होता है कि ये केन्द्र में स्थित नहीं था। इससे आभास होता है कि संभवतः ये बाद में जोड़ा गया होगा।[23] इसके बाद आती है अरब सराय जिसे हमीदा बेगम ने मुख्य मकबरे के निर्माण में लगे कारीगरों के लिये बनवाया था। इस परिसर में ही अफ़सरवाला मकबरा भी बना है, जो अकबर के एक नवाब के लिये बना था। इसके साथ ही इसकी मस्जिद भी बनी है। पूरे परिसर के बाहर बना है नीला बुर्ज नामक मकबरा। इसका ये नाम इसके गुम्बद के ऊपर लगी नीली ग्लेज़्ड टाइलों के कारण पड़ा है। ये मकबरा अकबर के दरबारी बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खानेखाना द्वारा अपने सेवक मियां फ़हीम के लिये बनवाया गया था। फ़हीम मियां इनके बेटे फ़ीरोज़ खान के संग ही पले बढ़े थे और उसके साथ ही १६२५/२६ में जहांगीर के समय में हुए एक मुगल सेनापति महाबत खां के विद्रोह में लड़ते हुए काम आये थे।[24] ये मकबरा अपने स्थापत्य में अनूठा है। ये बाहर से अष्टकोणीय है जबकि अंदर से वर्गाकार है। इसकी छत अपने समय के प्रचलित दोहरे गुम्बद से अलग गर्दनदार गुम्बद और अंदर हुए प्लास्टर पर बहुत ही सुंदर चित्रकारी व पच्चीकारी के कारण विशेष उल्लेखनीय है। इस परिसर से कुछ और दूर ही मुगल कालीन अन्य स्मारकों में बड़ा बताशेवाला महल, छोटे बताशेवाला महल और बारापुला नामक एक पुल है जिसमें १२ खम्भे उनके बीच ११ मेहराब हैं। इसका निर्माण जहांगीर के दरबार के एक हिंजड़े मिह्र बानु आगा ने १६२१ में करवाया था।[25]
- ईसा खां नियाज़ी का मकबरा, १५४७
- अफ़सरवाला मकबरा और मस्जिद, निकट हुमायुं मकबरा; १८०३
- मुख्य इमारत के संग बना नाई का मकबरा। छायाचित्र: १८५८, जॉन मरे
दुर्गति
एक अंग्रेज़़ व्यापारी, विलियम फ़िंच ने १६११ में मकबरे का भ्रमण किया। उसने लिखा है कि केन्द्रीय कक्ष की आंतरिक सज्जा, आज के खालीपन से अलग बढ़िया कालीनों व गलीचों से परिपूर्ण थी। कब्रों के ऊपर एक शुद्ध श्वेत शामियाना लगा होता था और उनके सामने ही पवित्र ग्रंथ रखे रहते थे। इसके साथ ही हुमायूँ की पगड़ी, तलवार और जूते भी रखे रहते थे।[18] यहां के चारबाग १३ हेक्टेयर क्षेत्र में फ़ैले हुए थे। आने वाले वर्षों में ये सब तेजी से बदलता गया। इसका मुख्य कारण, राजधानी का आगरा स्थानांतरण था। बाद के मुगल शासकों के पास इतना धन नहीं रहा कि वे इन बागों आदि का मंहगा रखरखाव कर सकें। १८वीं शताब्दी तक यहां स्थानीय लोगों ने चारबागों में सब्जी आदि उगाना आरम्भ कर दिया था। १८६० में मुगल शैली के चारबाग अंग्रेज़़ी शैली में बदलते गये। इनमें चार केन्द्रीय सरोवर गोल चक्करों में बदल गये व क्यारियों में पेड़ उगने लगे। बाद में २०वीं शताब्दी में लॉर्ड कर्ज़न जब भारत के वाइसरॉय बने, तब उन्होंने इसे वापस सुधारा। १९०३-१९०९ के बीच एक वृहत उद्यान जीर्णोद्धार परियोजना आरम्भ हुई, जिसके अन्तर्गत्त नालियों में भी बलुआ पत्थर लगाया गया। १९१५ में पौधारोपण योजना के तहत केन्द्रीय और विकर्णीय अक्षों पर वृक्षारोपण हुआ। इसके साथ ही अन्य स्थानों पर फूलों की क्यारियां भी दोबारा बनायी गयीं।[7]
भारत के विभाजन के समय, अगस्त, १९४७ में पुराना किला और हुमायुं का मकबरा भारत से नवीन स्थापित पाकिस्तान को लिये जाने वाले शरणार्थियों के लिये शरणार्थी कैम्प में बदल गये थे। बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नियन्त्रण में ले लिया गया। ये कैम्प लगभग पांच वर्षों तक रहे और इनसे स्मारकों को अत्यधिक क्षति पहुँची, खासकर इनके बगीचों, पानी की सुंदर नालियों आदि को। इसके उपरांत इस ध्वंस को रोकने के लिए मकबरे के अंदर के स्थान को ईंटों से ढंक दिया गया, जिसे आने वाले वर्षों में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने वापस अपने पुराने रूप में स्थापित किया। हालांकि १९८५ तक मूल जलीय प्रणाली को सक्रिय करने के लिये चार बार असफल प्रयास किये गए।[7][26] मार्च २००३ में आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा इसका जीर्णोद्धार कार्य सम्पन्न हुआ था। इस जीर्णोद्धार के बाद यहां के बागों की जल-नालियों में एक बार फिर से जल प्रवाह आरम्भ हुआ।[27] इस कार्य हेतु पूंजी आगा खान चतुर्थ की संस्था के द्वारा उपहार स्वरूप प्रदान की गई थी।
जीर्णोद्धार
पुनरुद्धार कार्य के आरम्भ होने से पहले अत्यधिक ध्वंस और असंवैधानिक अतिक्रमण यहां आम बात थे। इस कारण इस बहुमूल्य सम्पदा के अस्तित्त्व को खतरा बना हुआ था। मकबरे के मुख्य द्वार के निकट अनेक छोरदारियां और टेन्ट लगे थे जो गैर-कानूनी तरीके से यहां लगाये गए थे। नीले गुम्बद की तरफ़ यहां की बड़ी झोंपड़-पट्टी स्थापित थीं, जिन्हें वोट की राजनीति के चलते भरपूर राजनीतिक समर्थन मिलता रहा था। इन सब के कारण दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन का भी बुरा हाल था। वहां का पवित्र कुंड एक गंदे नाबदान में बदल गया था। यहां का जीर्णोद्धार कार्य आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग के से १९९७ में आरम्भ हुए सर्वेक्षण के बाद १९९९ के लगभग आरम्भ हुआ और मार्च, २००३ में पूर्ण हुआ। इसके अन्तर्गत्त १२ हेक्टेयर लॉन में अनेक पौधों और वृक्षों का पौधारोपण हुआ, जिसमें आम, नींबू, नीम, गुलमोहर और चमेली के पेड़ थे। पैदल रास्तों के साथ-साथ बहते जल की नालियों की प्रणाली बनायी गई। ये जल १२ हेक्टेयर (३० एकड़) भूमि में प्राकृतिक बल से बिना किसी हाईड्रॉलिक प्रणाली के बहता रहता है। इसके लिये जल-नालियां १ सें.मी. प्रति ४० मीटर (१:४००० पैमाने) की ढाल पर बनायीं गईं थीं। इस व्यवस्था से उद्यानों में सिंचाई हेतु जल-प्रवाह हुआ और साथ ही सूखे फव्वारे एक बार पुनः जीवित हो उठे। इसके अलावा एक बड़ा कार्य था यहां वर्षा जल संचयन की व्यवस्था। इसके अंतर्गत्त १२८ भूमि जल पुनर्भरण ताल बनाये गए और अनेक पुराने मिले सूखे कुओं की सफ़ाई कर उन्हें पुनः प्रयोगनीय बनाया गया।[28][29] इस पूरे कार्य को पहले तो भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के राष्ट्रीय सांस्कृतिक निधि (एन.सी.एफ़) द्वारा निजि वित्त से वहन किया गया था। इस कार्य का खर्चा लगभग $६,५०,००० आगा खां चतुर्थ के आगा खां सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा ओबेरॉय होटल समूह के सहयोग से वहन किया गया था।[30][31][32][33]
इसके साथ ही ए॰के.टी.सी. काबुल स्थित, हुमायुं के पिता बाबर मकबरे का भी पुनरोद्धार कार्य में भी संलग्न रहा है। पुनरुद्धार कार्य के बाद इस परिसर में और निकटवर्ती स्थानों पर जमीन-आसमान का बदलाव आ गया। सभी खोखे, गुमटियां व अन्य अतिक्रमण हटाये गए थे और स्मारक के किनारे हरियाली वापस लौट आयी थी। स्मारक को घेरे हुए शानदार उद्यान एक बार फिर इसकी शोभा में चार चांद लगा रहे थे। इसके बाद रात्रि प्रकाश व्यवस्था आरम्भ हुई जिसके साथ इस स्मारक की शोभा देखते ही बनती थी।
२००९ में पुनरोद्धार कार्य के अधीन ही, ए॰एस.आई और ए॰के.टी.सी ने मकबरे की छत से महीनों की मेहनत से सीमेंट काँक्रीट की मोटी पर्त हटायी गई, जो छत पर ११०२ टन का दबाव डाल रही थी। ये कॉन्क्रीट १९२० में जल-रिसाव और सीलन से बचाने के लिये लगायी गई थी। इसके स्थान पर सीमेंट की ४० से.मी मोटी ताजी पर्त लगायी गई है। इसने मकबरे की मूल चूने की पर्त का स्थान ले लिया है। अगले चरण में मकबरे के चबूतरे पर भी ऐसा ही काम किया गया। ये मूल रूप से क्वार्टज़ाइट पत्थर की बड़ी बड़ी सिल्लियों से बनी थी जिनमें से कुछ तो १००० कि.ग्रा से भी भारी थे। १९४० में निचले चबूतरे में असमान भागों को कॉन्क्रीट की समान रंगों की पर्त से सुधारा गया था, जो पश्चिम द्वार के मूल मुगल फर्श से मिलते जुलते थे।[34]
वर्तमान स्थिति
प्रकाश व्यवस्था
दिल्ली में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होने का अनुमान है। मकबरे की प्रकाश व्यवस्था हालांकि पहले से है, किन्तु फिर भी इसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की योजना के अधीन इसकी बेहतर प्रकाश व्यवस्था की तैयारी हो रहीं हैं। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग एएसआई की आ॓र से राष्ट्रमंडल खेलों तक कुल ४६ स्मारकों का कायापलट किया जाना निश्चित हुआ है। इनमें मरम्मत, लैंड स्केपिंग, जनसुविधाएं, उघानों का विकास और प्रकाश व्यवस्था शामिल हैं। कुल ३३ स्मारकों को विभाग ने प्रकाश के लिये चिन्हित किया है। इन स्मारकों में एलईडी तकनीक के द्वारा व्यवस्था की जाएगी, जिससे बिजली का खर्च कई गुना कम हो जाएगा। इन स्मारकों में हुमायुं का मकबरा ऊपर के तीन प्रमुख स्थलों में आता है।[35] स्मारक में नागरिक सुविधाएं बढाने पर भी बल दिया जा रहा है, जिनमें पीने के पानी की व्यवस्था, टायलेट और कैफेटेरिया आदि की व्यवस्था की जा रही है।[36][37]
ध्वंस आशंका
वर्तमान समय में इस स्मारक को आतंकवादियों द्वारा विध्वंस से खतरा निरन्तर ही बना रहता है। इसके अलावा गैर-कानूनी निर्माण, अतिक्रमण एवं निषिद्ध स्थानों में फैलाया हुआ प्लास्टिक कूड़ा-कर्कट यहां बने रहते नियमित खतरों में से हैं। आतंकवादियों के हमले की संभावना से यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या निरन्तर गिरती रही है, जिसके कारण स्मारक के रखरखाव हेतु मिलने वाले राजस्व की भी हानि होती है।
हाल ही में मुंबई में हुए आतंकी हमले के कारण हुमायुं के मकबरे में आने वाले पर्यटकों की संख्या २ माह में ६००० से अधिक गिरी है। दिल्ली सरकार की २००६/२००७ में पूर्वी दिल्ली को दक्षिणी दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम से सीधे जोड़ने हेतु २०१० में दिल्ली में आयोजित होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों हेतु बनायी जाने वाली सुरंग के प्रस्ताव एवं स्मारक के निकट ही राष्ट्रीय राजमार्ग २४ की सड़क के चौड़ीकरण एवं उसके लोधी मार्ग से जोड़ने के प्रस्ताव से स्मारक को गंभीर खतरे की आशंका बनी थी। अन्ततः भारतीय पुरातात्त्विक सर्वेक्षण विभाग के प्रयासों से दोनों ही योजनाएं रुक पायीं।[38][39]
चित्र दीर्घा
- हुमायुं का मकबरा मुगल कालीन स्थापत्य का एक बेजोड़ नमूना है
- अली ईसा खाँ नियाज़ी का मकबरा
- मकबरे का प्रवेशद्वार
- प्रवेशद्वार अंदर से
- इमारत के निकट फव्वारे
- शिलालेख पर बेगम का उल्लेख
- हमीदा बानो बेगम और दारा शिकोह की कब्रें
- ईसा खां मस्जिद, १५४७ निर्मित
- अरब सराय का द्वार
- अफसरवाला मकबरा, १५६६ ई.
सन्दर्भ
- ↑ विश्व धरोहर स्थल (१८ अप्रैल) पर विशेष- अभिव्यक्ति। १७ अप्रैल २०१०।
- ↑ हुमायूज़ टॉम्ब, देल्ही विश्व धरोहर समिति, युनेस्को.
- ↑ हुमायूं का मकबरा भारत सरकार पोर्टल
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- ↑ बागे वफ़ा। बहादुर शाह ज़फ़र_ بہادرشاہ طَفَ।
- ↑ :जलाया यार ने ऐसा कि हम वतन से चले
- बतौर शमा के रोते इस अंजुमन से चले...
- न बाग़बां ने इजाज़त दी सैर करने की
- खुशी से आए थे रोते हुए चमन से चले
- जायेगा_ अज्ञात
- न मालो हकुमत न धन जायेगा.
- तेरे साथ बस एक कफन जायेगा.
- बचा भी न कोइ कि नोहा करे
- पारायों के कांधे बदन जायेगा.
- जिलावतनी ओढे तु सोता रहा,
- यादों में लिपटा गगन जायेगा
- मुलक कि मट्टी की चादर कहां,?
- जफर तू तो अब बे वतन जायेगा.
- दो गज जमीं के लिये तडपते खातेमुनशहेनशाहे मुघलिया बहादुरशाह जमीन का आखरी मस्कन.
- ↑ अ आ हुमायुंज़ टॉम्ब Archived 2009-04-10 at the वेबैक मशीन भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग.
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- ↑ खासमखास होंगे दिल्ली के खास धरोहर|देशबन्धु। १३ फ़रवरी २०१०
- ↑ 21 करोड़ खर्च, पर स्मारकें जीर्ण-शीर्ण[मृत कड़ियाँ]-दैनिक भास्कर। १५ जनवरी २०१०
- ↑ "हुमायुंज़ टॉम्ब फ़ेसेज़ ट्विन थ्रेट्स". द हिन्दू. १३ जून २००७. मूल से 19 जून 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ३ अगस्त २००९.
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इन्हें भी देखें
बाहरी कड़ियाँ
- हुमायुं के मकबरे के चित्र Archived 2008-01-15 at the वेबैक मशीन
- गूगल मानचित्र पर उपग्रह के चित्र
- दिल्ली पर्यटन के जालस्थल पर Archived 2008-03-08 at the वेबैक मशीन हुमायुं का मकबरा देखें
- हुमायुं के मकबरे के पैनोरैमिक दृश्य Archived 2007-12-22 at the वेबैक मशीन
- गूगल अर्थ से जुड़े चित्र Archived 2007-09-30 at the वेबैक मशीन